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माहवारी में अधिक रक्त स्राव के लक्षण :
इस रोग में मासिक अत्यधिक मात्रा में तथा नियम से अधिक समय दिनों तक आता रहता है।
माहवारी (मासिक धर्म )में अधिक रक्तस्राव के कारण :
इस रोग के कारणों को 6 प्रकारों में बांटा जा सकता है।
(1) रक्त संचार सम्बन्धी कई रोग- जैसे-यकृत का सख्त हो जाना, हृदय सम्बन्धी रोग तथा हाई ब्लड प्रैशर
(2) रक्त के कई रोग जैसे- स्कर्वी, परप्यरा
(3) हारमोन ग्रन्थियों के दोष जैसे- थायरायड ग्लैन्ड का बढ़ जाना
(4) तीव्र ज्वर जैसे- टायफाइड, मलेरिया, इन्फ्लूएन्जा
(5) स्नायु उत्तेजना के फलस्वरूप- नाड़ी संस्थानों की कमजोरी; चिन्ता, क्रोध, बहम, अधिक सम्भोग, अति प्रसन्नता
(6) स्त्री की भीतरी जननेन्द्रियों के रोग जैसे- गर्भाशय शोथ, गर्भाशय, का झुक जाना, या गर्भाशय की बबासीर या घाव, फेलोपियन ट्यूब और डिम्बाशय की शोथ(सूजन) तथा प्रसवोपरान्त गर्भाशय का सिकुड़कर पुनः अपनी प्राकृतिक अवस्था में न आना, गर्भाशय का कैन्सर, और रसूलियां तथा रजोनिवृत्ति ।
(1) रक्त संचार सम्बन्धी कई रोग- जैसे-यकृत का सख्त हो जाना, हृदय सम्बन्धी रोग तथा हाई ब्लड प्रैशर
(2) रक्त के कई रोग जैसे- स्कर्वी, परप्यरा
(3) हारमोन ग्रन्थियों के दोष जैसे- थायरायड ग्लैन्ड का बढ़ जाना
(4) तीव्र ज्वर जैसे- टायफाइड, मलेरिया, इन्फ्लूएन्जा
(5) स्नायु उत्तेजना के फलस्वरूप- नाड़ी संस्थानों की कमजोरी; चिन्ता, क्रोध, बहम, अधिक सम्भोग, अति प्रसन्नता
(6) स्त्री की भीतरी जननेन्द्रियों के रोग जैसे- गर्भाशय शोथ, गर्भाशय, का झुक जाना, या गर्भाशय की बबासीर या घाव, फेलोपियन ट्यूब और डिम्बाशय की शोथ(सूजन) तथा प्रसवोपरान्त गर्भाशय का सिकुड़कर पुनः अपनी प्राकृतिक अवस्था में न आना, गर्भाशय का कैन्सर, और रसूलियां तथा रजोनिवृत्ति ।
रोग में ध्यान देने योग्य जरुरी बातें :
1) जिस वास्तविक कारण से यह रोग उत्पन्न हुआ हो, उस की चिकित्सा करें । जब बहुत अधिक रक्त आ रहा है तो स्त्री को आराम से लिटा दें।
2) रोगी को चलने-फिरने से रोक दें।
3) चारपाई के पायताने को ईंट रखकर ऊंचा कर दें तथा नाभि एवं पेडू पर बर्फ की थैली या ठन्डे पानी में फिटकरी (Alum) घोलकर उसमें कपड़ा गीला करके पेडू पर रखवायें।
4) खाने की औषधियों के साथ ही साथ “डूश (पानी का स्प्रे)” भी लगवायें तथा योनि पर “एन्टी सैप्टिक गौज’ भी रखवायें।
5) रोगिणी की कमर के नीचे तकिया लगाकर नितम्बों को ऊँचा रखकर चित्त होकर लेटे रहने के लिए निर्देशित करें।
6) ‘कब्ज’ रहे तो ‘एनीमा’ दें।
2) रोगी को चलने-फिरने से रोक दें।
