Sunday, 30 September 2018

काकड़ासिंगी

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काकड़ासिंगी के फल को  टी.बी. के रोग से पीड़ित रोगी को दिया जाता है। जापान में इसके फलों के रस से मोम बनाई जाती है जिससे मोमबत्तियां बनती हैं।
विभिन्न रोगों में सहायक : 
1. सूजन: काकड़ासिंगी कोष को स्वस्थ गाय के मूत्र के साथ पीसकर लेप बनाकर सूजन वाले अंग पर लगाने से सूजन मिटती है।

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2. पाचनशक्ति कमजोर होना:
  • पिप्पली का चूर्ण और काकड़ासिंगी के कोष का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम भोजन करने से आधे घंटे पहले सेवन करने से पाचनशक्ति मजबूत होती है।
  • काकड़ासिंगी और छोटी पीप्पली को शहद के साथ मिलाकर चाटने से पाचनशक्ति बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
3. मसूढ़ों से खून आना:
  • काकड़ासिंगी कोष का काढ़ा बनाकर रोजाना सुबह-शाम गरारे करने से रोग में लाभ होता है।
  • ककड़ासिंगी का गाढ़ा काढ़ा बनाकर मसूढ़ों पर लेप करें और इस लेप को कुछ देर रखने के बाद पानी से कुल्ला करें। इसका प्रयोग सुबह-शाम करने से मसूढ़ों से खून व पीव आना बंद हो जाता है।
4. उल्टी (वमन):
  • नागरमोथा और काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच शहद के साथ खाने से उल्टी बंद होती है।
  • ककड़ासिंगी और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह आधे से 2 ग्राम की मात्रा में चाटें। इससे कफमिचली व उल्टी का रोग दूर होता है।
5. चोट या घाव से खून बहना: काकड़ासिंगी कोष का बारीक चूर्ण बनाकर चोट या घाव पर बांधने से खून का बहना रुक जाता है।
6. प्रवाहिका (पेचिश): दही के साथ आधा चम्मच काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण दिन में 3 से 4 बार खाने से पेचिश (दस्त में खून व आंव का आना) ठीक होता है।
7. नपुंसकता: आधा चम्मच काकड़ासिंगी कोष का बारीक चूर्ण एक कप दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में ही नपुंसकता दूर होती है।
8. हिचकी: काकड़ासिंगीहींगगेरूसोंठमुलहठी व नागरमोथा। इन सभी के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है। इसका प्रयोग सांस रोग में भी लाभकारी होता है।
9. दस्त:   

