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पुरुष बांझपन क्या होता है (Male Infertility) :
हालांकि बच्चे को जन्म देने का प्रमुख क्षेत्र नारी मानी गई है किन्तु बाँझपन में दोषी केवल स्त्री को मानना चिकित्सकीय दृष्टिकोण से कतई न्यायोचित नहीं है, क्योंकि चिकित्सा जगत में यह सप्रमाण सिद्ध हो गया है कि सन्तानोत्पादन न होने में पुरुष भी 30 प्रतिशत दोषी है । अत: जो पुरुष शुक्राणु जनन के अभाव में स्त्री को गर्भवती न कर सके तो वह बाँझ पुरुष(Male Infertility) कहलाता है । यदि स्त्रियों की जननेन्द्रियों में कोई खराबी सुयोग्य चिकित्सक के परामर्शानुसार न हो तो उसके पति का परीक्षण अति आवश्यक है।
पुरुष बाँझपन के कारण :
1) इसका प्रमुख कारण उसका वीर्य है । गर्भाधान के समय पुरुष जननेन्द्रिय से लगभग 4 मि.ली..वीर्य निकालता है । इसकी प्रत्येक सी.सी. (C.C.) में 10 से 40 करोड़ के लगभग शुक्राणु होते हैं । जिनमें 80 से 90 प्रतिशत तक सक्रिय होते हैं। इसी 1 शक्राणु और स्त्री के 1 डिम्बाणु से मिलकर सन्तान की उत्पत्ति होती है। किन्तु जिनके 6 करोड़ से कम शुक्राणु होते हैं वे सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकते हैं । शुक्राणुओं की जाँच (वीर्य परीक्षा) लेबोरेट्रीज में की जाती है ।
2) कई बार पुरुष स्त्री से यथाविधि मैथुन नहीं करते । अत: शुक्रकीट (शुक्राणु) गर्भाशय में नहीं जा पाते हैं । इस हेतु रति क्रीड़ा के पश्चात् स्त्री को कई घन्टे तक लेटे रहना चाहिए । ताकि शुक्रकीट रेंगकर गर्भाशय में प्रवेश कर सकें क्योंकि वीर्य निकलने के 4 घन्टे बाद तक शुक्राणुओं में दुम हिलाकर हिलने-डुलने की शक्ति होती है।
कई बार तो गर्भाधान करने के 3 दिन (72 घन्टे) बाद गर्भाशय के तरल की परीक्षा करने के बाद उसमें शुक्रकीट गति करते हुए मिलते हैं । अब अनुसन्धानों के पश्चात् यह परिणाम निकाले गये हैं कि शुक्रकीट को गर्भाशय में पहुँचने और गर्भ ठहराने के लिए कम से कम 24 घन्टे मिलना जरूरी है ।
3) रति क्रीड़ा के समय जिन पुरुषों का वीर्य गर्भाशय मुख के पास उछलकर गिरने के बजाय योनि-के आरम्भ में ही गिर जाता है। ऐसे पुरुष में भी स्त्री को गर्भ ठहराने की कम सम्भावना होती है ।
4) वीर्य में रक्त या पीव होने पर भी गर्भ ठहरने की शक्ति घट जाती है ।
5) पुरुष का सुजाक रोग भी गर्भ न ठहरा सकने का कारण हो सकता है।
2) कई बार पुरुष स्त्री से यथाविधि मैथुन नहीं करते । अत: शुक्रकीट (शुक्राणु) गर्भाशय में नहीं जा पाते हैं । इस हेतु रति क्रीड़ा के पश्चात् स्त्री को कई घन्टे तक लेटे रहना चाहिए । ताकि शुक्रकीट रेंगकर गर्भाशय में प्रवेश कर सकें क्योंकि वीर्य निकलने के 4 घन्टे बाद तक शुक्राणुओं में दुम हिलाकर हिलने-डुलने की शक्ति होती है।
कई बार तो गर्भाधान करने के 3 दिन (72 घन्टे) बाद गर्भाशय के तरल की परीक्षा करने के बाद उसमें शुक्रकीट गति करते हुए मिलते हैं । अब अनुसन्धानों के पश्चात् यह परिणाम निकाले गये हैं कि शुक्रकीट को गर्भाशय में पहुँचने और गर्भ ठहराने के लिए कम से कम 24 घन्टे मिलना जरूरी है ।
