Tuesday 1 January 2019

गुग्गल एक दिव्य औषधी है

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गुग्गल एक औषधीय झाड़ी है जिसका वैज्ञानिक नाम कोम्मिफोरा मुकुल है | गुग्गल एक दिव्य औषधी है। गुग्गल रेजिन का उपयोग गठिया रोग, तंत्रिका संबंधी रोग, बवासीर, अस्थमा, पथरी, छाले तथा मूत्रवर्धक रोग के उपचार में किया जाता है। इसका उपयोग सुगंध, इत्र व औषधीय में भी किया जाता है।उपयोगी भाग छाल और रेजिन [गोंड] होता है |गुग्गल पूजन सामग्रियों में उपयोग होता है और धूनी जलाने ,हवंन करने और सुगन्धित वातावरण में उपयोग होता है |

चुटकी भर गुग्गुल पानी मे मिलाकर पीने से गठिया, जोड़ो का दर्द, सायटिका, कमर दर्द, मोटापा, लकवा, ट्यूमर और शारीरिक कमजोरी आदि 35 रोगों में रामबाण हैI


यह मूल रूप से एशिया व अफ्रीका का पौधा है। यह भारत के उष्णकटिबंघीय क्षेत्रों, बांग्लादेश, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और प्रशांत महासागर में पाया जाता है। भारत में यह म.प्र., राजस्थान, तमिलनाडु, आसाम, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में पाया जाता है। मध्यप्रदेश में यह ग्वालियर और मुरैना जिलों में पाया जाता है। गुग्गल ब्रूसेरेसी कुल का एक बहुशाकीय झाड़ीनुमा पौधा है। यह पौधा छोटा होता है एवं शीतकाल और गीष्मकाल में धीमी गति से बढ़ता है। इसके विकास के लिए वर्षा ऋतु उत्तम रहती है। अधिक कटाई होने से यह आसानी से प्राप्त नहीं होता है। इसकी तनों व शाखाओं से जो गोंद निकलता है वही गुग्गल कहलाता है। गुग्गल उपयोग से कोई खतरनाक प्रभाव नहीं होता है फिर इसका लंबे समय तक उपयोग करने से हल्के पेट दर्द की शिकायत होती है। इसका दीर्घ कालीन उपयोग गलग्रंथि, थायराइट और गर्भाशय को प्रभावित करता है अत: इसका उपयोग गर्भधारण के दौरान नहीं करना चाहिए। अग्रेंजी में इसे इण्डियन बेदेलिया भी कहते हैं। रेजिन का रंग हल्का पीला होता है परन्तु शुद्ध रेजिन पारदर्शी होता है।



 पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें। ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।


यह एक झाड़ीनुमा पौधा है, जिसकी छाल कठोर होती है। शाखायें श्वेत, मुलायम और सुगंधित होती है। शाखायें मुडी हुई, गांठेदार, शीर्ष की ओर नुकीली और राख के रंग की होती है। तनों पर कागज जैसी एक पतली झिल्ली होती है। पत्तियाँ चिकनी व सपत्र होती है, जिसमें 1-3 पत्रक होते है। फूल भूरे से गहरे लाल रंग के होते है। फूल नर व मादा दो प्रकार के होते है। फूल 2-3 के समूह में होते है। फूल जनवरी – मार्च माह में आते है। फल अण्डाकार, 6-8 मिमी व्यास के होते है और पकने पर लाल और दो भागों में टूट जाते है। फल मार्च – मई माह में आते है।


 जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।

गुग्गल की झाडी़ आठ वर्ष में तैयार हो जाती है। गुग्गल प्राप्त करने का उपयुक्त समय मार्च व दिसम्बर होता है। दोहन द्वारा गुग्गल गोंद प्राप्त करते है। 10-15 दिन के अन्तराल गोंद को एकत्र करते है।
गोंद के दोहन के लिए तने में तेज चाकू से तीन इंच गहरा चीरा लगाया जाता है। तनों में उपस्थित गुग्गल रिस कर बाहर निकलते लगता है और हवा से सूख जाता है। चीरा लगाते समय सावधानी रखनी चाहिए। यदि चीरा बहुत गहरा लगता है, तो पौधा मर जाता है या आगामी वर्षों में गुग्गल कम मात्रा में प्राप्त होता है। सामान्यत: चीरा नवम्बर माह के बाद लेकिन अप्रैल माह के पहले लगाया जाता है। शुध्द रेजिन पारदर्शी होता है जिस पर पतली फिल्म होती है किन्तु अधिक मात्रा में होने के कारण पारभाषी और अस्पष्ट दिखाई देता है। यह केस्टर तेल, तारपीन तेल में पूर्णत: घुलनशील होता है। टपकते हुये गुग्गल को मिट्टी के बर्तन में इकट्ठा करते है। गुग्गल को कई रूपों में उपयोग किया जाता है जैसे § गुग्गल कँलोस्ट्राल § गुग्गल एक्सट्रेक्ट § गुग्गल गम § त्रिफला गुग्गल|........


गुग्गल की धुनी देने से लक्ष्मी जी का आकर्षण होता हैं। गुग्गल को कूट कर उसकी छोटी छोटी गोलिया बना ले तथा उसे हर एक इस मंत्र के साथ होम करते रहे यह आप १०८ बार कर सकते हैं। "ॐ श्री ह्रीं ऐं महालक्ष्मी स्वाहा और ॐ यक्षराज कुबेराए स्वाहा।"यह लक्ष्मी जी का आकर्षण करने के लिए एक उत्तम उपाए हैं

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(बरतंग) Plantain is astringent, demulcent, emollient, cooling, expectorant, antimicrobial, antiviral, antibacterial, astringent, antitoxin and diuretic. It is considered to be almost a panacea – a cure- all, and a quick search shows that is has historically been recommended as a treatment for just about everything, up to and including dog bites, ulcers, catarrh, ringworm, jaundice, epilepsy, liver obstructions, intermittent fever, and haemorrhoids.

It quickly staunches blood flow and encourages the repair of damage tissues. It is commonly prescribed for gastritis, peptic ulcers, diarrhoea, dysentery, irritable bowel syndrome (IBS), respiratory catarrh, soar throat and uterine tract bleeding.

Recommended Dosage : 5 to 10 g of dried seeds.

Arabic Name : Lisaan al-hamal
Chinese Name : Che qian zi
English Name : Car-track Plant, Plantain, Waybread, Broad-leaf Plantain
French Name : Grand Plantain
German Name : Breitwegerich, Breiter Wegerich, Großer Wegerich, Sohlenkraut, Wegebreit, Wegtritt
Hindi Name : Lahuriya
Latin name : Plantago major Linn.
Persian Name : Bartang, Khargholah, Charghoon
Urdu Name : Bartang

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