Wednesday 12 February 2020

खस घास

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खस घास
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बुखार हो तो इसकी जड़ का काढ़ा पीयें . उसमें गिलोय और तुलसी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा . हल्का बुखार हो या रह रह कर बुखार आये , बुखार टूट रहा हो तो यह काढ़ा बहुत लाभदायक रहता है .
पित्त , एसिडिटी या घबराहट हो तो इसकी जड़ कूटकर काढ़ा बनाएं और मिश्री मिलाकर पीयें . चर्म रोग या एक्जीमा या एलर्जी हो तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ में 2-3 ग्राम नीम मिलाकर काढ़ा बनाएं और सवेरे शाम पीयें .
दिल संबंधी कोई परेशानी हो तो इसकी जड़ में मुनक्का मिलाकर काढ़ा बनाकर मसलकर छानकर पीयें .इससे होरमोंस भी ठीक रहेंगे और धड़कन की गति भी ठीक रहेगी . किडनी की परेशानी में खस और गिलोय का काढ़ा सवेरे सवेरे पीयें . हाय बी. पी . हो या एंजाइना की समस्या हो तो इसकी जड़ और अर्जुन की छाल का काढ़ा पीयें .
प्यास बहुत अधिक लगती हो तो इसकी जड़ कूटकर पानी में ड़ाल दें . बाद में छानकर पानी पी लें . यह शीतल अवश्य है ; परन्तु इसे लेने से जोड़ों का दर्द बढ़ता नहीं है .
खस का इस्तेमाल सिर्फ ठंडक के लिए ही नहीं होता, आयुर्वेद जैसी परंपरागत चिकित्सा प्रणालियों में औषधि के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा इससे तेल बनता है और इत्र जैसी खुशबूदार चीजों में भी इसका उपयोग होता है।


