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धातु दुर्बलता व कमजोरी दूर करने के देसी आयुर्वेदिक नुस्खे :
1) अमलतास की छाल का महीन चूर्ण 1-2 ग्राम की मात्रा में दो गुनी शक्कर मिलाकर 250 ग्राम गुनगुना गाय के दुग्ध के साथ नित्य सुबह शाम सेवन करने से अपार बल व वीर्य की वृद्धि होती है।
2) अश्वगन्धा का चूर्ण कपड़छन कर (खूब मैदे की भाँति कर लें) इसमें चौथाई भाग उत्तम गौघृत मिलाकर आपस में खूब खरल कर एक स्वच्छ पात्र में रख लें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के वीर्य विकारों में लाभ होकर बल व वीर्य की वृद्धि होती है ।
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(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-
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3) अश्वगन्धा में (कब्ज न करते हुए) पतली धातु (वीर्य) को गाढ़ा करने की विचित्र प्राकृतिक शक्ति है । अश्वगन्धा चूर्ण तथा मिश्री एवं शहद 6-6 ग्राम तथा गोघृत 10 ग्राम को एकत्र कर नित्य सुबह-शाम शीतकाल में 4 माह तक सेवन करने से बलहीन वृद्धजनों में भी युवाओं जैसी शक्ति (बल व वीर्य की वृद्धि होकर) आ जाती है ।
4) इमली के बीजों को दूध के साथ पकावें । जब छिलका उतारने योग्य (मुलायम) हो जायें, तब छिलका उतारकर सिल पर खूब महीन पीसकर घृत में भून लें फिर उसमें सममात्रा में मिश्री मिलाकर सुरक्षित रख लें । इसे 6-6 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट हो जाता है तथा शारीरिक बल व स्तम्भन शक्ति भी बढ़ जाती है। इलायची के बीज 2 ग्राम, जावित्री 1 ग्राम, बादाम की मिंगी 5 नग, सभी को थोड़े से जल में खूब बारीक पीसकर गाय के मक्खन तथा मिश्री के साथ 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम सेवन करने से धातुगत दुर्बलता नष्ट होकर | वीर्य पुष्ट हो जाता है ।
5) घी में भुनी हुई छिलके सहित उड़द की दाल का चूर्ण 120 ग्राम में समभाग मिश्री मिलाकर शीशी में भरकर रख लें । इसे 20 ग्राम की मात्रा में शहद तथा घी (विषम मात्रा में) मिलाकर सेवन करने से बल-वीर्य की वृद्धि हो जाती है।
6) कौंच के बीज के साथ ताल मखाना तथा मिश्री चूर्ण (सम मात्रा में) मिलाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में धारोष्ण दुग्ध के साथ सेवन करने से वीर्य गाढ़ा व पुष्ट होकर शरीर में अपार बल वृद्धि करता है।
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7) कौच के बीज के साथ गोखरू समभाग चूर्ण कर तथा चूर्ण के समभाग मिश्री या खाड़ मिलाकर सुबह शाम 6 से 10 ग्राम तक की मात्रा में दुग्ध के साथ सेवन करने से अशक्ति दूर होकर वीर्य पुष्ट होता है एवं शरीर में नूतन बल का संचार होता है ।
8) चने के आटे का हलुआ बनाकर या भिगोये हुए चने के पानी में मधु मिलाकर सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है तथा दुर्बलता नष्ट हो जाती है।
9) जायफल का चूर्ण 4-4 रत्ती सुबह शाम ताजे जल से 40 दिनों तक सेवन करने से शीघ्र पतन में लाभ होता है।
10) काले तिल 100 ग्राम को कढ़ाई में भूनकर रख लें । फिर चावल का आटा 100 ग्राम तथा घी 25 ग्राम इसमें मिला लें। तदुपरान्त इन सबको दो गुनी मात्रा में शक्कर मिलाकर रख लें। इसमें से 25 ग्राम प्रातः तथा रात्रि को खाकर ऊपर से 250 ग्राम दूध (मीठा डालकर) सेवन करने से अपार वीर्य बल की वृद्धि होती है ।