3) चारपाई के पायताने को ईंट रखकर ऊंचा कर दें तथा नाभि एवं पेडू पर बर्फ की थैली या ठन्डे पानी में फिटकरी (Alum) घोलकर उसमें कपड़ा गीला करके पेडू पर रखवायें।
4) खाने की औषधियों के साथ ही साथ “डूश (पानी का स्प्रे)” भी लगवायें तथा योनि पर “एन्टी सैप्टिक गौज’ भी रखवायें।
5) रोगिणी की कमर के नीचे तकिया लगाकर नितम्बों को ऊँचा रखकर चित्त होकर लेटे रहने के लिए निर्देशित करें।
6) ‘कब्ज’ रहे तो ‘एनीमा’ दें।
नोट:-इस रोग में-मासिक ऋतु के समय अधिक मात्रा में या अधिक दिनों तक बराबर मासिक स्राव होते रहने को ‘अतिरजः
(Menorrhagia) तथा मासिक ऋतु के अतिरिक्त अन्य किसी भी समय में जब जरायु और गर्भाशय से अत्यधिक मात्रा में खून का स्राव हो तो उसे ‘रजसाधिक्य’ या (Metrorrhagia) कहा जाता है। इन दोनों ही स्थितियों में खून अधिक जाया करता है।
माहवारी (मासिक धर्म) में अधिक रक्त स्राव में क्या खाएं :
•
रोगिणी को साधारण शीतल शाक, कद्दू, कुलफा, पालक, टिन्डा, तुरई, मूंग की दाल या इसकी खिचड़ी, दूध, अंगूर, नाशपाती इत्यादि खाने में दें
माहवारी (मासिक धर्म ) में अधिक रक्त स्राव में क्या नहीं खाएं :
•
उष्ण पदार्थ मांस-मछली, अन्डा, लाल मिर्च, गरम-मसाला, चाय या गरम दूध इत्यादि कदापि न दें।
मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव को कम करने के घरेलु उपाय :
1) माजू, छोटी माई, लोध, बायबिडंग, धाय के फूल, बड़ा गोखरू, सुपारी के फूल, सिम्बल की मूसली, मौलसिरी वृक्ष की छाल, समुद्र सोख, ढाक की गोंद, छोटी इलायची के बीज, कमरकस, (प्रत्येक 1-1 तोला) सेलखड़ी (सोपस्टोन) 2 तोला, कीकर की गोंद 6 तोला, फूल मखाने 5 तोला, खान्ड 60 तोला, साठी के चावल का आटा एक किलो लेकर-गोंद,
मखानों और चावल के आटा को पहले अलग-अलग भून लें फिर सभी औषधियों को कूट- पीसकर छान लें, तब खान्ड का शरबत बनाकर और मिलाकर-नारियल, छुहारे, चिरौंजी, प्रत्येक 5 तोला बारीक काटकर मिला दें और 1-1 तोला वजन के मोदक (लड्डू) बना लें । ये 1 से 2 लड्डू खाकर ऊपर से उबाल कर ठन्डा किया हुआ गोदुग्ध पी लिया करें। इस योग के सेवन करने से रक्त प्रदर, अति रजः तथा गर्भाशय से स्राव आते रहना एवं स्वप्नदोष आदि विकार नष्ट हो जाते हैं।
2) शुद्ध बेरोजा 4 तोला, वशलोचन 2 तोला को अलग-अलग पीसकर दोनों के वजन के बराकर खान्ड मिलाकर खिलाने से वर्षों का पुराना भी यह रोग नष्ट हो जाता है।
बेरोजा शुद्ध करने की विधि :सूखा बेरोजा पीसकर मिट्टी के घड़े में आधे भाग तक पानी भरकर उसके मुँह पर बारीक कपड़ा बाँधकर पिसा हुआ बेरोजा उस पर फैला दें। प्याले से बेरोजा को ढंक दें एवं घड़े के नीचे आग जला दें। पानी की भाप से बेरोजा पिघलकर कपड़े से छनकर पानी में चला जायेगा तथा ठन्डा हो जाने पर पानी पर जमकर तैरने लगेगा, बस यही शुद्ध बैरोजा है।
