Thursday, 1 November 2018

अर्श रोग (बवासीर) (PILES OR HEAMORRHOIDS)



यह गुदा मार्ग की बीमारी है। इस रोग के होने का मुख्य कारण कब्ज होता है। अधिक मिर्च मसाले एवं बाहर के भोजन का सेवन करने के कारण पेट में कब्ज उत्पन्न होने लगती है जो मल को अधिक शुष्क एवं कठोर करती है इससे मल करते समय अधिक जोर लगना पड़ता है और अर्श (बवासीर) रोग हो जाता है।




यह कई प्रकार की होती है, जिनमें दो मुख्य हैं- खूनी बवासीर और वादी बवासीर। यदि मल के साथ खून बूंद-बूंद कर आये तो उसे खूनी बवासीर कहते हैं। यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और उससे मल के साथ खून न आए तो उसे वादी बवासीर कहते हैं।

अर्श (बवासीर) रोग में मलद्वार पर मस्से निकल आते हैं और उनमें सूजन और जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है। रोगी को कहीं बैठने उठने पर मस्से में तेज दर्द होता है। बवासीर की चिकित्सा देर से करने पर मस्से पककर फूट जाते हैं और उनमें से खून, पीव आदि निकलने लगता है।


रोग के प्रकार :

अर्श (बवासीर) 6 प्रकार का होता है- पित्तार्श, कफार्श, वातार्श सन्निपातार्श, संसार्गर्श और रक्तार्श (खूनी बवासीर)

1. कफार्श : कफार्श बवासीर में मस्से काफी गहरे होते है। इन मस्सों में थोड़ी पीड़ा, चिकनाहट, गोलाई, कफयुक्त पीव तथा खुजली होती है। इस रोग के होने पर पतले पानी के समान दस्त होते हैं। इस रोग में त्वचा, नाखून तथा आंखें पीली पड़ जाती है।

2. वातजन्य बवसीर : वात्यजन अर्श (बवासीर) में गुदा में ठंड़े, चिपचिपे, मुर्झाये हुए, काले, लाल रंग के मस्से तथा कुछ कड़े और अलग प्रकार के मस्से निकल आते हैं। इसका इलाज न करने से गुल्म, प्लीहा आदि बीमारी हो जाती है।
3. संसगर्श : इस प्रकार के रोग परम्परागत होते हैं या किसी दूसरों के द्वारा हो जाते हैं। इसके कई प्रकार के लक्षण होते हैं।

4. पितार्श : पितार्श अर्श (बवासीर) रोग में मस्सों के मुंख नीले, पीले, काले तथा लाल रंग के होते हैं। इन मस्सों से कच्चे, सड़े अन्न की दुर्गन्ध आती रहती है और मस्से से पतला खून निकलता रहता है। इस प्रकार के मस्से गर्म होते हैं। पितार्श अर्श (बवासीर) में पतला, नीला, लाल रंग का दस्त (पैखाना) होता है।

5. सन्निपात : सन्निपात अर्श (बवासीर) इस प्रकार के बवासीर में वातार्श, पितार्श तथा कफार्श के मिले-जुले लक्षण पाये जाते हैं।

6. खूनी बवासीर : खूनी बवासीर में मस्से चिरमिठी या मूंग के आकार के होते हैं। मस्सों का रंग लाल होता है। गाढ़ा या कठोर मल होने के कारण मस्से छिल जाते हैं। इन मस्सों से अधिक दूषित खून निकलता है जिसके कारण पेट से निकलने वाली हवा रुक जाती है।

भोजन और परहेज :

क्या खाएं :
बवासीर में मक्खन, मलाई, दूध तथा मिश्री जैसे पौष्टिक व संतुलित भोजन करें। सुबह घूमना (टहलना) चाहिए तथा जितना सम्भव हो काम करना चाहिए। शाली चावल, पुराने चावल, मूंग की दाल, चना अथवा कुलथी की दाल, कच्चा पपीता, पका हुआ बेल, केले का फूल, लहसुन, आंवला, इलायची तथा किशमिश खाने से रोग में लाभ होता है। इस रोग में पानी अधिक पीयें।

