Sunday 30 September 2018

काकड़ासिंगी

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काकड़ासिंगी के फल को  टी.बी. के रोग से पीड़ित रोगी को दिया जाता है। जापान में इसके फलों के रस से मोम बनाई जाती है जिससे मोमबत्तियां बनती हैं।
विभिन्न रोगों में सहायक : 
1. सूजन: काकड़ासिंगी कोष को स्वस्थ गाय के मूत्र के साथ पीसकर लेप बनाकर सूजन वाले अंग पर लगाने से सूजन मिटती है।

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2. पाचनशक्ति कमजोर होना:
  • पिप्पली का चूर्ण और काकड़ासिंगी के कोष का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम भोजन करने से आधे घंटे पहले सेवन करने से पाचनशक्ति मजबूत होती है।
  • काकड़ासिंगी और छोटी पीप्पली को शहद के साथ मिलाकर चाटने से पाचनशक्ति बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
3. मसूढ़ों से खून आना:
  • काकड़ासिंगी कोष का काढ़ा बनाकर रोजाना सुबह-शाम गरारे करने से रोग में लाभ होता है।
  • ककड़ासिंगी का गाढ़ा काढ़ा बनाकर मसूढ़ों पर लेप करें और इस लेप को कुछ देर रखने के बाद पानी से कुल्ला करें। इसका प्रयोग सुबह-शाम करने से मसूढ़ों से खून व पीव आना बंद हो जाता है।
4. उल्टी (वमन):
  • नागरमोथा और काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच शहद के साथ खाने से उल्टी बंद होती है।
  • ककड़ासिंगी और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह आधे से 2 ग्राम की मात्रा में चाटें। इससे कफमिचली व उल्टी का रोग दूर होता है।
5. चोट या घाव से खून बहना: काकड़ासिंगी कोष का बारीक चूर्ण बनाकर चोट या घाव पर बांधने से खून का बहना रुक जाता है।
6. प्रवाहिका (पेचिश): दही के साथ आधा चम्मच काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण दिन में 3 से 4 बार खाने से पेचिश (दस्त में खून व आंव का आना) ठीक होता है।
7. नपुंसकता: आधा चम्मच काकड़ासिंगी कोष का बारीक चूर्ण एक कप दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में ही नपुंसकता दूर होती है।
8. हिचकी: काकड़ासिंगीहींगगेरूसोंठमुलहठी व नागरमोथा। इन सभी के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है। इसका प्रयोग सांस रोग में भी लाभकारी होता है।
9. दस्त:   

