Sunday, 17 June 2018

आमाशय के घावों से छुटकारा पाने के घरेलु उपचार

सभी शुद्ध शक्तिवर्धक जड़ी बूटी और उनके पाउडर हमारे पास उपलब्ध हैं , खरीदने के लिए log on करें https://indianjadibooti.com



आमाशय


Indianjadibooti's Best Quality Kat Karanj (Karanjwa)
•   मुख से चलकर भोजन सीधा भोजन-नली से होकर आमाशय (पेट / Stomach) में पहुँचता है| पेट की थैली को ही आमाशय  कहा जाता है। आमाशय का आकार मशक के समान होता है जो पेडु के ऊपर तनिक बाईं तरफ़ को लेटी हुई-सी पड़ी रहती है। आमाशय रबर के गुब्बारे के समान लचकदार होता है। ज्यों-ज्यों इसमें भोजन पहुँचता जाता है, त्यों-त्यों इसका आकार बढ़ता जाता है। जब आमाशय खाली हो जाता है, तब यह पुनः पिचककर छोटा हो जाता है |
•   ज्यों ही आमाशय में भोजन पहुँचता है, त्यों ही आमाशय की दीवारों में एक प्रकार की गति आरम्भ हो जाती है, जिससे भोजन उसके अन्दर घूमने और मथने लगता है। इसके साथ ही आमाशय की दीवारों से एक प्रकार का बहुत-सा खट्टा रस भी स्रवित होकर भोजन में मिलने लगता है। यह रस  सहस्रों सूक्ष्म ग्रन्थियों से निकलता है। ये ग्रन्थियाँ आमाशय की दीवार में चारों तरफ़, एक झिल्ली के नीचे ढकी रहती हैं। भोजन में कार्बोज (Carbohydrates) वाला भाग पहले ही चीनी (Glucose] के रूप में परिवर्तित हो चुका होता है। आमाशय में पहुँचकर वह अन्तिम रूप में पचता है।
•   जब आमाशय की ग्रन्थियों से यह अम्ल-रस पर्याप्त मात्रा में निकल चुकता है, तब भोजन का प्रोटीनवाला अंश भी पचने लगता है।

बांझपन को दूर करेंगे यह आयुर्वेदिक उपचार:- और पढ़ें  

•   आमाशय के रस में प्रधानतः तीन प्रकार की वस्तुएँ पाई जाती हैं |, जामन (Renin), पचाइन (Pepsin) तथा नमक का तेज़ाब (Hydrochloric Acid)
•   नमक के तेज़ाब के कारण ही यह आमाशयिक रस खट्टा होता है तथा अपच रोग में जो खट्टे डकार आते हैं, वे भी इसी तेज़ाब के कारण आया करते हैं। आमाशयक रस प्रोटीन को एक घुलनशील पदार्थ में परिवर्तित कर देता है, जिससे उसका रूप द्रव हो जाता है। फिर उसका कुछ अंश आमाशय की दीवारें सोख लेती हैं और रक्त के साथ मिला देती हैं। शेष बचा भाग भोजन के अन्य भागों के साथ भली-भाँति मथ जाने के उपरान्त मुलायम तथा पतला होकर आमाशय के दूसरे द्वार से अन्तड़ियों [आँतों] में चला जाता है।

https://www.amazon.in/s/ref=nb_sb_noss_1…

आमाशय (पेट) के घाव , सूजन , दर्द , जलन , पाचन :
•   आमाशय की पिछली दीवार पर ढाई सेमी० से 5 सेमी० या अधिक लम्बे घाव हो जाते हैं नया घाव छोटा होता है आमाशय की पुरानी सूजन, पुराना अजीर्ण इस रोग की उत्पत्ति का मुख्य कारण होता है स्त्रियो को यह रोग पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है जिन स्त्रियों को प्रदर रोग हो, उनको विशेष रूप से यह अधिक होता है चालीस वर्ष से कम आयु के रोगी (जिनको 2 वर्ष से कम के लक्षण हों) को आराम हो जाने की आशा अधिक होती है यदि 5 वर्ष के घाव हों तो शल्य चिकित्सा के उपरान्त भी आराम की कोई गारन्टी नहीं होती है