क्या न खाएं :
लाल मिर्च, तेल, खटाई, अधिक गर्म व मसाले वाले भोजन (खाना) तथा रोग के प्रतिकूल भोजन न करें। उड़द, सरसों, पिट्टी, तिल, शराब, बेलगिरी, पोइ का साग, घिया, मछली, मांस आदि न खायें। अधिक गरिष्ठ भोजन न करें।

विभिन्न औषधियों से उपचार-  (नोट : एक समय में एक ही उपचार विधि प्रयोग में लें)

1. हाऊबेर : हाऊबेर, हींग, तथा चित्रक इनको बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसके चूर्ण को प्रतिदिन सुबह-शाम 3 ग्राम छाछ के साथ पीने से अर्श (बवासीर) विकृति नष्ट होती है।

2. मक्खन : मक्खन निकालकर इसके छाछ में थोड़ा-सा सेंधानमक और जीरा मिलाकर पीने से अर्श (बवासीर) रोग ठीक होता है।
गाय के दूध का मक्खन और तिल का सेवन करने से अर्श (बवासीर) में लाभ होता है।
मक्खन में शहद व खड़ी शक्कर मिलाकर खाने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
मक्खन, नागकेसर और खड़ी शक्कर मिलाकर खाने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।

3. दारूहल्दी : दारूहल्दी का तना, जड़ और फल समभाग में मिलाकर लेप तैयार करें। इसे गुदा और मस्सों पर लगाने से रोग में बहुत लाभ मिलता है।

4. हरी मेथी : यह बवासीर ग्रस्त रोगी के लिए फायदेमंद है। अगर रक्त आ रहा हो तो इसे काले अंगूर के साथ मेथी के रस में समान मात्रा मे लेने से रोगी ठीक हो जाता है।

5. मालकांगनी : मालकांगनी के बीजों को गोमूत्र (गाय के पेशाब) में पीसकर खुजली वाले अंग पर नियमित रूप से लगाने पर खूनी बवासीर में आराम मिलता है।

6. अजवायन : अजवायन के चूर्ण में सेंधानमक और छाछ मिलाकर पीने से कब्ज दूर होती है।
अजवायन और पुराना गुड़ कूटकर 4 ग्राम रोज सुबह गर्म पानी के साथ लें।
अजवायन देशी, अजवायन जंगली और अजवायन खुरासानी को बराबर मात्रा में लेकर महीन पीस लें और मक्खन में मिलाकर मस्सों पर लगायें। इसको लगाने से कुछ दिनों में ही मस्सें सूख जाते हैं।

7. पिप्पली : पिप्पली का चूर्ण लगभग आधा ग्राम और जीरा 1 ग्राम को सेंधानमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर नष्ट होता है।

8. कचनार की छाल : कचनार की छाल का चूर्ण 3 ग्राम छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से अर्श (बवासीर) में खून का निकलना बन्द हो जाता है।
कचनार की एक चम्मच छाल को एक कप के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से बवासीर में होने वाले खून बन्द हो जाते हैं।

9. त्रिफला : त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आंवला) का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में रोजाना रात को हल्के गर्म दूध में मिलाकर पीने से कब्ज दूर होती है।

10. चंदन: चंदन, चिरायता, जवांसा और सोंठ का काढ़ा बनाकर पीने से अर्श (बवासीर) में खून का निकलना बन्द होता है।

11. सूखे अंजीर : सूखे अंजीर के 3-4 दाने को शाम के समय जल में डालकर रख दें। सुबह उन अंजीरों को मसलकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट खाने से अर्श (बवासीर) रोग दूर होता है।