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  • काकड़ासिंगी को पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और यह चूर्ण लगभग 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ बच्चे को चटाएं। इससे दस्त रोग में लाभ मिलता है।
  • बेलगिरी का चूर्ण और काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच दिन में 3 बार लें। इससे दस्त का अधिक आना कम होता है।
10. आमातिसार: आमातिसार के रोगी को काकड़ासिंगी का चूर्ण घी में भूनकर आधा से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम मिश्री के साथ लेना चाहिए। इसके सेवन से दस्त में आंव का आना बंद हो जाता है।
11. संग्रहणी (पेचिशप्रवाहिकादस्त में आंव व खून आना):
  • ककड़ासिंगी के चूर्ण को घी में भून लें और इसमें आधे से 2 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें। इसके प्रयोग से संग्रहणी (पेचिश) रोग ठीक होता है।
  • काकड़ासिंगी के 10 ग्राम चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करें। इसके सेवन से पेचिश रोग में लाभ मिलता है।
12. प्रदर रोग: काकड़ासिंगी के 15 ग्राम बारीक चूर्ण में 15 ग्राम खांड मिला लें और इसे 3 ग्राम की मात्रा में कच्चे दूध के साथ सुबह के समय सेवन करें। इसके सेवन से प्रदर रोग ठीक होता है।
13. पेट का दर्द: काकड़ासिंगीअतीसपीपल और नागरमोथा को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को शहद के साथ सेवन करें। इसके सेवन से पेट दर्द दूर होता है।
14. अपरस: पुराने से पुराने त्वचा रोग में काकड़ासिंगी का लेप करना लाभकारी होता है।
15. खाज-खुजली: काकड़ासिंगी को पीसकर लेप करने से खाज-खुजली दूर होती है।
16. बच्चों के दांत निकलते समय का रोग : बच्चों में दांत निकलते समय बुखार, खांसी, दस्त एवं अन्य पेट के रोग उत्पन्न होते हैं। इस तरह के रोग उत्पन्न होने पर ककड़ासिंगी, अतीस व छोटी पीप्पली को बराबर मात्रा में लें और इसके चूर्ण बनाकर कपडे़ छान लें। यह चूर्ण 60 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार बच्चे को चटाएं। इससे रोग में पूर्ण लाभ मिलता है। यदि इस चूर्ण में नागरमोथा का भी चूर्ण मिला दिया जाए तो और अधिक लाभकारी हो जाता है। यह उल्टी आने के रोग को भी ठीक करता है।
17. दमा रोग या सांस रोग:
  • काकड़ासिंगी, सोंठ, पीपल, नागरमोथा, पोहकर की जड़, कचूर और कालीमिर्च इन सभी को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में खांड मिलाकर रोजाना सेवन करने से सांस व दमा रोग ठीक होता है। इसके चूर्ण के साथ यदि गिलोय, अड़ूसा व पंचमूल का काढ़ा बनाकर पीएं तो तेज दमा रोग नष्ट हो जाता है।
  • दमा की शिकायत होने पर काकड़ासिंगी के कोष और कायफल के चूर्ण को मिलाकर एक चम्मच शहद के साथ दिन में 2 बार खाने से दमा रोग ठीक होता है।
18. खांसी:
  • खांसी एवं सांस संस्थान के अन्य रोगों में काकड़ासिंगी, भारंगी, सोंठ, छोटी पीपल, कचूर और मुनक्का बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 180 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करें। इससे खांसी ठीक होती है।
  • आधा चम्मच काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 बार लेने से खांसी में आराम मिलता है। इसका प्रयोग बच्चों की खांसी में भी किया जाता है। बच्चे को एक चौथाई चम्मच की मात्रा में देना लाभकारी होता है।
  • काकड़ासिंगी, अतीस और मुलहठी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में रोजाना 3 से 4 बार चाटें। इससे खांसी ठीक होती है।
  • यदि किसी को खांसी हो तो काकड़ासिंगी और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और फिर इसकी गोलियां बना लें। इस गोली को चूसने से कफ वाली खांसी में लाभ मिलता है।
  • सूखी खांसी होने पर 10 ग्राम काकड़ासिंगी, 10 ग्राम सोंठ एवं 10 ग्राम बड़ी पीपल को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से सूखी खांसी में आराम मिलता है।
19. काली खांसी:  

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  • खाली खांसी से पीड़ित रोगी को 10 ग्राम काकड़ासिंगी, 10 ग्राम सोंठ और 10 ग्राम बड़ी पीपल को पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 1-1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए। इसको चाटने से सूखी व काली खांसी में आराम मिलता है।
  • काकड़ासिंगी, पीपल की जड़, सेंधानमक, बहेड़े का छिल्का और बबूल का गोंद 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें पानी मिलाकर चने के आकार की गोलियां बना लें। इन गोलियों को छाया में सुखाकर दिन में 1-1 गोली दिन में 3-4 बार चूसें। इसके चूसने से सभी प्रकार की खांसी ठीक होती है।
  • काली खांसी होने पर 10 ग्राम काकड़ासिगी, 10 ग्राम बहेड़े का छिल्का, 10 ग्राम कबाबचीनी और 10 ग्राम मुलहठी को पीसकर इसमें अदरक का रस मिलाकर चने के आकार की गोलियां बना लें और इसे छाया में सुखा लें। यह 1-1 गोली दिन में 2-3 बार चूसने से काली खांसी दूर होती है।
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20. बालरोग:
  • बच्चे को खांसी होने पर काकड़ासिंगी को पीसकर 120 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ चटाना चाहिए। इसके चाटने से खांसी में जल्दी आराम मिलता है।
  • 5 ग्राम कांकड़ासिंगी, 5 ग्राम अतीस और 5 ग्राम छोटी पीपल को पीसकर 240 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार शहद के साथ सेवन करने से रोग ठीक होता है।
  • काकड़ासिंगी और सागौन को दूध में पकाकर इस दूध को बच्चे के तलवों पर लेप करें। इससे बच्चों के सोते समय दांत चबाने की आदत ठीक छूट जाती है।

अभ्रक भस्म के उपयोग और फायदे

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अभ्रक के प्रकार / भेद : abhrak ke prakar