खस या खसखस ( Khus) एक सुगंधित पौधा है। इसका वानस्पतिक नाम वेटिवीरिआ जिजेनिऑयडीज (Vetiveria) है जिसकी व्युत्पत्ति तमिल के शब्द वेटिवर से हुई प्रतीत होती है। यह सुगंधित, पतले एकवर्ध्यक्ष (Racemes) का लंबे पुष्पगुच्छवाला वर्षानुवर्षी पौधा है। इसकी अनुशूकी का जोड़ा सीकुररहित होता है, जिसमें से एक अवृंत और पूर्ण तथा दूसरा वृंतयुक्त और पृंपुष्पी होता है। अवृंत अनुशूकि में बारीक कंटक होते हैं। इसका प्रकंद (rhizoma) बहुत सुगंधित होता है। प्रकंद का उपयोग भारत में इत्र बनाने और ओषधि के रूप में प्राचीन काल से हो रहा है। पौधे की जड़ों का उपयोग विशेष प्रकार का पर्दा बनाने में होता है जिसेखस की टट्टीकहते हैं। इसको ग्रीष्म ऋतु में कमरे तथा खिड़कियों पर लगाते हैं और पानी से तर रखते हैं जिससे कमरे में ठंडी तथा सुगंधित वायु आती है और कमरा ठंडा बना रहता है। प्रकंद के वाष्प आसवन से सुगंधित वाष्पशील तेल प्राप्त होता है जिसका उपयोग इत्र बनाने में होता है। फूलों की गंध को पकड़ रखने की इसमें क्षमता पर्याप्त होती है। https://indianjadibooti.com/Jadistore/Khus-Root
यह सघन गुच्छेदार घास राजस्थान एवं भारत के अन्य राज्यों में स्वजात उगती पाई जाती है। राजस्थान में भरतपुर तथा अजमेर जिलों में यह खूब उगती है। इस पादप के मजबूत डंठल प्रकद से निकले हुए लगभग 2 मीटर तक ऊंचे, सघन गुच्छों में, मजबूत स्पंजी जड़ों वाले होते हैं। इसकी जड़ों से प्राप्त तेल इत्र उद्योग में प्रसाधन सामग्री बनाने साबुन का सुगंध प्रदान करने में प्रयुक्त होता है। खस तेल का अध्याम, शूल दुराग्राही उल्टियों में वातानुलोमक के रूप में प्रयोग होता है। यह उद्दीपक, स्वेदनकारी शीतलक माना जाता है। इसके अतिरिक्त आमवात, कटिवेदना मोच में भी इससे मालिश करने पर आराम मिलता है। https://hi.wikipedia.org/…/%E0%A4%96%E0%A4%B8%E0%A4%96%E0%A…
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खस एक सुगन्धित घास होती है. खस को अंग्रेजी में Vetiver कहा जाता है, जोकि खस का तमिल शब्द है. गुच्छों में उगने वाले इस पौधे की ऊंचाई 5-6 फीट तक हो सकती है. इसके पौधे देखने में सरकंडे या सरपत के पौधे जैसे लगते हैं.
खस की जड़ों (Khus roots) से निकले तेल का प्रयोग परफ्यूम, इत्र और सुगन्धित तेल, शर्बत, दवाइयाँ, साबुन और सौन्दर्य प्रसाधन आदि बनाने में किया जाता है. खस के इत्र का अरब अन्य देशों में निर्यात भी किया जाता है.
खस का पौधा पानी वाली जगह जैसे झील, तालाब, नदी आदि के किनारे अपने आप उग आता है. उत्तर भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार दक्षिण भारत में केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में खस की खेती की जाती है.
खस (Vetiver) का प्रयोग गर्मियों में चलने वाले कूलर फैन में महकने वाली घास के रूप में किया जाता है. लकड़ी की छीलन के बीच में इसे लगाने से कूलर से बढ़िया भीनी भीनी तरावट वाली खुशबू आती है.
खस की ऊपरी घास काटकर नीचे की घास से खस के पर्दे बनाये जाते हैं, जिसे खस की टट्टी कहा जाता था. पहले लोग गर्मियों में घर की खिडकियों में खस के पर्दे लगाकर उन्हें पानी से भिगोये रखते थे, जिससे गर्मियों की लू भी ठंडी, महकदार हवा में बदल जाती थी. https://indianjadibooti.com/Jadistore/Khus-Root
खस के फायदे – VETIVER BENEFITS IN HINDI :
ठंडी तासीर की वजह से खस का प्रयोग गर्मियों में खस का शरबत बनाने में किया जाता है. यह शर्बत पीने से प्यास बुझती है, शरीर की जलन मिटती है, दिमाग और शरीर में तरावट आती है गर्मियों के त्वचा रोग भी नष्ट होते हैं.
इसके अलावा खस (Vetiver) का प्रयोग ह्रदय रोग, उलटी, त्वचा रोग, बुखार, धातुदोष, सिरदर्द, रक्त विकार, पेशाब की जलन, सांस के रोग, पित्त रोग, मांसपेशियों की ऐंठन, हार्मोनल समस्याओं में भी फायदेमंद है.
खस के तेल की मालिश करने से कमरदर्द, मोच में आराम मिलता है. खस के तेल का अरोमाथेरेपी में भी प्रयोग किया जाता है. खस की खुशबु से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, नर्वस सिस्टम शांत होता हैं और डर, असुरक्षा की भावनायें दूर होती है. खस के तेल की महक स्ट्रेस दूर करने, नींद लाने में सहायक होती है.
खस के पौधे लगाने का सबसे बड़ा फायदा तो पर्यावरण को होता है. सदियों से जानकार भारतीय किसान खस के पौधे लगाकर मृदा संरक्षण (soil conservation) यानि भूमि के कटाव रोकने, जल शुद्धिकरण जल संरक्षण (water conservation) करते रहे हैं. https://indianjadibooti.com/Jadistore/Khus-Root
 

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