12. नीम : नीम के पके हुए फल को छाया में सुखाकर इसके फल का चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण सुबह जल के साथ खाने से बवासीर रोग ठीक होता है।
लगभग 50 मिलीलीटर नीम का तेल, कच्ची फिटकरी 3 ग्राम, चौकिया सुहागा 3 ग्राम को पीस लें। शौच के बाद इस लेप को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से मिट जाते हैं।
नीम के बीज, बकायन की सूखी गिरी, छोटी हरड़, शुद्ध रसौत 50-50 ग्राम, घी में भूनी हींग 30 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें 50 ग्राम बीज निकली हुई मुनक्का को घोंटकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें, 1 से 4 गोली को दिन में 2 बार बकरी के दूध के साथ या ताजे लेने से बवासीर में लाभ मिलता हैं, और खूनी बवासीर में खून का गिरना बन्द हो जाता है।
नीम की गिरी का तेल 2-5 बूंद तक शक्कर (चीनी) के साथ खाने से या कैप्सूल में भर कर निगलने से लाभ मिलता है। इसके सेवन के समय केवल दूध और भात का प्रयोग करें।
नीम की बीज की गिरी, एलुआ और रसौत को बराबर भाग में कूटकर झड़बेरी जैसी गोंलियां बनाकर रोजाना सुबह 1-1 गोली नीम के रस के साथ बवासीर में लेने से आराम मिलता है।
नीम के बीजों की गिरी 100 ग्राम और नीम के पेड़ की छाल 200 ग्राम को पीसकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर 4-4 गोली दिन में 4 बार 7 दिन तक खिलाने से तथा नीम के काढ़े से मस्सों को धोने से या नीम के पत्तों की लुगदी को मस्सों पर बांधने से लाभ मिलता है।
100 ग्राम सूखी नीम की निबौली 50 मिलीलीटर तिल के तेल में तलकर पीस लें, बाकी बचे तेल में 6 ग्राम मोम, 1 ग्राम फूला हुआ नीला थोथा मिलाकर मलहम या लेप बनाकर दिन में 2 से 3 बार मस्सों पर लगाने से मस्से दूर हो जातें हैं।
फिटकरी का फूला 2 ग्राम और सोना गेरू 3 ग्राम, नीम के बीज की गिरी 20 ग्राम में घी या मक्खन मिलाकर या गिरी का तेल मिलाकर घोट लें, इसे मस्सों पर लगाने से दर्द तुरन्त दूर होता हैं और खून का बहना बन्द होता है।
50 ग्राम कपूर, नीम के बीज की गिरी 50 ग्राम को दोनों का तेल निकालकर थोड़ी-सी मात्रा में मस्सों पर लगाने से मस्सें सूखने लगते हैं।
नीम की गिरी, रसौत, कपूर व सोना गेरू को पानी पीसकर लेप करें या इस लेप को एरण्ड के तेल में घोंटकर मलहम (लेप) करने से मस्से सूख जाते हैं।
नीम के पेड़ की 21 पत्तियों को भिगोई हुई मूंग की दाल के साथ पीसकर, बिना मसाला डालें, घी में पकाकर 21 दिन तक खाने से और खाने में छाछ और अधिक भूख लगने पर भात खाने से बवासीर में लाभ हो जाता है। ध्यान रहे कि नमक का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
नीम के बीजों को तेल में तलकर, उसी में खूब बारीक पीस लें। इसके बाद फुलाया हुआ तूतिया डालकर मस्सों पर लेप करना चाहिए।
पकी नीम की निबौंली के रस में 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर रोजाना सुबह सात दिन तक खाने से बवासीर नष्ट हो जाता है।

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13. चिड़चिड़े : चिड़चिड़े की जड़ और कालीमिर्च दोनों को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर जल के साथ पीने से अर्श रोग ठीक होता है।

14. इन्द्रयव : इन्द्रयव का काढ़ा बनाकर काढ़े में सोंठ का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर का रोग ठीक होता है।

15. कुंकुम : कुंकुम की जड़ों को जल के साथ पीसकर अर्श (बवासीर) के मस्सों (दानों) पर लगाने से पीड़ा व जलन मिटती है।

16. खजूर का बीज :खजूर के बीजों को जलाकर उसके धुंए से अर्श (बवासीर) के मस्सों (दाने) को सेकने से मस्से नष्ट होते हैं।
खजूर के पत्तों को जलाकर भस्म (राख) बना लें। इसके भस्म (राख) 2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो से तीन बार जल के साथ खाने से खूनी बवासीर ठीक होता है।

