Friday 13 July 2018

गौमाता ( गौमाता का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व)

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कहते हैं कि जो गौमाता के खुर से उड़ी हुई धूलि को सिर पर धारण करता है, वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है । पशुओं में बकरी, भेड़, ऊंटनी, भैंस का दूध भी काफी महत्व रखता है। किंतु केवल दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के कारण भैंस प्रजाति को ही प्रोत्साहन मिला है, क्योंकि यह दूध अधिक देती है व वसा की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे घी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है।
गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होने के बावजूद कम मात्रा में प्राप्त होता है। दूध अधिक मिले इसके लिए कुछ लोग गाय और भैंस का दूध क्रूर और अमानवीय तरीके से निकालते हैं। गाय का दूध निकालने से पहले यदि बछड़ा/बछिया हो तो पहले उसे पिलाया जाना चाहिए। वर्तमान में लोग बछड़े/बछिया का हक कम करते है। साथ ही इंजेक्शन देकर दूध बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं, जो की उचित नहीं है।



 प्राचीन ग्रंथों में सुरभि (इंद्र के पास), कामधेनु (समुद्र मंथन के 14 रत्नों में एक), पदमा, कपिला आदि गायों  महत्व बताया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देवजी ने असि, मसि व कृषि गौ वंश को साथ लेकर मनुष्य को सिखाए। हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्र से काल सर्प योग निवारण हो जाता है।

गाय के पीछे के पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि गाय के पैरों चार धाम है। जिस प्रकार पीपल का वृक्ष एवं तुलसी का पौधा आक्सीजन छोड़ते है। एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन बनती है। इसलिए हमारे यहां यज्ञ हवन अग्नि -होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता है। प्रदूषण को दूर करने का इससे अच्छा और कोई साधन नहीं है।

धार्मिक ग्रंथों में लिखा है "गावो विश्वस्य मातर:" अर्थात गाय विश्व की माता है। गौ माता की रीढ़ की हड्डी में सूर्य नाड़ी एवं केतुनाड़ी साथ हुआ करती है, गौमाता जब धुप में निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्धारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है जिसे स्वर्णक्षार कहते हैं। यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है। इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला नजर आता है। इसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अत्यंत अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हों और सामने गाय माता के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम निकले हैं वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा।

गौ माता का जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का समय (गोधूलि वेला) अत्यंत शुभ एवं पवित्र है। गाय का मूत्र गो औषधि है। मां शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है। मानव समाज में भी मां शब्द कहना गाय से सीखा है। जब गौ वत्स रंभाता है तो मां शब्द गुंजायमान होता है। गौ-शाला में बैठकर किए गए यज्ञ हवन ,जप-तप का फल कई गुना मिलता है। बच्चों को नजर लग जाने पर, गौ माता की पूंछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उत्तर जाती है, इसका उदाहरण ग्रंथों में भी पढ़ने को मिलता है,  जब पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को नजर लग जाने पर गाय की पूंछ से नजर उतारी गई।

गौ के गोबर से लीपने पर स्थान पवित्र होता है। गौ-मूत्र का पवन ग्रंथों में अथर्ववेद, चरकसहिंता, राजतिपटु, बाण भट्ट, अमृत सागर, भाव सागर, सश्रुतु संहिता में सुंदर वर्णन किया गया है। काली गाय का दूध त्रिदोष नाशक सर्वोत्तम है। रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय का दूध में रेडियो विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है। गाय का दूध एक ऐसा भोजन है, जिसमें प्रोटीन कार्बोहाइड्रेड, दुग्ध, शर्करा, खनिज लवण वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते है। गाय का दूध रसायन का करता है।

आज भी कई घरों में गाय की रोटी राखी जाती है। कई स्थानों पर संस्थाएं गौशाला बनाकर पुनीत कार्य कर रही है, जो कि प्रशंसनीय कार्य है। साथ ही यांत्रिक कत्लखानों को बंद करने का आंदोलन, मांस निर्यात नीति का पुरजोर विरोध एवं गौ रक्षा पालन संवर्धन हेतु सामाजिक धार्मिक संस्थाएं एवं सेवा भावी लोग लगातार संघर्षरत है।

दुःख इस बात का भी होता है कि लोग गाय को आवारा भटकने के लिए बाजारों में छोड़ देते है। उन्हें इनके भूख प्यास की कोई चिंता ही नहीं होती। लोगों को चाहिए की यदि गाय पालने का शौक है तो उनकी देखभाल भी आवश्यक है, क्योंकि गाय हमारी माता है एवं गौ रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।

(संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि' की कलम से)

गौ माता - क्यों हिंदू मानते हैं गाय को माता
गाय हिंदू समुदाय में माता का दर्जा दिया जाता है, उसकी पूजा की जाती है। ग्रामीण इलाकों में तो आज भी हर रोज खाना बनाते समय पहली रोटी गाय के नाम की बनती है। प्राचीन समय से ही अन्य पालतु पशुओं की तुलना में गाय को अधिक महत्व दिया जाता है। हालांकि वर्तमान में परिदृश्य बदला है और गौ धन को पालने का चलन कम हो गया है, लेकिन गाय के धार्मिक महत्व में किसी तरह की कोई कमी नहीं आयी है बल्कि पिछले कुछ समय से तो गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने तक मांग उठने लगी है। गौहत्या को धार्मिक दृष्टि से ब्रह्म हत्या के समान माना जाता है हाल ही में हरियाणा में तो गौहत्या पर सख्त कानून भी बनाया गया है। आइये जानते हैं गाय को क्यों माता का दर्जा देते हैं हिंदू लोग और क्यों माना जाता है इसे श्रेष्ठ?