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  • काकड़ासिंगी को पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और यह चूर्ण लगभग 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ बच्चे को चटाएं। इससे दस्त रोग में लाभ मिलता है।
  • बेलगिरी का चूर्ण और काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच दिन में 3 बार लें। इससे दस्त का अधिक आना कम होता है।
10. आमातिसार: आमातिसार के रोगी को काकड़ासिंगी का चूर्ण घी में भूनकर आधा से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम मिश्री के साथ लेना चाहिए। इसके सेवन से दस्त में आंव का आना बंद हो जाता है।
11. संग्रहणी (पेचिशप्रवाहिकादस्त में आंव व खून आना):
  • ककड़ासिंगी के चूर्ण को घी में भून लें और इसमें आधे से 2 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें। इसके प्रयोग से संग्रहणी (पेचिश) रोग ठीक होता है।
  • काकड़ासिंगी के 10 ग्राम चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करें। इसके सेवन से पेचिश रोग में लाभ मिलता है।
12. प्रदर रोग: काकड़ासिंगी के 15 ग्राम बारीक चूर्ण में 15 ग्राम खांड मिला लें और इसे 3 ग्राम की मात्रा में कच्चे दूध के साथ सुबह के समय सेवन करें। इसके सेवन से प्रदर रोग ठीक होता है।
13. पेट का दर्द: काकड़ासिंगीअतीसपीपल और नागरमोथा को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को शहद के साथ सेवन करें। इसके सेवन से पेट दर्द दूर होता है।
14. अपरस: पुराने से पुराने त्वचा रोग में काकड़ासिंगी का लेप करना लाभकारी होता है।
15. खाज-खुजली: काकड़ासिंगी को पीसकर लेप करने से खाज-खुजली दूर होती है।
16. बच्चों के दांत निकलते समय का रोग : बच्चों में दांत निकलते समय बुखार, खांसी, दस्त एवं अन्य पेट के रोग उत्पन्न होते हैं। इस तरह के रोग उत्पन्न होने पर ककड़ासिंगी, अतीस व छोटी पीप्पली को बराबर मात्रा में लें और इसके चूर्ण बनाकर कपडे़ छान लें। यह चूर्ण 60 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार बच्चे को चटाएं। इससे रोग में पूर्ण लाभ मिलता है। यदि इस चूर्ण में नागरमोथा का भी चूर्ण मिला दिया जाए तो और अधिक लाभकारी हो जाता है। यह उल्टी आने के रोग को भी ठीक करता है।
17. दमा रोग या सांस रोग:
  • काकड़ासिंगी, सोंठ, पीपल, नागरमोथा, पोहकर की जड़, कचूर और कालीमिर्च इन सभी को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में खांड मिलाकर रोजाना सेवन करने से सांस व दमा रोग ठीक होता है। इसके चूर्ण के साथ यदि गिलोय, अड़ूसा व पंचमूल का काढ़ा बनाकर पीएं तो तेज दमा रोग नष्ट हो जाता है।
  • दमा की शिकायत होने पर काकड़ासिंगी के कोष और कायफल के चूर्ण को मिलाकर एक चम्मच शहद के साथ दिन में 2 बार खाने से दमा रोग ठीक होता है।
18. खांसी:
  • खांसी एवं सांस संस्थान के अन्य रोगों में काकड़ासिंगी, भारंगी, सोंठ, छोटी पीपल, कचूर और मुनक्का बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 180 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करें। इससे खांसी ठीक होती है।
  • आधा चम्मच काकड़ासिंगी कोष का चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 बार लेने से खांसी में आराम मिलता है। इसका प्रयोग बच्चों की खांसी में भी किया जाता है। बच्चे को एक चौथाई चम्मच की मात्रा में देना लाभकारी होता है।
  • काकड़ासिंगी, अतीस और मुलहठी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में रोजाना 3 से 4 बार चाटें। इससे खांसी ठीक होती है।
  • यदि किसी को खांसी हो तो काकड़ासिंगी और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और फिर इसकी गोलियां बना लें। इस गोली को चूसने से कफ वाली खांसी में लाभ मिलता है।
  • सूखी खांसी होने पर 10 ग्राम काकड़ासिंगी, 10 ग्राम सोंठ एवं 10 ग्राम बड़ी पीपल को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से सूखी खांसी में आराम मिलता है।
19. काली खांसी:  

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  • खाली खांसी से पीड़ित रोगी को 10 ग्राम काकड़ासिंगी, 10 ग्राम सोंठ और 10 ग्राम बड़ी पीपल को पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 1-1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए। इसको चाटने से सूखी व काली खांसी में आराम मिलता है।
  • काकड़ासिंगी, पीपल की जड़, सेंधानमक, बहेड़े का छिल्का और बबूल का गोंद 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें पानी मिलाकर चने के आकार की गोलियां बना लें। इन गोलियों को छाया में सुखाकर दिन में 1-1 गोली दिन में 3-4 बार चूसें। इसके चूसने से सभी प्रकार की खांसी ठीक होती है।
  • काली खांसी होने पर 10 ग्राम काकड़ासिगी, 10 ग्राम बहेड़े का छिल्का, 10 ग्राम कबाबचीनी और 10 ग्राम मुलहठी को पीसकर इसमें अदरक का रस मिलाकर चने के आकार की गोलियां बना लें और इसे छाया में सुखा लें। यह 1-1 गोली दिन में 2-3 बार चूसने से काली खांसी दूर होती है।
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20. बालरोग:
  • बच्चे को खांसी होने पर काकड़ासिंगी को पीसकर 120 मिलीग्राम की मात्रा में शहद के साथ चटाना चाहिए। इसके चाटने से खांसी में जल्दी आराम मिलता है।
  • 5 ग्राम कांकड़ासिंगी, 5 ग्राम अतीस और 5 ग्राम छोटी पीपल को पीसकर 240 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार शहद के साथ सेवन करने से रोग ठीक होता है।
  • काकड़ासिंगी और सागौन को दूध में पकाकर इस दूध को बच्चे के तलवों पर लेप करें। इससे बच्चों के सोते समय दांत चबाने की आदत ठीक छूट जाती है।

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