बेरोजा शुद्ध करने की विधि :सूखा बेरोजा पीसकर मिट्टी के घड़े में आधे भाग तक पानी भरकर उसके मुँह पर बारीक कपड़ा बाँधकर पिसा हुआ बेरोजा उस पर फैला दें। प्याले से बेरोजा को ढंक दें एवं घड़े के नीचे आग जला दें। पानी की भाप से बेरोजा पिघलकर कपड़े से छनकर पानी में चला जायेगा तथा ठन्डा हो जाने पर पानी पर जमकर तैरने लगेगा, बस यही शुद्ध बैरोजा है।
3) रक्ताल्पता या रक्त पतला होने के कारण यह रोग होता है। लौह भस्म 1 रत्ती अनार के शर्बत में मिलाकर दिन में 2-3 बार प्रयोग कराते रहें। (पिलाते रहें।)
4) लोहा गरम करके दूध में कई बार बुझाकर, दूध पिलाना इस रोग में लाभकारी है।
5) अनार का छिलका बारीक पीसकर तथा गरम पानी में पकाकर कपड़े की गद्दी गीली करके योनि के अन्दर रखवाना लाभकारी है।
6) पानी पर आयी हुई हरे रंग की काई को खुश्क करके चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखें। शरीर के किसी भी भाग से रक्त आना इस योग से बन्द हो जाता है।
7) बबूल की छाल का क्वाथ कर छान लें। उससे डूश कराना लाभकारी है।
8) सुरबाली के बीज जले हुए 3-4 माशा दही के साथ सुबह-शाम खाते रहने से मासिकधर्म का अधिक आना, अधिक दिनों तक या, समय से पहले आना, बवासीर का रक्त आना, सभी रक्तस्राव के लिए रामबाण है।
9)
लोध के चूर्ण में खान्ड मिलाकर 1 माशा दिन में 2 बार खिलाना लाभप्रद है।
10) जीरा एवं इमली के बीजों की गिरी को समभाग लेकर चूर्ण करें । दो माशा की मात्रा में चावलों के पानी के साथ दिन में 2 बार खिलाना लाभप्रद है। \
11)
बांसा का रस या सूखे पत्तों का चूर्ण खान्ड में मिलाकर खिलाना लाभकारी है।
12) गूलर के फल के चूर्ण में बराबर खान्ड मिलाकर 2-3 माशा दिन में 3-4 बार खिलायें।
13)
धाय के फूल पीस लें । खान्ड मिलाकर दूध के साथ खिलायें ।
14) जलाई हुई कौड़ी, जलाई हुई सीप, आम के गुठली की गिरी (प्रत्येक 1 माशा) सुबह-शाम शर्बत अंजवार या ठन्डे पानी से खिलाना लाभप्रद है।
15) लाजवन्ती का चूर्ण 3 ग्राम फांककर ऊपर से बताशों का शर्बत पिलायें ।
माहवारी में अधिक रक्त स्राव की दवा :
mahwari me adhik khun jane ki dawa
इस रोग में पेडू पर भीगा कपड़ा रखना, अन्दर के भाग (योनि) को त्रिफले के पानी से धोन, उसमें भीगी हुई गद्दी रखना तथा कब्ज में एरन्डी का तेल देना और रक्तस्राव को कम करने के लिए-नागकेसर, चन्द्रकला, अशोकारिष्ट, पुष्यानुग चूर्ण, त्रिफला चूर्ण या सितोपलादि चूर्ण के साथ प्रवाल भस्म और मन्डूर भस्म भोजनोपरान्त देना तथा रोग पुनः न हो इसके लिए-प्रदरारि लौह, चन्द्र प्रभा और अग्नितुन्डी का प्रयोग हितकर है।
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