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त्रिफला चूर्ण
त्रिफला चूर्ण
आँवला, बहेड़ा व हरड़ का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर त्रिफला तैयार कीजिए। यह चूर्ण आवश्यकतानुसार 1 से 8 ग्राम तक खाया जा सकता है।
औषधि-प्रयोगः
नेत्र-रोगः आँखों के सभी रोगों के लिए त्रिफला एक अकसीर औषध है। इस त्रिफला चूर्ण को घी तथा मिश्री के साथ मिलाकर कुछ माह तक खाने से नेत्ररोग दूर होते हैं। नेत्रों की सूजन, दर्द, लालिमा, जलन, कील, ज्योति मांद्य आदि रोगों में सुबह-शाम नियमित रूप से त्रिफला चूर्ण अथवा त्रिफला घृत लेने से और त्रिफला जल से नेत्र प्रक्षालन करने से नेत्र-सम्बन्धी समस्त विकार मिटते हैं व नेत्रों की ज्योति तथा नेत्रों का तेज बढ़ता है।
त्रिफला जल बनाने की विधिः मिट्टी के कोरे बर्तन या काँच के बर्तन में 2 ग्राम त्रिफला चूर्ण 200 ग्राम जल में भिगोकर रखें। 4-6 घंटे बाद उस जल को ऊपर से निथारकर बारीक स्वच्छ कपड़े से छान लें। फिर उस जल से नेत्रों को नित्य धोयें या उसमें 2-3 मिनट तक पलकें झपकायें।
एण्टीसेप्टिकः त्रिफला आयुर्वेद का गंदगी हटाने वाला श्रेष्ठ द्रव्य है इसके पानी से घाव धोने से एलोपैथिक एण्टीसेप्टिक दवाई की कोई आवश्यकता नहीं रहती।
मोटापा एवं प्रमेहः त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है। इसी में यदि पीसी हुई हल्दी भी मिला ली जाय तो पीने से प्रमेह मिटता है।
चर्मरोगः दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि चर्मरोगों में सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना हितकारी माना गया है।
मुखपाकः जिन लोगों को बार-बार मुँह आने की बीमारी हो अर्थात् मुखपाक हो जाता हो वे नित्य रात में 6 ग्राम त्रिफला चूर्ण पानी के साथ खाकर त्रिफला के ठंडे पानी से कुल्ले करे।
मूत्रमार्ग के रोगः मूत्रमार्गगत रोग अर्थात् प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
जीर्णज्वर के रोगः 2 से 3 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेना चाहिए।
कामला रोगः में गोमूत्र या शहद के साथ 2 से 4 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेने से एक माह में यह रोग मिट जाता है।
त्वचा के चकते, मुँह के छालेः गरमी से त्वचा पर चकतों पर त्रिफला की राख शहद में मिलाकर लगाने से राहत मिलती है। मुँह के छालों में भी इसी प्रकार लगाकर थूक से मुँह भर जाने पर उससे ही कुल्ला करने से छालों में राहत मिलती है।
भंगड़ा त्रिफला चूर्ण में खैर की छाल का क्वाथ, भैंस का घी तथा वायविडंग का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से भगंदर रोग मिटाता है।
अन्नदोष, कब्जः भोजन के बाद त्रिफला चूर्ण लेने से अन्न के दोष तथा वात-पित्त-कफ से उत्पन्न रोग मिटाते हैं और कब्जियत भी नहीं रहती।
त्रिफला में यदि पिप्पली (पीपर) चूर्ण का योग हो जाय तो उसकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है। त्रिफला चूर्ण का तीन भाग व पिप्पली चूर्ण का एक भाग मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से खाँसी, श्वास, ज्वर आदि में लाभ होता है, दस्त साफ व जठराग्नि प्रदीप्त होती है।
इसके अतिरिक्त भी अनेक छोटे मोटे रोगों में त्रिफला औषधरूप में सहायक होता है।
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