आयुर्वेदीय मतानुसार, पनाक, दर्दूर, नागे और वज्राभ्रक भेद से अभ्रक चार प्रकार का होता है। इन्हें आग में डालने से जिस अभ्रक के पत्ते खिल जायें उसे “पनाक” और जो अभ्रक आग में डालने से मेढक के समान (टर्र-टर्र) आवाज करे उसे “दर्दुर” तथा जो अभ्रक आग में डालने से साँप की तरह फुफकार छोड़े, उसे “नाग” एवं जो अभ्रक आग पर डालने से अपना रूप नहीं बदले तथा आवाज भी न करे, उसे “वज्र’ कहते हैं। वज्राभ्रक का ही विशेषतया उपयोग भस्म और रसायनादि में किया जाता है। वज्राभ्रेक का धान्याभ्रक बनाकर | भस्मादि कामों में लिया जाता है।
जो अभ्रक अंजन के समान काला हो और आग पर रखने से किसी तरह तिकृत न हो, वही “बज्राभ्रक” है। यह सर्वत्र हितकारक है। भस्मादिक काम में यही अभ्रक लेना उत्तम है।
अंजन समान कृष्णाभ्रक (बज्राभ्रक) वही होता है, जिसमें लौहांश अधिक हो। अच्छा कृष्णाभ्रक हिमालय तथा पंजाब में कांगड़ा जिले के नूरपुर तहसील की खानों में मिलता है और उ०प्र० में अल्मोड़ा के आगे बाघेश्वर में भी कहीं-कहीं मिलता है। कभी-कभी भूटान से भी यह अभ्रक आता है।

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अच्छे अभ्रक की पहचान :

जो अभ्रक श्रेष्ठ कृष्णवर्ण का, छूने से चिकना और देखने में चमकदार ढेले के रूप में हो तथा जिसके पत्र मोटे हों और वे सहज ही खुल जाते हों एवं जो तौल में भारी हो, वह अभ्रक सबसे अच्छा होता है।

अभ्रक भस्म के गुण / रोगों में लाभ : abhrak bhasma ke gun / labh

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अभ्रक भस्म अनेक रोगों को नष्ट करता है, देह को दृढ़ करता है एवं वीर्य बढ़ाता है। तरुणावस्था प्राप्त कराता और मैथुन करने की शक्ति प्रदान करता है। राजयक्ष्मा,कफक्षय, बढ़ी हुई खाँसी, उरःक्षत, कफ, दमा, धातुक्षय, विशेषकर मधुमेह, बहुमूत्र, बीसों प्रकार के प्रमेह, सोम रोग, शरीर का दुबलापन, प्रसूत रोग और अति कमजोरी, सूखी खाँसी, काली खाँसी, पाण्डु, दाह, नकसीर, जीर्णज्वर, संग्रहणी, शूल, गुल्म, आँव, अरुचि, अग्निमांद्य, अम्लपित्त, रक्तपित्त, कामला, खुनी अर्श (बवासीर), हृद्रोग, उन्माद, मृगी, भूत्रकृच्छ, पथरी तथा नेत्र-रोगों में यह भस्म लाभदायक सिद्ध हुई है। रसायन और वाजीकरण भी है।

सेवन की मात्रा और अनुपान :