17. गुग्गल : गुग्गल को जल के साथ पीसकर अर्श (बवासीर) के मस्सों पर लगाने से मस्से जल्द नष्ट होते हैं।

18. चक्रमर्द (पंवाड़) : चक्रमर्द (पंवाड़) के बीजों को जल के साथ पीसकर अर्श (बवासीर) के मस्सों पर लगाने से मस्सा ठीक होता है।

19. सत्यानाशी : सत्यानाशी की जड (ताजा), सेंधानमक और चक्रमर्द के बीज इन सभी को 1-1 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छाछ के साथ पीने से अर्श (बवासीर) रोग नष्ट होता है।

20. बकायन का फल :बकायन के सूखे बीजों को कूटकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से खूनी-वादी दोनों प्रकार की बवासीर में लाभ मिलता है।
बकायन के बीजों की गिरी और सौंफ दोनों को बराबर मात्रा में पीसकर मिश्री मिलाकर दो ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से बवासीर में लाभ मिलता है।
बकायन के बीजों की गिरी में समान मात्रा में एलुआ व हरड़ मिलाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को कुकरौंधे के रस के साथ घोटकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बनाकर सुबह-शाम 2-2 गोली जल के साथ लेने से बवासीर में खून आना बन्द हो जाता है तथा इससे कब्ज दूर हो जाती है।

21. अपामार्ग (चिरचिटा) : अपामार्ग के बीजों को पीसकर उनका चूर्ण तीन ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून पड़ना बन्द हो जाता है।
अपामार्ग की 6 पत्तियां, 5 कालीमिर्च, को जल के साथ पीस-छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है।
पित्तज या कफ युक्त खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के धोवन के साथ पीस-छानकर दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी है।
चिरचिटा की 25 ग्राम जड़ों को चावल के पानी में पीसकर बकरी के दूध के साथ दिन में तीन बार लेने से खूनी बवासीर नष्ट हो जाता है।
अपामार्ग का रस निकालकर या इसके 3 ग्राम बीज का चूर्ण बनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से बवासीर में खून का निकलना बन्द हो जाता है।
अपामार्ग (ओंगा) का जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीयें। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बन्द हो जाता है।

22. अमलतास : अमलतास का काढ़ा बनाकर उसमें सेंधानमक और घी मिलाकर उस काढ़े को पीने से खून का बहना बन्द होता है तथा बवासीर रोग ठीक होता है।
अमलतास का गूदा 40 ग्राम 375 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में पकायें। पानी का रंग लाल होने पर उसे उतारकर छान लें और उसके पानी में सेंधानमक 6 ग्राम तथा गाय का घी 20 ग्राम मिलाकर ठंड़ा करके पीयें। इसे पीने से तीन चार दिन में ही खूनी बवासीर में खून का गिरना बन्द हो जाता है।
10 ग्राम अमलतास की फलियों का गूदा, 6 ग्राम हर्र की दाल और 10 ग्राम मुनक्का (काली द्राक्ष) का आधा सेर पानी में अष्टमांश काढ़ा बनाकर रोज सुबह देना चाहियें। चार दिन में अर्श नरम पड़ जाता है। रक्त-पित्त यानी नस्कोरे फूटकर खून बहने, पेशाब साफ न होने और ज्वर में भी यह काढ़ा दिया जाता हैं। अवश्य लाभ होता है। इससे दस्त साफ होकर भूख भी लगती है।

23. अशोक :अशोक के पेड़ की छाल और फूलों को मिलाकर थोड़ा-सा पीसकर दोनों को जल में रात भर भिगो दें। इस जल को सुबह छानकर पीने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) ठीक होता है।
अशोक की छाल का 40-50 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से रक्तार्श का खून बन्द हो जाता है।
अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर 30 ग्राम मात्रा को रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह पानी छानकर पी लें। इसी प्रकार सुबह का भिगोया हुआ शाम को पी लें। इससे खूनी बवासीर में शीघ्र आराम मिलता है।

