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रुद्रवन्ती को रुदंती भी कहा जाता है। यह आयुर्वेद में क्षयकृमिनाशक माना जाता है। इस का प्रयोग क्षय रोग, कास, श्वास (asthma) और अन्य श्वसन प्रणाली की बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। यह आंतरिक शक्ति और शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है।
INDIANJADIBOOTI RUDRAVANTI PHAL |
खांसी में यह तब प्रयोग करना चाहिए जब छाती में कफ जमा हो या छाती में से घरघराहट या सीटी बजने जैसी आवाज आये। यह दमा रोग में सीने में होने वाली जकड़न में भी प्रभावी है और सांस की तकलीफ को दूर करती है।
यदि रोगी को गले में खुजली या खरखराहट के बाद खांसी हो रही हो तो इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह रुक्ष होती है और गले की खरखराहट और बड़ा सकती है। ऐसी अवस्था में वासापत्र का प्रयोग मुलेठी (Mulethi), प्रवाल पिष्टी आदि के साथ करने से ज्यादा लाभ मिलता है। यदि कभी इस का प्रयोग करना भी पड़े तो इसको दूध के साथ देना चाहीहे या अन्य औषधियों के साथ मिलकर देना चाहिए।
Capparis Moonii के फल ही बाजार में उपलब्ध होते है और रुदंती या रुद्रवंती के नाम से बेचे जाते है। इन्हीं का प्रयोग अधिक होता है।
Cressa Cretica एक बहुत ही दुर्लभ हर्ब है जो हिमालयी क्षेत्र में मिलती है। यह कदाचित ही प्रापत होती है। इसके गुणों और Capparis Moonii के गुणों में ज्यादा समानता है।
Capparis Moonii: फल
Cressa Cretica: पंचांग विशेषतः पत्ते और शाखाएं
औषधीय लाभ एवं प्रयोग
रुद्रवन्ती (रुदन्ती) का मुख्य प्रयोग टी.बी. की चिकित्सा में किया जाता है। इसका जीवाणुनाशक गुण टी.बी. के जीवाणु की वृद्धि रोक देता है और इस का नाश करता है। यह श्वसन प्रणाली के अन्य संक्रमणों में भी उत्तम लाभ करता है। कास और श्वास के यह एक बहुत ही फायदेमंद औषिधि है।सर्दी, जुकाम और बुखार
रुद्रवंती का चूर्ण सर्दी, जुकाम और बुखार में लाभदायक है। यह सर्दी जुकाम के लक्षणों को कम करता है और बुखार उतारता है। यह बुखार में होने वाले बदन दर्द और सिर दर्द को चिरायता की तरह ही कम कर देता है। यह बार बार होने वाली छींके, नजला और नाक के बंद होने में आराम करता है।
सर्दी, जुकाम और बुखार में रुदंती का चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लिया जा सकता है। या फिर इस का क्वाथ बना कर प्रयोग किया जा सकता है। काढ़ा बनाने के लिए 10 ग्राम फल चूर्ण या पंचांग को 240 मिलीलीटर पानी में डाल कर उबाले और जब यह कम हो कर 60 मिलीलीटर करीब रह जाये तो छान कर सुबह और शाम को लें। यह भोजन के 1 घंटे बाद लिया जा सकता है।
बलगम वाली खाँसी
रुद्रवंती बलगम वाली खाँसी में बहुत लाभकर है। यह श्वास नलियों की सूजन को कम करता है। बलगम बनना कम करता है और बनी हुई बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है। अच्छे परिणाम के लिए इसका प्रयोग हरीतकी, तुलसी और कंटकारी या बिभीतकी या त्रिकटु चूर्ण के साथ किया जा सकता है।
अगर बलगम कुछ चिकनी सी और पीले भूरे या हरे रंग की हो या बलगम में रक्त हो, तो रुद्रवंती का अकेले प्रयोग न करना ही उचित है। या फिर ऐसी अवस्था में इसको कम मात्रा में मुलेठी, प्रवाल पिष्टी, वासापत्र, और बनफ्शा के साथ करने से उचित लाभ मिलता है।
दमा या साँस संबंधित समस्याएँ
रुद्रवन्ती दमा रोगी के लिए भी लाभदायी है। यदि छाती में घरघराहट जा सिटी बजने के सामान आवाज आए और फेफड़ों या श्वास नलियों में बलगम जमा हुआ हो तो यह अधिक लाभ करती है। यह बलगम उत्पादन कम कर देती है और श्वास नलियों को खोल देती है जिस से साँस लेने में आसानी होती है। ऐसे केस में इसको शहद या गरम पानी के साथ लिया जा सकता है।
यदि मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो और बलगम का स्राव और उत्पादन सामान्य हो, तो इसे गर्म दूध के साथ लिया जाना चाहिए।
क्षयरोग
क्षयरोग में रुद्रवन्ती क्षय के जीवाणुओ की वृद्धि को रोकता है और उनका नाश करता है। रक्त की विषाक्तता को दूर करता है। यह फेफड़ों के घावों को भी कम करने में सहायक है। रुदंती के फल का लगातार ६ माह प्रयोग करने से फेफड़ों के घाव पूरी तरह ठीक हो जाते है और एक्स-रे के द्वारा जांच करने पर घाव दिखाई नहीं पड़ते।
क्षयरोग में रुद्रवन्ती चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इससे वजन बढ़ता है, भूख लगती है और शारीरिक कमजोरी दूर हो कर शरीर को ताकत मिलती है। यह बदन दर्द और थकान को भी कम करता है।
औषधीय मात्रा
बच्चे 500 मिलीग्राम से 1.5 ग्राम
वयस्क 1 से 3 ग्राम (कभी कभी 6 ग्राम तक भी दिया जा सकता है।)
सेवन विधि
दवा लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और शाम
दिन में कितनी बार लें? 2 या 3 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) रोग अनुसार अनुपान – शहद (मधु), गुनगुने पानी या दूध के साथ
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) कम से कम 6 से 12 महीने
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