1 से 2 रत्ती प्रातः-सायं रोगानुसार अनुपान अथवा शहद के साथ।

अभ्रक भस्म के उपयोग और फायदे : abhrak bhasma ke fayde / benefits

•   त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) में जो दोष-विशेष उल्बण अर्थात् बढ़े हुए हों, उन्हें शमित करने के लिए उचित अनुपान के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करना चाहिए|
•   शिलाजीत के साथ और कुष्ठ तथा रक्त-विकार में अभ्रक भस्म 1 रत्ती. बावची चूर्ण 4 रती खदिरारिष्ट के साथ दें।
•   उदर रोगों में कुमार्यासव के साथ इसका सेवन करना लाभदायक है।
•   राजयक्ष्मी की प्रारम्भिक अवस्था में जब रोगी कास और ज्वर से दुर्बल हो गया हो, उस अवस्था में प्रवाल पिष्टी, मृगशृङ्ग भस्म और गिलोय सत्त्व के साथ अभ्रक भस्म के नियमित सेवन से 80 प्रतिशत लाभ हुआ है। • रक्ताओं की कमी से उत्पन्न पाण्डु और कामला पर अभ्रक भस्म को मण्डूर भस्म और अमृतारिष्ट के साथ देने से बहुत लाभ होता है। आजकल डॉक्टर लोग शरीर में रक्त की कमी की पूर्ति दूसरों के रक्त का इंजेक्शन देकर करते हैं, किन्तु कभी-कभी इसके परिणाम भयंकर भी सिद्ध होते हैं। परन्तु आयुर्वेद में गुडूची सत्त्व के साथ, अभ्रक सेवन कराने से यह काम निरापद रूप से पूरा हो जाता है।
•   संग्रहणी में अभ्रक भस्म का सेवन कुटजावलेह के साथ करने से यह आँव रोग को समूल नष्ट कर शरीर को नीरोग बना देती है। वातजन्य शूल में अभ्रक भस्म का सेवन शंख भस्म में मिलाकर अजवायन अर्क के साथ करना परमोपयोगी है।
•   श्वास-रोग पुराना हो जाने पर रोगी बहुत कमजोर हो जाता है और बहुत खाँसने पर थोड़ा-सा चिकना सफेद कफ निकलता है तथा थोड़ा-सा भी परिश्रम करने से पसीना आ जाता है। ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म का सेवन पिप्पली चूर्ण के साथ मधु मिलाकर करना बहुत लाभदायक है। अथवा 1 तोला च्यवनप्राश चौथाई रत्ती स्वर्ण वर्क के साथ सेवन कराने से भी लाभ होता है।
•   सामान्य कास कि कफस्राव होने पर शृङ्ग भस्म या वासावलेह के साथ तथा शुष्क कास रोग में प्रवाल पिष्टी, सितोपलादि चूर्ण तथा मक्खन या मधु के साथ इस भस्म का सेवन कराने से भी लाभ होता है।
•   आँव (पेचिश) में कुटजारिष्ट के साथ, मन्दाग्नि में त्रिकटु (सोंठ, पीपल, मिर्च) चूर्ण के साथ तथा जीर्णज्वर में लघुवसन्तमालिनी के साथ अभ्रक भस्म विशेष लाभ करती है।
•   रक्तार्श (खूनी बवासीर) पुराना हो जाने पर बारम्बार रक्तस्राव होने लगता है। शरीर में थोड़ा भी रक्त उत्पन्न होने से रक्तस्राव होने लगता है। ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म शुक्ति पिष्टी के साथ देने से रक्तस्राव बन्द हो जाता है।
•   मानसिक दुर्बलता होने पर कार्य करने का उत्साह नष्ट हो जाता है। चित्त में अत्यधिक चंचलता रहती है। रोगी निस्तेज, चिन्ताग्रस्त और क्रोधी हो जाता है, ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म का सेवन मुक्तापिष्टी के साथ करना अधिक लाभप्रद है।
•   ह्रदय की दुर्बलता को नष्ट करने के लिए अभ्रक भस्म बहुत उपयोगी हैं। नागार्जुनाभ्र जो हृदय-पुष्टि के लिए ही प्रसिद्ध हैं, इसके गुणों में सहस्रपुटी अभ्रक भस्म का ही विशेष प्रभाव है। अभ्रक भस्म हृदय को उत्तेजना देने वाली है. किन्तु यह कपूर और कुचिला के समान हृदय को विशेष उत्तेजित नहीं करती। यह हृदय के स्नायुमंडल को सबल बनाकर हृदय में स्फूर्ति पैदा करती है। अभ्रक सहस्रपुटी 1-1 रत्ती को मधु में मिलाकर सेवन करने से हृदय रोग में अच्छा लाभ होता है।
•   पुरानी खाँसी, श्वास, दमा आदि रोगों में रोगी खाँसते-खाँसते या दमा के मारे परेशान हो जाता हो, स्वासनली या कण्ठ में क्षत (घाव) हो गया हो, ज्यादा खाँसने पर जरा-सा सफेदचिकना कफ निकल पड़ता हो, रोगी पसीना से तर हो जाता हो इन कारणों से दुर्बलता विशेष बढ़ गयी हो, तो अभ्रक भस्म, पिप्पली चूर्ण और मिश्री की चाशनी के साथ मिलाकर लेने से अच्छा लाभ करती है।
•   चिरस्थायी (बहुत दिनों का) अम्लपित्त रोग में अनेक दवा करके थक गए हों. अनेक डॉक्टर या वैद्य, हकीम असाध्य केहकर छोड़ दिये हों, पेट में दर्द बना रहता हो, हर वक्त वमन करने की इच्छा होती हो, कुछ खाते ही वमन हो जाय, वमन के साथ रक्त भी निकलता हो, तो ऐसी अवस्था में अभ्रक भस्म को अम्लपित्तान्तक लौह और शहद के साथ मिलाकर देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
•   प्रसूत रोग में देवदार्वादि क्वाथ अथवा दशमूल क्वाथ या दशमूलारिष्ट के साथ अभ्रक भस्म का सेवन लाभप्रद है।
•   धातुक्षीणता की बीमारी में च्यवनप्राश और प्रवाल पिष्टी के साथ इसका सेवन करना उत्तम हैं।
•   अभ्रक भस्म योगवाही है। अतः यह अपने साथ मिले हुए द्रव्यों के गुणों को बढ़ाती है। पाचन विकार को नष्ट कर आंत को सशक्त बनाने और रुचि उत्पन्न करने के लिए अभ्रक भस्म को मिश्रण देना अत्युत्तम है।
•   संग्रहणी में अभ्रपर्पटी (गगन पर्पटी) उत्तम कार्य करती है। मलावरोध तथा संचित मल के विकारों के लिये अभ्रपर्पटी का प्रयोग महोपकारी है।  
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अभ्रक भस्म से रोगों का उपचार : abhrak bhasma se rogon ka upchar