3) रति क्रीड़ा के समय जिन पुरुषों का वीर्य गर्भाशय मुख के पास उछलकर गिरने के बजाय योनि-के आरम्भ में ही गिर जाता है। ऐसे पुरुष में भी स्त्री को गर्भ ठहराने की कम सम्भावना होती है ।
4) वीर्य में रक्त या पीव होने पर भी गर्भ ठहरने की शक्ति घट जाती है ।
5) पुरुष का सुजाक रोग भी गर्भ न ठहरा सकने का कारण हो सकता है।
पुरुष बाँझपन के लक्षण :
बाँझ पुरुष में मैथुन शक्ति तो होती है किन्तु सन्तानोत्पादन क्षमता नहीं होती है।
उपचार में सावधानी :
1) संखिया से निर्मित औषधियाँ 40 वर्ष की आयु से पूर्व न खायें । योग सेवन करने से पूर्व अपनी आयु का सदैव ध्यान रखें ।
2) विषैले योगों की औषधियाँ-कुचला, संखिया, भिलावा, धतूरा, कनेर, खुरासानी अजवायन, इत्यादि कभी भी उचित मात्रा से अधिक न खायें । यकृत व वृक्करोगी को संखिया फास्फोरसयुक्त तथा ऐसे ही अन्य मर्दाना शक्ति के योगों का सेवन नहीं करना चाहिए। युवावस्था में विषैली औषधियां का अत्यधिक सेवन उन्माद क्षयरोग तथा नपुंसकता आदि रोग उत्पन्न कर सकते हैं ।
3) 40 वर्ष की अवस्था से पूर्व स्तम्भन की औषधियों का भूलकर भी प्रयोग न करना चाहिए ।
4) अफीम, गाँजा इत्यादि मादक पदार्थ कुछ समय के लिए स्तम्भन शक्ति बढ़ाते हैं, किन्तु अन्त में इनका पुरुष के स्वास्थ पर बुरा ही प्रभाव पड़ता है ।
5) संखिया मिश्रित योग कभी भी खाली पेट तथा मल से अधिक नहीं खाना चाहिए । इन योगों के प्रयोग काल में घी दूध, मक्खन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इस लेख में ऐसे योगों का समावेश न हो इसका विशेष ध्यान रखा गया है।
आइये जाने पुरुष बांझपन का इलाज
2) विषैले योगों की औषधियाँ-कुचला, संखिया, भिलावा, धतूरा, कनेर, खुरासानी अजवायन, इत्यादि कभी भी उचित मात्रा से अधिक न खायें । यकृत व वृक्करोगी को संखिया फास्फोरसयुक्त तथा ऐसे ही अन्य मर्दाना शक्ति के योगों का सेवन नहीं करना चाहिए। युवावस्था में विषैली औषधियां का अत्यधिक सेवन उन्माद क्षयरोग तथा नपुंसकता आदि रोग उत्पन्न कर सकते हैं ।
3) 40 वर्ष की अवस्था से पूर्व स्तम्भन की औषधियों का भूलकर भी प्रयोग न करना चाहिए ।
4) अफीम, गाँजा इत्यादि मादक पदार्थ कुछ समय के लिए स्तम्भन शक्ति बढ़ाते हैं, किन्तु अन्त में इनका पुरुष के स्वास्थ पर बुरा ही प्रभाव पड़ता है ।
5) संखिया मिश्रित योग कभी भी खाली पेट तथा मल से अधिक नहीं खाना चाहिए । इन योगों के प्रयोग काल में घी दूध, मक्खन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इस लेख में ऐसे योगों का समावेश न हो इसका विशेष ध्यान रखा गया है।
आइये जाने पुरुष बांझपन का इलाज
पुरुष बाँझपन का घरेलू उपचार : (Home Remedies of Male #Infertility)
पुरुष बाँझपन की चिकित्सा में आयुर्वेदीय मतानुसार बाजीकारण योगों का रोग के लक्षणों के अनुसार प्रयोग करना चाहिए ।