आमाशय (पेट) में घाव / सूजन/ दर्द के कारण
1- यह रोग अम्ल पदार्थों के अधिक सेवन करने से होता है |
2-
आमाशय में जलन पैदा करने वाले पदार्थो के अधिक सेवन करने से |
3-
शराब, नींद या बेहोशी की दवाओं का अधिक सेवन करने से |
4-
कच्चा मांस खाने, चाय-काफी ,कच्चे फल का अधिक सेवन से |
5-
तेज मिर्च मसालेदार भोजन करने के कारण यह रोग उत्पन्न हो जाता है।
आमाशय (पेट) में घाव के लक्षण :
1-आमाशय के ऊपरी मुख या कमर में दर्द, बोझ और अकड़न का रोगी अनुभव करता है।
2-
आमाशय को दबाने पर रोगी सख्त दर्द अनुभव करता है।
3-
अक्सर खाना खाने के एक घन्टे बाद दर्द होने लग जाता है तथा भोजनोपरान्त कै (वमन) जाती है
4-
कै में भोजन रक्त मिला होता है कई बार रक्त की ही कै आती हैं
5-
भोजन पचने के कारण रोगी दुबला-पतला और कमजोर होता चला जाता है।
आमाशय (पेट) में घाव , सूजन , दर्द , जलन के घरेलु उपचार :
1- बेलपत्र और नीम पत्र का समभाग मिलाकर 15 से 30 मिली० तकरसप्रात: सायं खाली पेट पिलायें  

 Indianjadibooti's Best Quality Neem Patta



2- कट करन्ज की भुनी मिंगी, सफेद जीरा, मुल्तानी हींग तथा त्रिफला चूर्ण, हींग के अतिरिक्त सभी औषधियाँ 50-50 ग्राम लेकर कपड़छन कर बाद में 5 ग्राम हींग मिला लें इसे 500 मिली ग्राम से 2 ग्राम तक भोजन के साथ अथवा दिन में 2 बार प्रयोग करायें
3- सूतशेखर रस (ग्रन्थ योग रत्नाकर से) 1 से 2 गोलियाँ (120 से 240 मि.ग्रा.) तक अपामार्ग क्षार 60 मि.ग्रा. के साथ दूध मिश्री के अनुपान से दिन में 2-3 बार सेवन कराना लाभप्रद है।
4- ईसबबेल 2 से 4 चम्मच दानेदार चूर्ण जल से दिन में 34 बार खिलायें इससे कब्ज दूर होकर आमाशय आन्त्र में स्निग्धता पहुँचती है। 
5- कामदुधा रस (ग्रन्थ रस योग सागर) 120 से 360 मि.ग्रा. तक जीरा मिश्री के साथ दिन में 2 बार प्रतिदिन सेवन करायें पित्तज आमाशय आन्त्रव्रण में परम उपयोगी है।
नोट-मानसिक चिन्ताओं से यह रोग अधिक बढ़ता है अत: इससे बचें अथवा निद्राकारक योगों का व्यवहार करें रोगी को केवल दूध पिलायें, बाकी समस्त भोजन बन्द कर दें बाद में तरल तथा नरम भोजन धीरे-धीरे खिलाना प्रारम्भ करें घी, मसाले युक्त भोजन तथा तम्बाकू इत्यादि का सेवन पूर्णतः बन्द कर दें पहले प्रत्येक 2-2 घंटे के बाद तथा बाद में प्रत्येक 4-4 घंटे के बाद दुख्यपान करायें

https://www.amazon.in/s/ref=nb_sb_noss_1… 




https://www.amazon.in/s/ref=nb_sb_noss_1…


No comments:

Post a Comment