1) प्रमेह के लिए – ‘अभ्रक भस्म को पीपल और हल्दी के चूर्ण में मिला शहद (मधु) के साथ दें।
2) क्षय के लिए – सोना भस्म चौथाई रत्ती (अथवा वर्क) सितोपलादि चूर्ण या च्यवनप्राशावलेह में मिला न्यूनाधिक मात्रा में घी और शहद के साथ दें।
3) रक्तपित्त के लिए- अभ्रक भस्म को गुड़ या शक्कर और हरड़ का चूर्ण मिलाकर या इलायची का चूर्ण और चीनी मिलाकर दूर्वा-स्वरस के साथ दें।:  
https://indianjadibooti.com4) बवासीर (अर्क) पाण्डु और क्षय के लिए-दालचीनी, इलायची, नागकेशर, तेजपा, सोंठ, पीपर, मिर्च, आँवला, हरड़, बहेड़े को महिन चूर्ण,चीनी या मिश्री मिलाकर शहद के साथ हैं।  
5) भूत्रकृच्छ के लिए – इलायची, गोखरू, भूमि-आँवले का चूर्ण एवं मिश्री मिलाकर दूध के साथ हैं।  
6) जीर्णज्वर और भ्रम के लिए- पिपलामूल का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दें
7) नेत्र की ज्योति अढ़ाने के लिए – त्रिफला, हरड़, बहेड़ा, आँवला के चूर्ण और शहद के साथ दें। 
8) व्रण-नाश के लिए- मूर्वा का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दें।
9) बल-वृद्धि के लिए – विदारीकन्द का चूर्ण मिलाकर गाय के थारोष्ण दूध के साथ दें। 
10) अम्लपित्त में – आँमला चूर्ण डेढ़ माशा या आमला-रस 1 तोला के साथ दें। 
11) स्नायु दौर्बल्य में – अभ्रक भस्म 1 रत्ती को मकरध्वज आधी रत्ती के साथ मिलाकर मक्खन या मलाई के साथ दें। 
https://indianjadibooti.com12) हृदय रोग में – अभ्रक भस्म एक रत्ती को मोती पिष्टी 1 रत्ती और अर्जुनाल चूर्ण 4 रत्ती के साथ मधु में मिलाकर दें। 
13) वातव्याधि के लिए – सोंठ, पुष्करमूल, भारङ्गी और असगन्ध का चूर्ण मिलाकर शहद (मधु) के साथ दें।  
14) पित्त-प्रकोप में – दालचीनी, इलायची, तेजपात और नागकेशर का चूर्ण मिलाकर चीनी या मिश्री के साथ दें।
15) कफ-प्रकोप में – कायफल और पिप्पली के चूर्ण में शहद के साथ दें।  
16) अग्नि प्रदीप्त के लिए- यवछार , सुहागे की खील (फुला), सज्जीखार के चूर्ण में मिलाकर गर्म जल के साथ दें।  
https://indianjadibooti.com17) मूत्राघात और पथरी के लिए- मूत्रकृच्छ्र का अनुपान ठीक है।
18) पाण्डु, संग्रहणी और कुष्ठ के लिए – वायडिंग, त्रिकुटा और घी के साथ 2-4 रत्ती की मात्रा में अभ्रक भस्म सेवन करें। 
19) धातु बढ़ाने के लिए- सोना और चाँदी की भस्म चौथाई रत्ती या वर्क ,छोटी इलायची के चूर्ण और शहद (मधु) यो मक्खन के साथ दें। 

अभ्रकभस्म के नुकसान : abhrak bhasma ke nuksan (side effects)

1-अभ्रक भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-डॉक्टर की सलाह के अनुसार अभ्रक भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।
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गोदंती भस्म के गुण, मात्रा और सेवन विधि

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गोदंती भस्म एक ऐसी आयुर्वेदिक दवा है जिसे कई तरह की बीमारियों में इस्तेमाल किया जाता है, इसके इस्तेमाल से तेज़ बुखार, सर दर्द, मलेरिया, टाईफाइड, जीर्ण ज्वर या पुराना बुखार, ल्यूकोरिया, वैजीनल ब्लीडिंग, कैल्शियम की कमी, हड्डियों की कमज़ोरी, ब्लड प्रेशर जैसे कई तरह के रोग दूर होते हैं

