Saturday 23 June 2018

लकवा (Paralysis) क्या है, लकवा के लक्षण, कारण, सावधानियां व् घरेलु आयुर्वेदिक और प्राकर्तिक चिकित्सा द्वारा उपचार

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लकवा (Paralysis) क्या है:


लकवा एक गंभीर रोग है जिससे व्यक्ति का कोई भी हिस्सा सुन्न हो जाता है। कभी-कभी इसका उग्र रूप देखने में आता है। व्यक्ति का आधा हिस्सा विकृत हो जाता है, मुंह टेढ़ा हो जाता है, यहां तक कि व्यक्ति की बोलने-सुनने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। इस रोग का शीघ्र उपाय किया जाय तो व्यक्ति का पूर्णरूपेण ठीक होना कठिन हो जाता है। अतः इसका प्रकोप होते ही तुरंत किसी अच्छे चिकित्सक से इसका इलाज कराना चाहिए। अधिकांशतः यह रोग उच्च रक्तचाप बढ़ जाने से होता है।
पैरालिसिस / लकवा के कारण :
1)   साधारणतः यह रोग उन्हें होता है जो व्यक्ति अधिक मात्रा में वायु के पदार्थों का सेवन करते हैं या शीतल पदार्थों का सेवन करते हैं।
2)   अत्यधिक काम-क्रीड़ा में लिप्त रहनेवाले व्यक्तियों की धातु क्षीण होकर, खून आदि की कमी होने पर उन्हें यह रोग होता है।
4)   विषम आहार-पदार्थों का सेवन करने तथा अधिक व्यायाम या विपरीत आसन करने से भी यह रोग हो सकता है।
5)   उल्टी या दस्तों का अधिक हो जाना, मर्म-स्थानों पर आघात होना, मानसिक दुर्बलता, नाड़ियों एवं मांसपेशियों की दुर्बलता, रक्तचाप अधिक बढ़ जाने आदि कारणों से यह रोग उत्पन्न हो सकता है।
6)   आयुर्वेद के मत से इस रोग का मुख्य कारण वायु का प्रकुपित होना है।

पैरालिसिस / लकवा के प्रकार : Types of Paralysis

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यह रोग सारे शरीर पर हो सकता है। प्रायः शरीर का आधा हिस्सा रोगग्रस्त हो सकता है या केवल मुख का भाग (लकवा) रोगग्रस्त हो सकता है। इस रोग का हमला व्यक्ति पर कभी भी हो सकता है।
पक्षाघात के विविध नाम हैं जो इस प्रकार हैं
पक्षबध, पक्षाघात, अर्धांगवात, अर्धांगवध, एकांगवात, एक पक्षवध, हेमोप्लीजिया, फालिज
केवल वात-प्रकोप से जो पक्षाघात होता है, वह कष्टसाध्य होता है जो संसृष्ट वायु से पक्षाघात होता है, वह साध्य होता है तथा जो धातु-क्षय के कारण कुपित वात से पक्षाघात होता है, वह असाध्य होता है
1) मुंह का लकवा / Facial Paralysis गर्भिणी स्त्रियों में, प्रसूता स्त्रियों में, बालकों में, वृद्धों में रक्तक्षय होने पर उच्च स्वर से बोलने से, अति कठिन पदार्थ खाने से, हँसने और जमुंहाई लेने से, विषम बोझ उठाने से, विषम शयन पर सोने से, सिर, नासा, होंठ, कपोल, ललाट और नेत्र सन्धि में स्थित हुई वायु, कुपित होकर जब मुख को पीड़ित कर देती हैअर्दितकहलाती है।
मुंह का लकवा  में मुख टेढ़ा हो जाता है चेहरे के एक ओर की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं आधा चेहरा (टेढा) होता है, सिर चलायमान रहता है वाणी का ठीक निर्गम नहीं होता है नेत्रादि में विकृति होती है तथा जिस पार्श्व में अर्दित होता है उस पाश्र्व, कपोल और दाँतों में पीड़ा होती है।
2) पक्षाघात- इस दशा में आधे शरीर का घात होता है रोगी अपनी इच्छानुसार अर्ध शरीर की पेशियों का संकोच नहीं कर सकता है चेहरा बदल जाता है बोलने में रुकावट होती है तथा सम्वेदना में अन्तर जाता है
3) नरसिंहघात (Paraplegia) – यह शरीर के निचले अधोभाग का रोग है। इसमें कटि (कमर) प्रदेश से लेकर पैरों तक नीचे के अंग प्रत्यंगों की क्रिया शक्ति नष्ट हो जाती है।
4) सर्वांगघात (Piplegia) – यह सम्पूर्ण शरीर में होने वाली विकृति होती है।