1) प्याज की 30 गाँठों को एक बर्तन में रखकर उसके ऊपर इतना ताजा दूध डालें कि वह प्याज के ऊपर तक 4 अंगुल भर जाये, फिर उसको पकायें, जब गल जाये तब नीचे उतार लें। फिर प्याज के बराबर गाय का घी और शहद डालकर पुन: थोड़ी देर पकायें । फिर शकाकुल और कुलंजन 60-60 ग्राम उसमें मिलाकर सुरक्षित रख लें। इसे 10-10 ग्राम की मात्रा में खायें । यह योग पुरुष बाँझपन नाशक तथा वीर्य वर्धक है।
2) प्याज को किसी बर्तन में भरकर उसके मुँह को सावधानीपूर्वक बन्द कर दें जिससे उसमें वायु प्रवेश न कर सके । फिर उस बर्तन को गाय बाँधने की जगह पर 4 माह के लिए गाढ़ दें । तत्पश्चात् उसको निकालकर प्रतिदिन 1 प्याज खाने से मनुष्य की वीर्य-शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है ।
3) कोक शास्त्र के रचियता विद्धान पन्डित कोक के मतानुसार सर्वोत्तम बाजीकरण का प्रयोग यह है कि गुप्तांग के बाल सदैव साफ रखें तथा प्याज का प्रतिदिन सेवन करें। प्याज मन में हलचल उत्पन्न कर काम को जागृत करता है तथा मैथुन करने की शक्ति प्रदान करता है। प्याज के रस के साथ शहद मिलाकर सेवन करना भी अत्यधिक लाभप्रद है। प्याज के सेवन करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी निर्बल नहीं होता है । सफेद प्याज का रस 6 ग्राम देशी घी 6 ग्राम तथा शहद 3 ग्राम की 1 मात्रा बनाकर सुबह शाम प्रयोग करने से लिंग दौबर्त्य, हस्तमैथुन-जन्य विकार मिटते हैं।
4) प्याज के रस को गाय के दूध के साथ सेवन करने से तथा साथ में प्याज का रस घी, शहद तीनों को असमान मात्रा में प्रयोग करने से दुर्बलता गायब हो जाती है ।
5) काले उड़द की दाल धुली हुई 1 किलोग्राम को प्याज के रस में भिगोकर बर्तन को धूप में रख दें । जब रस सूख जाये तो फिर प्याज का 1 कि.ग्रा. रस डाल दें । इस प्रकार दाल में प्याज का 40 कि.ग्रा. रस शोषित करा दें। अब इसमें से 20 ग्राम दाल लेकर आधा कि. ग्रा. गाय के दूध में पकायें तथा 10 ग्राम की मात्रा में गाय का घी भी डाल दें। फिर इस में स्वेच्छानुसार शक्कर डालकर पियें । इसके सेवन से बल तथा मुख की कान्ति बढ़ेगी, समस्त शरीर को बल प्राप्त होगा। वीर्य सम्बन्धी समस्त विकार नष्ट हो जायेंगे ।
6) प्याज का रस 3 से 10 ग्राम तक मधु में मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से प्रमेह और वीर्य सम्बन्धी समस्त विकार दूर हो जाते हैं ।
7)
प्याज और गुड़ मिलाकर खाने से अत्यन्त बाजीकरण योग बन जाता है। इससे वीर्य वृद्धि होती है तथा गर्भाधान शक्ति बढ़ती है ।
8) प्रात:काल लहसुन की 4 कलियाँ छीलकर उन्हें दाँतों से देर तक चबाकर ऊपर से दूध या घी पी जायें । इससे बल और वीर्य शक्ति में अपार वृद्धि होगी। नामर्दी तक नष्ट हो जायेगी तथा स्त्रियों का बांझपन भी दूर हो जाता है । नियम से उसका प्रयोग सारे शीतकाल में करें । नागा बिल्कुल न करें । 9) चाय के साथ लहसुन के रस की 10 बूंदें दिन में 2-3 बार लेते रहने से शुक्राशय सबल होता है । यदि फिर भी अशक्ति महसूस करें तो सुबह शाम लहसुन की बर्फी (एक पोतिया लहसुन साफ कर 1 कि, की मात्रा में धो पीसकर 5 कि. गाय के गुनगुने दूध में मिलाकर हल्की आग पर पकायें और उसका मावा (खोबा) बना लें। फिर इस मावा को देशी घी में भूनकर (हल्की आग में) खूब बादामी रंग का कर लें । फिर चाशनी के साथ बर्फी बना लें ) 25-30 ग्राम की मात्रा में खाकर ऊपर से मिश्रीयुक्त दूध पी लें । इसके सेवन से सभी प्रकार के वीर्य दोष, मूत्र-विकार दूर होकर रतिक्रिया में अरुचि नष्ट हो जायेगी । यह बर्फी पुष्टिकर उल्लासप्रद, ज्ञान तन्तुओं को चैतन्यता प्रदान करने वाली, मधुर एवं स्वादिष्ट बाजीकरण उपयोगी औषधि है।