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तो आईये जानते हैं कि गोदंती भस्म क्या है, कैसे बनती है और इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी जानकारी -

गोदंती एक तरह का खनिज है, इसे आयुर्वेद में गोदंती इस लिए कहा गया है क्यूंकि यह गो यानि गाय के दांत की तरह दीखता है. गोदंती को अंग्रेज़ी में Gypsum कहते हैं. यह एक तरह का सॉफ्ट पत्थर की तरह होता है

इसे गोदंती हरताल और हरताल गोदंती भस्म भी कहा जाता है. गोदंती भस्म बनाने के लिए गोदंती को पीसकर पाउडर बनाकर घृत कुमारी के रस घोटकर टिकिया बनाकर सुखा लिया जाता है और इसके बाद मिट्टी के बर्तन में रखकर तेज़ आँच देकर भस्म बनाया जाता है. इसकी भस्म सफ़ेद रंग की पाउडर होती है.

हम जो इसकी भस्म बनाते हैं थोड़ा अलग तरीके से बनाते हैं. सबसे पहले इसे अच्छी तरह धोकर मिटटी के बरतन में डालकर तेज़ आँच देते हैं. इसके बाद इसे चूर्ण करने के बाद घृतकुमारी या नीम के पत्तों के रस की भावना देकर टिकिया बनाकर सुखाकर दुबारा अग्नि देकर भस्म बनाते हैं, इस तरह से इसकी भस्म बहुत ही सॉफ्ट और वाइट बनती है

गोदंती भस्म के गुण-

गोदंती भस्म के गुणों की बात करें तो यह अंग्रेज़ी दवा पेरासिटामोल की तरह Antipyretic होता है, बुखार और सर दर्द को कम करने वाला, Anti-inflammatory, दर्द नाशक यानि Analgesic और कैल्शियम से भरपूर होता है

गोदंती भस्म के फ़ायदे- 

नयी पुरानी बुखार, खासकर पित्तज ज्वर या पित्त बढ़ने से होने वाली बुखार और सर दर्द के लिए इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेदिक डॉक्टर पेरासिटामोल की जगह पर प्रमुखता से इसका इस्तेमाल करते हैं

पुरानी बुखार, मलेरिया और टाइफाइड में दूसरी दवाओं के साथ इसका इस्तेमाल करना चाहिए

नेचुरल कैल्शियम होने से यह हड्डियों की सुजन, हड्डियों की कमज़ोरी, Osteoprosis, Low Bone Mineral Density जैसे रोगों में फ़ायदा करती है

ल्यूकोरिया, Vaginitis और अधीक ब्लीडिंग होने में दूसरी दवाओं के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है

मुँह के छालों में भी इसके इस्तेमाल से फ़ायदा होता है, इसके अलावा सुखी खांसी, ब्लड प्रेशर और हार्ट के लिए भी फायदेमंद है

गोदंती भस्म की मात्रा और सेवन विधि- 

250 mg से 1 ग्राम तक शहद के साथ या फिर रोगानुसार दूसरी दवाओं के साथ ले सकते हैं. यह ऑलमोस्ट सेफ दवा है, सही डोज़ में लेने से किसी तरह का कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है, इसे नवजात शिशु से लेकर बड़ों तक में इस्तेमाल किया जा सकता है.

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हरताल - परिचय , मात्रा एवं प्रयोग

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रंग : हरताल का रंग पीला होता है।

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स्वाद : इसका स्वाद फीका होता है।

स्वरूप : हरताल एक खनिज पदार्थ है। यह चार प्रकार का होता है।

वंशपत्री
तब की हरताल
गुवरिया हरताल
गोदन्ती हरताल इत्यादि।

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स्वभाव : यह गर्म होती है।

हानिकारक : हरताल का अधिक मात्रा में उपयोग करने से पेट में मरोड़ पैदा होता है।

दोषों को दूर करने वाला : घी और पीला हरड़, हरताल के दोषों को दूर करता है।

तुलना : मैनफल से हरताल की तुलना की जा सकती है।

मात्रा : 1 ग्राम।

गुण : हरताल मोटापे में बढ़े मांस तथा मस्सों को गिरा देती है, खुजली के दागों को मिटा देती है, प्यास बहुत बढ़ाती है, खून तथा त्वचा की खराबी को खत्म करती है, पेट के कीड़ों को मल के साथ बाहर निकाल देती है, बालों को गिराती है। यह गर्मी और विष को खत्म करने वाली है, कण्डू (खुजली), कुष्ठ (कोढ़) और मुंह के रोगों को खत्म करती है, खून के रोगों का नाश करती है। कफ पित्त, वात और फोड़ों को दूर करती है, चेहरे की चमक को बढ़ाती है, बुढ़ापे और मौत को जल्द आने नहीं देती है। चुटकी भर हरताल भस्म और उसकी छ: गुनी चीनी मिलाकर खाने से सभी प्रकार के वायु रोग दूर हो जाते हैं।