11) तुलसी के बीजों के साथ समभाग पुराना गुड़ मिलाकर डेढ से 3 ग्राम तक सुबह शाम दूध के साथ सेवन करने से मात्र 56 सप्ताह में वीर्य-विकार नष्ट होकर पुरुषत्व की यथेष्ट वृद्धि होती है।
12) धतूरे के बीज, अकरकरा तथा लौंग समभाग लेकर खूब बारीक खरल कर पानी के साथ मूंग (समूची मूंग की दाल) के आकार की गोलियां बनाकर रख लें । एक दो गोली दूध के साथ सेवन करने से वीर्य गाढ़ा और मजबूत होता है तथा शरीर में शक्ति बढ़ जाती है।
13) श्वेत प्याज का रस 6 ग्राम, गोघृत 4 ग्राम तथा मधु 3 ग्राम को एकत्र मिलाकर सुबह शाम चाटने से हस्त-मैथुनजन्य नपुंसकता में लाभ होता है ।
14) मूसली सफेद तथा मिश्री समान भाग लेकर चूर्ण तैयार कर लें । उसे 66 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से शरीर में बल का संचार होता है ।
15) सफेद मूसली, गिलोय सत, कौंच की गिरी, गोखरू, ताल मखाना, नागौरी असगन्ध तथा शताबर सभी समान मात्रा में लेकर सबके बराबर मिश्री मिलाकर चूर्ण तैयार कर सुरक्षित रख लें । इसे 6-6 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम लेकर ऊपर से गाय का दूध सेवन करने से बल व वीर्य की वृद्धि होती है।
16) सालम मिश्री, सकाकुल मिश्री, तोदरी सफेद, कौंच के बीजों की गिरी, इमली के बीजों की गिरी, ताल मखाना, सरवाली के बीज, सफेद मूसली, काली मूसली, सेवल की मुँसली, बहमन सफेद, बहमन लाल, शतावरी, कीकर का गोंद, कीकर की कच्ची कली, कीकर का सत्व, ढाक की नरम कली, प्रत्येक औषधि 10-10 ग्राम लें । इन सभी को खूब बारीक पीस-छानकर चूर्ण बनालें । तत्पश्चात् इसमें 180 ग्राम देशी मिश्री मिला दें। इसे 10-10 की मात्रा में सुबह शाम फांककर ऊपर से 250 ग्राम धारोष्ण दुग्ध पान करें। इस चूर्ण के सेवन से धातुक्षीणता । शीघ्रपतन इत्यादि विकार शीघ्र ठीक होकर अपार बल वीर्य की वृद्धि होती है। इसे कम से कम लगातार 80 दिनों तक सेवन करें । परीक्षित योग है।
17) हल्दी की गाँठ आधा किलो, अनबुझा चूना 1 किलो तथा पानी 2 किलो लें । एक मिट्टी के बर्तन में हल्दी और चूना डालकर ऊपर से पानी डाल दें । पानी गिरते ही चूना पकने लगेगा । चूना पकने के पश्चात बर्तन को ढंक दें और दो माँस तक ऐसे ही पड़ा रहने दें । तत्पश्चात् गाँठों को मिलाकर साफ करके सुखा लें और कूट पीसकर किसी स्वच्छ बोतल में भर लें । इसे 3 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम शहद के साथ निरन्तर 4 माँस सेवन करें। इसके सेवन से शरीर में नवजीवन और शक्ति का संचार होता है । मुख मण्डल दमकने लगता है। रक्त शुद्ध हो जाता है । सफेद बाल काले हो जाते हैं। यदि वृद्ध जन इसे सेवन करें तो नवयुवकों की भाँति शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
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18) बादाम की मिंग 4 नग को चन्दन की भाँति पत्थर पर घिसकर 1 ग्राम शहद व 1 ग्राम मिश्री मिलाकर नित्य प्रति सेवन करने से सभी प्रकार की कमजोरी दूर हो बल वीर्य की वृद्धि होती है ।
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