Sunday, 10 June 2018

कुष्ठ (कोढ़) रोग के कारण और निवारण हेतु उपचार

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कुष्ठ (कोढ़) रोग के कारण

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यह रोगबेसिलस लेप्रो” (Bacillus Leproe) नामक कीड़े से उत्पन्न होता है, जो शरीर में नाक, मुँह, फटी हुई त्वचा याजननेन्द्रियोंद्वारा प्रविष्ट हो जाते हैं। यह रोग सम्पर्क द्वारा रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को लग जाता है। गरीबी, क्षुधार्त्तता, गन्दी या घनी बस्तियों में रहना, आदि इस रोग के प्रसार में सहायक हैं। | यह एक जीर्ण संक्रामक रोग है जो 30 वर्ष की आयु से पूर्व प्रारम्भ होता है। यह रोगस्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को अधिक होता है। जिसको एक बारकुष्ठ हो जाये, वह आजीवन -‘कुष्ठीही रहता है। यह छूत से एक दूसरे को लग सकता है, किन्तुपैत्रिक रोगनहीं है। यह कोचीन केरल, वर्मा, आसाम और समुद्र के किनारों पर रहने वालों को अधिक होता है। इस रोग के विशेष प्रकार के कीटाणु कोमाइको बैकटैरियम-लेपराई’ (Myco-Bacterium Leprae) तथा डाक्टरी में इस रोग को हैन्सेनंस डिजीज” (Hensen’s Disease) भी कहा जाता है।
प्राचीन काल में इस रोग को सख्त संक्रामक रोग समझा जाता था किन्तु आधुनिक विद्वान आचार्यों की खोजानुसार-यह कीटाणु से होने वाले दूसरे समस्त रोगों में सबसे कम संक्रामक है। यह रोग वंशज भी नहीं कहा जा सकता है। यदि  कुष्ठ से पीड़ित माता के बच्चे को पैदा होते ही उससे अलग कर लिया जाये तो बच्चे को यह रोग नहीं हो पाता है। यह अनेक प्रकार का होता है। जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है।

कुष्ठ (कोढ़) रोग के प्रकार :

1. संज्ञाहीन कोढ़ (Neutral Leprosy) यह रोग गर्म देशों में होता है।
2.
गुठली वाला कोढ़ (Lepromatous) यह कोढ़ सर्द देशों में अधिक होता है। इसको ‘‘उभार वाला कुष्ठ रोग भी कहते हैं।
3.
मिश्रित कुष्ठ (Mixed Leprosy) इसमें पहले दोनों प्रकार के लक्षण मिले-जुले रहते हैं।
4.
अंसवेदी कुष्ठ (Anaesthetic Leprosy)
5.
मध्यवर्ती कुष्ठ (Barder line form of Leprosy)
6.
उभयरूपी कुष्ठ (Dimoriphous form of Leprosy)
7.
अनिर्धारित कुष्ठ (Indeterminate Leprosy)
8.
असम्वेदी चित्ती कुष्ठ Maculoanaesthetic Leprosy)
9.
वृहत टयूबरकुलाइड कुष्ठ या बृद्ध यक्ष्मिका कुष्ठ(Major Tuberculaid Leprosy)
10.
लघु यक्ष्मिकाभ कुष्ठ या लघु टयूबरकुलाइड कुष्ठ(Minimum Th-ber culaid Leprosy)
11.
एक तन्त्रिकी कुष्ठ (Mononeuritic from of Leprosy)
12.
बहुतन्त्रिकी कुष्ठ (Polyneuritic from of Leprosy)
13.
तन्त्रिकी कुष्ठ(Neural Leprosy.)
14.
गुलिकाभया यक्ष्मिकाभ कुष्ठ (Tuberculaid Leprosy)

कुष्ठ (कोढ़) रोग के लक्षण :

लक्षणों के अनुसार कुष्ठ के तीन भेद
1. 
ग्रन्थिल कुष्ठ : इस जाति के कुष्ठ रोगों में पहले बदन में जगह-जगह लाल रंग की जुलपित्ती (जिसमें बहुत दर्द रहता है।) या लाल रंग की फुन्सियां | दिखलायी देती हैं। इसके बाद उन गाँठों का मुख खुल जाता है और वहाँ गहरा जख्म | हो जाता है। पलकें, भौंह, हाथ-पैर आदि की अंगुलियाँ, नाक की श्लैष्मिक झिल्ली,आदि अंग सड़कर गिरने लगते हैं तथा कभी-कभी फेफड़ों में जलन और प्रदाह होकर रोगी मर जाता है।

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नोटः-इस रोग काचम्बल’ (सोरायसिस) (अपरस) तथा श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) से अन्तर जानना आवश्यक है।चम्बलके दागों का चर्म कोढ़ की भांति संज्ञाहीन (सुन्न) नहीं होता है और ही कुष्ठ की भांति चर्म अधिक उभरा हुआ होता है, कुष्ठ का स्थान का चर्म हमेशा शुष्क रहता है।श्वेत कुष्ठके धब्बे कुष्ठ की भाँति सुन्न नहीं होते तथा धब्बों के किनारे साफ रहते हैं।

कुष्ठ (कोढ़) रोग में क्या नहीं खाना चाहिए :

कुष्ठ (कोढ़) रोग में क्या खाना चाहिए :

1)   विरेचन काल में केवल मूंग की दाल की नरम (गीली) खिचड़ी (जिसमें दाल 2 हिस्सा तथा चावल 1 हिस्सा हो) एक समय-तीसरे पहर खिलायें।
2)   
इसके अलावा चपाती के साथ शीतल साग, कददू, तुरई, कुलफा, पालक, मूंग की दाल, दूध, मक्खन, घी, आदि वस्तुएँ रोगी की पाचन-शक्ति के अनुसार दें।
3)   
मानसिक अवस्था सुधारें।आयरनएवंकैल्शियमकी वस्तुएँ अधिक दें।
4)   
इसमें खाने तथा लगाने की दोनों दवाऐं एक साथ प्रयोग करनी चाहिए। इस रोग में मुख द्वारा दवाएँ खिलाने के बदले सूचीवेधों से शीघ्र लाभ होता है। आइये जाने कुष्ठ रोग (कोढ़) के उपचार के बारे में | kusht rog ka ilaj hindi me

कुष्ठ रोग (कोढ़) का घरेलू उपचार :

1)  चाल मोंगरा का तेल 4 से 2 ड्राम तक नित्य गर्म दूध से कई साल तक धैर्य पूर्वक सेवन कराने से अवश्य लाभ होता है। चाल मोंगरा का तैल 5 बूंद कैपसूल में बन्द करके दिन में 3 बार भोजन के बाद दें। धीरे-धीरे मात्रा 10 बूंदों तक पहुँचा दें। यदि यह तैल रोगी को पचे और उसका जी मिचलाये या उल्टी आये तो चाल मोगरा का सत मेग्नेशियम गाईनो कारडेट (Magnesium Gyno Cardate) 125 से 200 मि.ग्रा. तक दिन में 3 बार खिलायें।   ( और पढ़ें – कुष्ठ रोग के 84 घरेलु उपाय  )



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