अशुद्ध अशोधित हरताल : यह आयु का नाश करती है, कफ और वात को बढ़ाती है। प्रमेह और ताप को उत्पन्न करती है, चेचक रोग को पैदा करती है। अशुद्ध हरताल पीली होती है और आग पर डालने से धुंआ देने लगती है। यह वात, पित्तादि दोषों को बढ़ाती है। शरीर में लंगड़ापन और कोढ (कुष्ठ) को पैदा करती है जिससे मृत्यु भी हो जाती है। अशुद्ध हरताल शरीर की सुन्दरता को खत्म करती है, बहुत ही जलन तथा अंगों की सिकुड़न और दर्द को भी दूर करती है।

जो हरताल सोने के समान रंग वाली भारी, चिकनी तथा अभ्रक के समान पत्र वाली है। वह शुद्ध हरताल है, यह हरताल अधिक गुणों से युक्त अच्छी होती है। हरताल आठ तरह की होती है लेकिन सबसे अच्छी गोदन्ती हरताल होती है। हरताल को हर तरह के खून के रोगों में आंबा हल्दी के साथ, मिर्गी में शुद्ध बच्छनाग के साथ, जलोदर रोगमें समुद्रफल के साथ तथा भगन्दर रोग में देवदाली के रस में देना चाहिए।

हरताल के उचित मात्रा में उपयोग से भगन्दर, उपदंश, विसर्पमण्डल (छोटी-छोटी फुंसियों का दल), कुष्ठ, पामा,चेचक, वातरक्त आदि रोग ठीक होते हैं। हरताल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में खाना चाहिए औरनमक, खटाई तथा मिर्च आदि को एकदम छोड़ देना चाहिए। हरताल श्वांस, खांसी और क्षय रोगों को दूर करती है तथा पित्त, वातरक्त, दमा, खुजली, फोड़ा और कोढ़ को दूर करती है।

विभिन्न रोगों में उपयोग :

1. बालों के रोग: 2 ग्राम पीली हरताल, 10 ग्राम शंख भस्म (राख), 10 ग्राम चूना गोला में मिलाकर बालों पर लगाएं। इसे लगाने के बाद 2-3 मिनट बाद इसे धो लें। इससे बालों के रोग दूर हो जाते हैं।

2. बालों का गिरना: हरताल 1 भाग, शंख का चूर्ण 5 भाग और ढाक की राख 1 भाग इन सबको मिलाकर लेप करने से बाल गिरना बंद हो जाते हैं।

3. कान के कीड़े: हरताल को गाय के पेशाब के साथ पीसकर कान में डालने से कान के सारे कीड़े समाप्त हो जाते हैं।

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तोदरी के बीजों का औषधीय प्रयोग (मात्रा एवं विधि)

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तोदरी के बीजों का औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि 


श्वसनिका-शोथ-तोदरी के बीजों का फाण्ट बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से श्वसनिका-शोथ में लाभ होता है। अतिसार-पञ्चाङ्ग का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से जीर्ण अतिसार में लाभ होता है।

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रक्तमेह-तोदरी पञ्चाङ्ग का फाण्ट बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से रक्तमेह में लाभ होता है। 

मूत्रकृच्छ्र-तोदरी का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

पूयमेह-7-7 ग्राम शतावरी, मूसली, केवाँच, तोदरी, तालमखाना, प्रवाल पिष्टी तथा रजत भस्म, 6-6 ग्राम विदारीकंद, छोटी इलायची, गोखरू तथा मुस्ता, 3-3 ग्राम सालिम, शिलाजीत, 6-6 ग्राम कंकोल तथा मोचरस, 12 ग्राम वंग भस्म तथा लगभग 200 ग्राम मिश्री के सूक्ष्म चूर्ण को मिलाकर 2-4 ग्राम की मात्रा में दाड़िमी शर्करा के साथ सेवन करने से पूयमेह तथा पित्तज प्रमेह में लाभ होता है। 

स्तन्यवर्धनार्थ-2-3 ग्राम तोदरी चूर्ण में समभाग शतावरी चूर्ण तथा मिश्री मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से स्तन्य की वृद्धि होती है। 