24. आयापान : बवासीर में आयापान पत्तों को पीसकर लगाने तथा रस 10-20 ग्राम दिन में दो-तीन बार पीने से चमत्कारी लाभ होता है।

25. रीठा : रीठा के छिलके को कूटकर आग पर जला कर कोयला बना लें। इसके कोयले के बराबर मात्रा में पपरिया कत्था मिलाकर चूर्ण बनाकर रखें। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में लेकर मलाई या मक्खन में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से मस्सों में होने वाली खुजली व जख्म नष्ट होते हैं।
रीठे के फल में से बीज निकालकर फल के शेष भाग को तवे पर भूनकर कोयला कर लें, फिर इसमें इतना ही पपड़िया कत्था मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर कपडे़ से छान लें। इसमें से एक सौ पच्चीस मिलीग्राम औषधि सुबह-शाम मक्खन या मलाई के साथ सात दिन तक सेवन करें। जब तक दवा चले तब तक नमक और खटाई नहीं खानी चाहिए। इससे बवासीर ठीक हो जाती है।
रीठा के छिलके को जलाकर भस्म बनायें और 1 ग्राम शहद के साथ चाटने से बवासीर में खून का गिरना बन्द हो जाता है।
रीठा के पीसे हुए छिलके को दूध में मिलाकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। प्रतिदिन सुबह-शाम 1-1 गोली नमक तथा छाछ के साथ लें।
रीठा के छिलके को जलाकर उसके 10 ग्राम भस्म (राख) में सफेद कत्था 10 ग्राम मिलाकर पीस लें। आधा से 1 ग्राम चूर्ण रोज सुबह पानी के साथ लें।

26. आम : आम की अन्त:छाल का रस दिन में 20-40 ग्राम तक दो बार रोगी को पिलायें। इससे बवासीर, रक्तप्रदर या खूनी दस्त के कारण होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है।
बवासीर में आम की गुठली की गिरी का चूर्ण एक से दो ग्राम दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
आम का रस आधा कप, मीठा दही 25 ग्राम और 1 चम्मच अदरक मिलाकर प्रतिदिन तीन बार पीयें। इससे बवासीर (अर्श) रोग दूर होता है।



27. हर्र : आधा चम्मच हर्र का चूर्ण गर्म पानी से सुबह-शाम खाने से बादी बवासीर बन्द हो जाती है।

28. मसूर की दाल : सुबह भोजन के साथ मसूर की दाल खाकर और ऊपर से एक गिलास खट्टी छाछ पीना लाभकारी होता है।

29. चांगेरी : बवासीर में चांगेरी के पंचांग को घी में सेंककर शाक बनाकर दही में सेवन करने से बवासीर नष्ट हो जाता है।
चांगेरी निशोथ, दन्ती, पलाश, चित्रक इन सभी की ताजी पत्तियों को समान मात्रा में लेकर घी में भूनकर, इस शाक को दही में मिलाकर सूखी बवासीर में देना चाहिए। इससे सूखी बवासीर नष्ट हो जाती है।

30. मिट्टी का तेल : शौच जाने के बाद पानी मे थोड़ा-सा मिट्टी का तेल मिलाकर गुदा धोने से बवासीर में लाभ होता हैं।

31. चौलाई : रक्तचाप, बलगम, बवासीर चौलाई की सब्जी प्रतिदिन खाते रहने से नष्ट हो जाते हैं।

32. अफसन्तीन : अफसन्तीन 40 ग्राम, कस्तूरी 1 ग्राम और भुनी हुई हींग 20 ग्राम को लेकर पानी मिलाकर इसकी 40 गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोलियां प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से बवासीर ठीक होता है।