पैरालिसिस / लकवा के लक्षण :

1)   प्रकुपित हुए आधे शरीर की नाड़ियों-नसों को सुखाकर यह रोग रक्त-संचार बंद कर देता है। 2) संधियों के जोड़ों को शिथिल करके शरीर के विशेष भाग को बेकार कर देता है। इस कारण उस अंगविशेष में खुद हरकत करने की क्षमता तथा भार उठाने की क्षमता नष्ट हो जाती है।
3)   मुख के लकवाग्रस्त होने पर बोलने की क्षमता भी नहीं रहती। मुख से घर-घरं करके आवाज निकलती है।
4)   आंख-नाक भी विकृत हो जाते हैं। दांतों में दर्द होता है, गर्दन भी टेढ़ी हो जाती है। होंठ नीचे लटक जाते हैं। इस रोग में चमड़ी सुन्न हो जाती है।

मुंह का लकवा कैसे होता है / कारण :

1)    यह बीमारी प्रायः उन्हीं लोगों को होती है जो हमेशा ऊंची आवाज में जोर-जोर से बोलते हैं, जोर-जोर-से हंसते हैं या जिन्हें जंभाइयां अधिक आती हैं।
2)    जो सदैव कठोर आहार-द्रव्यों का सेवन करते हैं।
3)   जो हमेशा ऊंचे-नीचे स्थान पर भारी वजन उठाने का कार्य अधिक करते हैं। उनकी वाय प्रकपित होकर सिर, मस्तक, नाक होंठ और आंखों में आकर रुक जाती है। तब यह रोग मुख को विकृत अर्थात उसके एक भाग को टेढ़ा कर देता है।

पैरालिसिस / लकवा का घरेलु इलाज : आयुर्वेदिक नुस्खे :

9)   काली मिर्च 1 छटांक पीसकर छानकर पाव भर तेल में मिलाकर कुछ देर पकाकर इस तेल का पतला-पतला लेफ करने से पक्षपात, एकांग घात या अर्धाग वात रोग नष्ट हो जाते हैं। यह लेप तुरन्त ही बनाकर गरम करके लगाया जाता है पक्षाघात की रामवाण दवा है प्रसिद्ध स्व० वैद्यराज श्री हरिदास जी ने अपनी अमरकृतिचिकित्सा चन्द्रोदयमें इसकी अत्यधिक प्रशंसा की है।
16)   20 ग्राम लहसुन की छिली हुई गिरी पीसकर गाय के आधा किलो दूध में पकायें और खीर की भाँति गादी हो जाने पर उतार लें शीतल होने पर लकवा रोग (किसी एक ओर का अंग मारा जाना) के रोगी को खिलायें इसके सेवन से रोग जड़ से ठीक हो जाता है। साथ ही लहसुन तेल निम्न प्रकार से बनाकर मालिश करें
लकवा का तेल बनाने की विधिछिली हुई लहसुन की 250 ग्राम गिरियों की पीठी आधा किलो सरसों का तेल और 2 किलो पानी में मिलाकर लोहे की कड़ाही में पकावें जब पानी जल जाये तब कड़ाही को उतारकर ठन्डा कर कपड़े से तेल छानकर किसी साफ स्वच्छ बोतल में सुरक्षित रखें तथा प्रयोग में लायें
17)   लहसुन 250 ग्राम, दूध 500 ग्राम लेकर मन्दाग्नि पर पाक करें। जब लहसुन दूध एकजीव हो जायें तब खूब मलकर छान लें तथा (पुन:) दुबारा छने हुए दूध को आग पर पकाकर खोवा बना लें तदुपरान्त इस खोवा में 500 ग्राम खाँड मिलाकर 10 ग्राम के पेडे बनालें इन पेड़ों को 1 से 2 तक सुबह शाम खाने से अर्धांग वात रोग एवं मुंह का लकवा(अर्दित रोग / FacialParalysis) नष्ट हो जाते हैं अतीव गुणकारी योग है।


51 पैरालिसिस के उपचार में मालिश से भी फायदा मिलता है पर किसी भी प्रकार की मालिश को शुरू करने से पहले एक बार डॉक्टर या फिर किसी आयुर्वेदिक वैद की सलाह जरूर ले। कलौंजी के तेल को गुनगुना कर के हलके हाथों से मालिश करे, इसके साथ दिन में 2 से 3 बार एक चम्मच तेल का सेवन भी करे। इस देसी नुस्खे से 30 दिनों में फरक दिखने लगेगा।

लकवा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-




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