Tuesday 27 November 2018

सिंघाड़ा - SINGHARA - WATER CHESTNUT

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सिंघाड़ा को सीगोड़ा, सिंघाण, शृंगाटक या पानीफल भी कहा जाता है I यह पानी में पसरने वाली एक लता में पैदा होने वाला एक तिकोने आकार का फल है...... इसके सिर पर सींगों की तरह दो काँटे होते हैं...... इसको छील कर इसके गूदे को सुखाकर पीसकर आटा भी बनाया जाता है जो उपवास में फलाहार के रूप में काम आता है.....सिंघाड़ा भारतवर्ष के प्रत्येक प्रांत में तालों और जलाशयों में रोपकर लगाया जाता है.....इसकी जड़ें पानी के भीतर दूर तक फैलती है.... इसके लिये पानी के भीतर कीचड़ का होना आवश्यक है, कँकरीली या बलुई जमीन में यह नहीं फैल सकता...... अबीर बनाने में भी यह आटा काम में आता है........



औषधीय उपयोग
एनीमिया, ब्रोंकाईटिस, लेप्रोसी जैसे रोगों में यह फल किसी रामबाण से कम नहीं है .....इसमें पाया जाने वाला मैग्नीज और आयोडीन, थाइरोइड ग्रंथि को स्वस्थ रखते है.....सिंघाड़े के आटे के सेवन से खांसी से सम्बंधित समस्या में आराम मिलता है, वही अस्थमा रोगियो के लिए सिंघाड़े का आटा वरदान से कम नहीं है......अस्थमा के रोगीयों को 1 चम्मच सिंघाड़े के आटे को ठंडे पानी में मिलाकर नियमित सेवन करने से काफी लाभ मिलता है........
खून में उपस्थित गंदगी और विषैले पदार्थो को दूर करने के लिए भी सिंघाड़ा एक बेहतर औषधि है ......सिंघाड़े के आटा को नीबू के रस के साथ मिला ले और इसे एक्जीमा (खुजली) वाली जगह पर लगाने से काफी आराम मिलता है...
अपने औषधीय गुणों के कारण यह फल खसरा जैसे रोग के लिए भी अत्यंत लाभकारी होता है .....सिघाड़े का सेवन बालो को काला और मजबूत बनाता है ...।

सावधानी.….अगर कब्ज की परेशानी हो तो सिंघाड़े को न खाए ....सिंघाड़े को खाने के बाद तुरंत पानी ना पियें .....सिंघाड़े के अत्याधिक सेवन से पेट दर्द हो सकता है |




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