33. आमचूर : आम का ताजा (नया) आमचूर 200 ग्राम, पांचों नमक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग और 3 वर्ष पुराना गुड़ या पुरानी मिश्री 50 ग्राम। इन सब को जल के साथ पीसकर चटनी बना ले। इसके चटनी को अकौआ के पत्ते पर लेपकर और उसे मिट्टी के पात्र में रखकर गजपुट में फूंक लें। पात्र ठंड़ा होने पर इसे निकालकर पीसें। इसे 2 से 3 ग्राम प्रतिदिन सुबह-शाम पानी के साथ खाने से अर्श (बवासीर) जल्द ठीक होती है।

34. बबूल : बबूल के बांदा को कालीमिर्च के साथ पीस लें। इस मिश्रण को पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर में खून का निकलना बन्द हो जाता है।   https://indianjadibooti.com

35. कलमीशोरा : कलमीशोरा 50 ग्राम और शुद्ध रसौत 50 ग्राम लेकर उसमें मूली का रस मिलाकर पेस्ट बनायें। इस पेस्ट को चने के बराबर गोलियां बनाकर सूखा लें। इसकी 3-4 गोलियां प्रतिदिन सुबह-शाम पानी के साथ खाने से बवासीर ठीक होता है।

36. निबौली की गिरी (नीम के बीज) : नीम के फलों का बीज, सफेद कत्था, बकायन और रसबन्ती को बराबर मात्रा में लेकर कूट लें तथा कपड़े से छानकर इसके लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लें। इसकी 2 से 4 गोली प्रतिदिन ताजा पानी या गाय के दूध के साथ सुबह-शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।
नीम के निंबोली (नीम का बीज) 10 ग्राम, रसौत 5 ग्राम और हरड़ 5 ग्राम इन सबको महीन कूट-पीसकर छान लेते हैं। इस चूर्ण में 1 कप गुलाब का जल मिलाकर चने के बराबर गोलियां बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम इसकी 2-2 गोलियां पानी के साथ खाने से बवासीर ठीक होता है।
नीम के कोमल पत्तियों को घी में भूनकर उसमें थोड़े-से कपूर डालकर टिकिया बना लें। टिकियों को गुदाद्वार पर बांधने से मस्से नष्ट होते हैं।

37. कुचला : शुद्ध कुचला लगभग आधा ग्राम और शहद 6 ग्राम मिलाकर चाटने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) जड़ से नष्ट होती है।   https://indianjadibooti.com
कुचला और अफीम को पानी के साथ पीसकर मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
अफीम और कुचला को बराबर में लेकर पानी में घिसकर मस्सों पर लेप करने से लाभ मिलता है।

38. एलुआ :एलुआ, निशोथ और सफेद कत्था एवं मूली के रस बराबर मात्रा में कूटकर इसे 24 घण्टे तक रखें। इसके मिश्रण से लगभग आधा ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसे 1 से 2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से वातार्श अर्श (बवासीर) ठीक होता है।
एलुआ 10 ग्राम, रसौत 10 ग्राम तथा शुद्ध गुग्गल 5 ग्राम इन सब में थोड़ा-सा मूली का रस मिलाकर पेस्ट बना लें। उस पेस्ट से चने के बराबर गोलियां बनाकर रखें। इसकी 1-1 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम ताजे पानी के साथ 20 दिन तक खाने से कब्ज खत्म कर बवासीर रोग ठीक होता है।

39. मोचरस : मोचरस, लोध्र, कमल, लालचंदन, लाजवन्ती और भुनी फिटकरी बराबर मात्रा में लेकर उसका चूर्ण बना लें। इसके 2 से 3 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन गाय के दूध के साथ सुबह-शाम खाने से खून का अधिक गिरना बन्द हो जाता है।

40. जिमीकन्द :शुद्ध जिमीकन्द 300 ग्राम, कालीमिर्च 6 ग्राम, हल्दी 6 ग्राम और बड़ी इलायची के बीज 2 ग्राम इन सभी को मिलाकर बारीक कूटकर चूर्ण बना लें। इसे 2 से 3 ग्राम की मात्रा में ठंड़े पानी के साथ प्रतिदिन तीन बार लेने से पुरानी बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है।
जिमीकन्द के छोटे-छोटे टुकड़े करके छाया में सुखाएं इसके बाद कूट-छानकर 10 ग्राम की मात्रा प्रात: सायं सेवन करें। सब प्रकार की बवासीर में लाभ करेगा।