आमवात-तोदरी पञ्चाङ्ग को पीसकर लगाने से आमवात में लाभ होता है।

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 संधिवात-तोदरी के फूलों को जैतून या तिल तैल में पकाकर, छानकर तैल की मालिश करने से संधिवात में लाभ होता है। सामान्य दौर्बल्य-2-3 ग्राम तोदरी चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से दौर्बल्य का शमन होता है तथा शरीर की पुष्टि होती है। शोथ-तोदरी को पीसकर लेप करने से शोथ एवं व्रण का शमन होता है। 


Saturday 29 September 2018

जोड़ों और घुटनो के दर्द का रामबाण घरेलु उपचार

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जोड़ों - घुटनो के दर्द की रामबाण औषधि
( साइटिका - रिंगन बाय - गृध्रसी - गर्दन का दर्द ( सरवाईकाल स्पोंदिलाइटिस ) आदि की हानि रहित सुरक्षित चिकित्सा !
कोई भी आयुर्वेदिक तेल जैसे महानारायण तेल - या बाजार में बिकने वाले अन्य कोई भी बाम आदि इसके समान प्रभावशाली नहीं है !

एक बार आप इसे जरूर बनाए ... !
 250 ग्राम तेल ( सरसों या तिल का ) !
 500 ग्राम कायफल !
“ कायफल यह एक पेड़ की छाल है” जो देखने मे गहरे लाल रंग की खुरदरी लगभग 2 इंच के टुकड़ों मे मिलती है ! (कायफल खरीदने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://indianjadibooti.com/Jadistore/Kaiphal )  ! इसे लाकर कूट कर बारीक पीस लेना चाहिए ! जितना महीन / बारीक पीसोगे उतना ही अधिक गुणकारी होगा ) !

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कायफल पाउडर खरीदने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://indianjadibooti.com/Jadistore/Kaiphal-Powder

* बनाने की विधि :- एक लोहे / पीतल / एल्यूमिनियम की कड़ाही मे तेल गरम करें - आग धीमी रखें !
जब तेल गरम हो जाए तब थोड़ा थोड़ा करके कायफल का चूर्ण डालते जाएँ
जब सारा चूर्ण खत्म हो जाए तब कड़ाही के नीचे से आग बंद कर दे !
एक कपड़े मे से तेल छान ले ! जब तेल ठंडा हो जाए तब कपड़े को निचोड़ लें ! 
इस तेल को एक बोतल मे रख ले ! कुछ दिन मे तेल मे से लाल रंग नीचे बैठ जाएगा ! उसके बाद उसे दूसरी शीशी मे डाल ले !
इसे अधिक गुणकारी बनाने के लिए इस साफ तेल मे 25 ग्राम दालचीनी का मोटा चूर्ण डाल दे ! 
जो कायफल का चूर्ण तेल छानने के बाद बच जाए उसी को हल्का गरम करके उसी से सेके - उसे फेकने की जरूरत नहीं - हर रोज उसी से सेके !

जहां पर भी दर्द हो इसे हल्का गरम करके धीरे धीरे मालिश करें ! 
मालिश करते समय हाथ का दबाव कम रखें - उसके बाद सेक जरूर करे - बिना सेक के लाभ कम होता है !

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मालिश करने से पहले पानी पी ले ! 
मालिश और सेक के 2 घंटे बाद तक ठंडा पानी न पिए !


नीम दातुन दांतों और मसूड़ों के स्वास्थय के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प

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नीम दातुन का प्रयोग करें.... नीम दातुन आपके दाँतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखने का सबसे अच्छा विकल्प है,
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Friday 28 September 2018

IndianJadiBooti Devi Maa Navratri Pujan Samagri Kit

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  • Navratri is amongst the most important Hindu festivals. This auspicious festival is celebrated with great zeal and devotion throughout the country. In this Navaratri Pooja Kit we will give you all Items which can be used in Navratra Pooja. Buying this pooja kit is very useful for you because after getting this pooja kit you dont need to rush to market we will give you all the things in this kit 

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  • Ingredients: Goddess Durga Photo, Shree durga puja book, 16 shringar( shringar samagri), Chunri, Red altar cloth, Sriphal, Alta , Janeu, Chandan powder, Ashtagandha powder, Sindur, Kumkum powder/ Roli, Abir/ Gulal, Raksha Sutra/ Moli, Haldi powder ,Bhashm, Honey, Kapur, Agarbatti(incense), Akshat BOTH WHITE & YELLOW, Attar(perfume), Ghee, Diya-5( Mitte ka decorated), Rosewater, Gangajal, Gomutra, Dhoop sticks, Bati, Supari, Cardamom, Clove, Kopra/hari/dry coconut, Darbha grass 
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Monday 24 September 2018

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