10) देशी घी में लहसुन की कुछ कलियां भूनकर नियमित रूप से खाने से स्तम्भन-शक्ति में अपार वृद्धि हो जाती है। यहाँ तक कि यदि नपुंसकता जन्मजात न हो तो वह भी आखिरी नमस्कार कर जाती है ।
11) कबाबचीनी, इलायची, बंशलोचन, मिश्री—सभी सममात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से वीर्य सम्बन्धी समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं।
12)
दालचीनी बारीक पीसकर रख लें । इसे 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह व रात को सोते समय गर्म दूध से लें । इससे वीर्य में वृद्धि होती है तथा दूध भी पच जाता है । बलप्रद योग है।
13)
इमली के बीजों को रात्रि में पानी में भिगोकर सबेरे उन्हें छील पीसलें। फिर बराबर वजनका गुड़ मिलाकर 6-6 ग्राम की गोलियाँ बना लें । एक-एक गोली सुबह शाम सेवन करने से वीर्य की कमजोरी नष्ट होती है ।
14) इमली के बीजों को भाड़ में भुनवाकर उसका छिलका उतार कर फेक दें तथा गूदे को पीसकर चूर्ण बना लें । चूर्ण के बजन के बराबर खान्ड मिलाकर सुरक्षित रख लें । इसे नित्यप्रति प्रात:काल 6 ग्राम की मात्रा में गोदुग्ध से सेवन करने से धातु पुष्ट हो जाती है । स्त्रियों के प्रदर रोग में भी अत्यन्त उपयोगी है।
15) शतावर 10 तोला खूब बारीक पीसकर सुरक्षित रख लें । इसे 6 माशा से 1 तोला तक की मात्रा में आधा सेर दूध में जोश देकर 5 तोला खान्ड मिलाकर गाढ़ा होने पर ठन्डा करके रात को सोते समय खायें । मूल्यवान बलवर्धक योग भी इसका मुकाबला नहीं कर सकता है । जिगर, गुर्दे को शक्ति देने के साथ ही यह योग वीर्य को गाढ़ा करता है ।
16) भूसी ईसब गोल 5 तोला तथा मूसली सफेद ढाई तोला लें । दोनों को कूट पीस छानकर मिला लें। 6 माशा की मात्रा में लेकर डेढ पाव दूध में पकायें। जब खीर सी बन जाये तब चीनी डालकर हल्का गुनगुना ही पी जायें । बल वीर्य बर्द्धक योग है।
17) असगन्ध नागौरी और विधारा दोनों को कूटपीसकर कपड़े से छानकर बराबर वजन में चीनी मिलाकर रख लें । इसे 3 से 6 ग्राम की मात्रा में ताजा दूध या पानी से दिन में 3 बार सेवन करें। देखने में यह योग अत्यन्त मामूली तथा अल्प मूल्य का है, किन्तु इसके सेवन करने से वीर्य का पतला होना, वीर्य में शुक्रकीट उत्पन्न न होना, स्वप्नदोष, वीर्य प्रमेह, अत्यन्त वीर्य नाश से उत्पन्न कमजोरी, वजन गिर जाना, चेहरा पिचका हुआ, आँखें अन्दर धंसी हुई, शरीर मात्र हड्डी का पिन्जर हो जाना, स्त्री के नाम से ही भय खाने वाला रोगी तक जवान, और मोटा-ताजा हो जाता है । यही चूर्ण अश्वगन्धादि के नाम से जाना जाता है ।
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