41. कहरवा समई : कहरवा समई, गेरु और बबूल का गोंद 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट कर चूर्ण बनायें। इसे 1 से 2 ग्राम चूर्ण गाय के दूध में छाछ मिलाकर 2 से 3 सप्ताह तक पीयें। यह बादी बवासीर और खूनी बवासीर दोनों में लाभकरी होता है।

42. कुड़ा की छाल : कुड़ा की छाल 5 किलो की मात्रा में लेकर इसे मोटा-मोटा कूटकर 12 किलो पानी में उबालकर काढ़ा बनायें। एक चौथाई पानी बचने पर इसके काढ़े में 1 किलो गुड़ डालकर फिर हल्की आंच पर पकायें। यह जब गाढ़ा हो जाये तब इसे कूटकर छान लें। इसका सेवन सभी प्रकार के बवासीर में लाभकारी होता है।

43. बादाम : बादाम 10 ग्राम, आंवला, हल्दी, भांग 6-6 ग्राम और मैदा 10 ग्राम की मात्रा में पीसकर गुनगुना (हल्का गर्म) कर के बवासीर पर बांधने से अर्श (बवासीर) रोग ठीक होता है।

44. गांजा : गांजे को पीसकर गाय के घी के साथ मिलाकर मलहम बनाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जल्द सूख जाते हैं।

45. शहद : छोटी मक्खी को शहद और गाय का घी बराबर मात्रा में लेकर मस्सों पर लगायें। इस मिश्रण को बवासीर के मस्सों पर लगाने से कुछ सप्ताह में ही मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
रात्रि को सोते समय एक चम्मच त्रिफला-चूर्ण या अरण्डी का तेल एक गिलास दूध के साथ लेना चाहिए। इससे कब्ज दूर हो जाता है।

46. मुर्दासंख : मुर्दासंग 40 ग्राम, आलू 200 ग्राम, काई 400 ग्राम और छोटी इलायची के बीज 10 ग्राम लें। आलू को छीलकर तथा काई को निचोड़कर इसमें मुर्दासंख और इलायची मिलाकर बारीक कूटकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट से 10-10 ग्राम की टिकिया बना लें। टिकिया को कागज पर रखकर हल्का गर्म करके मस्सों पर रखकर पट्टी बांधे। इस प्रकार 2 से 4 दिन पट्टी बांधने से बवासीर ठीक होता है।  https://indianjadibooti.com

47. चित्रक : चित्रकमूल, कनेरमूल, कस्सी दन्तीमूल और सेंधानमक को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसके चूर्ण में आक के दूध की 7 बूंदे मिला लें तथा इसे तिल के तेल में पकाकर रखें। प्रतिदिन सुबह-शाम शौच क्रिया के बाद उस पके हुए पेस्ट को मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
चित्रक की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को तक्र (छाछ) के साथ सुबह-शाम भोजन से पहले पीने से बवासीर में लाभ होता है।
चित्रक की जड़ को पीसकर मिट्टी के बर्तन में लेपकर, इसमें दही जमाकर, फिर उसी बर्तन में बिलोकर उस छाछ को पीने से बवासीर मिट जाता है।
चित्रक (चीता) का जड़ आधा ग्राम से 2 ग्राम को दही के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम लेने से बवासीर ठीक होता है।
चीता की जड़ का चूर्ण लगभग 1-2 ग्राम की मात्रा में मट्ठे के साथ दिन में तीन बार लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।        https://indianjadibooti.com

48. थूहर का दूध : थूहर के दूध में हल्दी का बारीक चूर्ण मिलाकर उसमें सूत का धागा भिगोकर छाया में सुखा लें। इस धागे से मस्सों को बांधें, मस्से को धागे से बांधने पर 4-5 दिन तक खून निकलता है तथा बाद में मस्से सूख कर गिर जाते हैं। ध्यान रहे- इसका प्रयोग कमजोर रोगी पर न करें।

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