सभी शुद्ध शक्तिवर्धक जड़ी बूटी और पाउडर खरीदने के लिए log on करें https://indianjadibooti.com
हिंदू धर्म में हरसिंगार का बहुत महत्व है, इसे ईश्वर की अराधना में भी एक खास स्थापन प्रदान किया गया है। इसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अंग्रेजी में इसे नाइट जेस्मिन और उर्दू में इसे गुलज़ाफ़री कहा जाता है। हरसिंगार का यह वृक्ष रात की रानी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके पुष्प रात के समय खिलकर वातावरण को सुगंधित करते है और झड़ जाते हैं। हरसिंगार का वृक्ष झाड़ीनुमा या छोटा पेड़ जैसा होता है। इसे प्राजक्ता, शेफाली, शिउली आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है और कहीं 25-30 फीट ऊँचा एक वृक्ष होता है। इसके पेड़ की छाल जगह-जगह परत दर सलेटी से रंग की होती है एवं पत्तियाँ हल्की रोयेंदार छह से बारह सेमी लंबी और ढाई से.मी. चौड़ी होती हैं। हरसिंगार के पेड़ पर रात्रि में खुशबूदार छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और एवं फूल की डंडी नारंगी रंग की होती है।
इसका वनस्पतिक
नाम 'निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस'
है। परिजात पर
सुन्दर व सुगन्धित
फूल लगते हैं।
इसके फूल, पत्ते
और छाल का
उपयोग औषधि के
रूप में किया
जाता है। इस
वृक्ष के पत्ते
और छाल विशेष
रूप से उपयोगी
होते हैं। इसके
पत्तों का सबसे
अच्छा उपयोग गृध्रसी(सायटिका) रोग को
दूर करने में
किया जाता है।
यह हलका, रूखा,
तिक्त, कटु, गर्म,
वात-कफनाशक, ज्वार
नाशक, मृदु विरेचक,
शामक, उष्णीय और
रक्तशोधक होता है।
सायटिका रोग को
दूर करने का
इसमें विशेष गुण
है। यह देशभर
में पैदा होता
है। यह पश्चिम
बंगाल का राजकीय
पुष्प है। ये
पौधा पूरे भारत
में विशेषतः बाग-बगीचों में लगा
हुआ मिलता है।
विशेषकर मध्यभारत और हिमालय
की नीची तराइयों
में ज्यादातर पैदा
होता है।
No comments:
Post a Comment