गाय का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व


गाय को माता मानने के पिछे यह आस्था है कि गाय में समस्त देवता निवास करते हैं व प्रकृति की कृपा भी गाय की सेवा करने से ही मिलती है। भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल), भगवान इंद्र के पास समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली गाय कामधेनू, भगवान श्री कृष्ण का गोपाल होना एवं अन्य देवियों के मातृवत गुणों को गाय में देखना भी गाय को पूज्य बनाते हैं।

भविष्य पुराण के अनुसार गोमाता के पृष्ठदेश यानि पीठ में ब्रह्मा निवास करते हैं तो गले में भगवान विष्णु विराजते हैं। भगवान शिव मुख में रहते हैं तो मध्य भाग में सभी देवताओं का वास है। गऊ माता का रोम रोम महर्षियों का ठिकाना है तो पूंछ का स्थान अनंत नाग का है, खूरों में सारे पर्वत समाये हैं तो गौमूत्र में गंगादि पवित्र नदिया, गौमय जहां लक्ष्मी का निवास तो माता के नेत्रों में सूर्य और चंद्र का वास है। कुल मिलाकर गाय को पृथ्वी, ब्राह्मण और देव का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन समय में गोदान सबसे बड़ा दान माना जाता था और गौ हत्या को महापाप। यही कारण रहे हैं कि वैदिक काल से ही हिंदू धर्म के मानने वाले गाय की पूजा करते आ रहे हैं। गाय की पूजा के लिये गोपाष्टमी का त्यौहार भी भारत भर में मनाया जाता है।



गाय का आर्थिक महत्व


प्राचीन काल में तो व्यक्ति की समृद्धि, संपन्नता गोधन से ही आंकी जाती थी यानि जिसके पास जितनी ज्यादा गाय वह उतना ही धनवान, तमाम कर्मकांडो, संस्कारों में गो दान को ही अहमियत दी जाती थी, परिवार का भरण पोषण गाय पर ही निर्भर करता था, खेतों को जोतने के लिये बैल गाय से ही मिलते थे, दूध, दही, घी की आपूर्ति तो होती ही थी, गौ मूत्र और गोबर तक उपयोगी माने जाते हैं। कुल मिलाकर मनुष्य के जीवन स्तर को समृद्ध बनाने में गाय अहम भूमिका निभाती थी, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं अब गाय का आर्थिक महत्व कम होने लगा है और धार्मिक महत्ता अभी बची हुई है।



वैज्ञानिक महत्व



ऐसा नहीं है कि गाय केवल धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण होती है। बल्कि कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी हैं जो गाय के महत्व को दर्शाते हैं। भले ही दूध, दही, घी के मामले में आज भैंस से मात्रात्मक दृष्टि से उत्पादन ज्यादा मिलता हो लेकिन गुणवत्ता के मामले में गाय के दूध, व गाय के दूध से बने उत्पादों का कोई मुकाबला नहीं हैं। एक और गाय का दूध ज्यादा शक्तिशाली होता है तो वहीं उसमें वसा की मात्रा भैंस के दूध के मुकाबले बहुत कम मात्रा में पायी जाती है। गाय के दूध से बने अन्य उत्पाद भी काफी पौष्टिक होते हैं।

माना जाता है कि गाय ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। गौमूत्र में ऐसे तत्व होते हैं जो हृद्य रोगों के लिये लाभकारी हैं। जैसे कि गौमूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड और दूध देते समय हुए गौमूत्र में लेक्टोज आदि की मात्रा का आधिक्य होता है। जिसे चिकित्सीय दृष्टि से लाभकारी माना जाता है।

गाय का गोबर खाद के रुप में इस्तेमाल करने पर जमीन की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है। इस तरह कई कारण हैं जो गाय के वैज्ञानिक महत्व को भी बतलाते हैं।



क्या सभी गाय पूजने योग्य हैं



चूंकि हिंदू धर्म के मानने वाले मुख्यत: भारत में हैं भारत में गाय की 28 नस्लें पाई जाती हैं। रेड सिंधी, साहिवाल, गिर, देवनी, थारपारकर आदि तो दुधारु गायों की नस्लें हैं। गाय दूसरे देशों में भी मिलती हैं जिनकी दूध के उत्पादन की क्षमता भी भारतीय गायों से ज्यादा होती है। आजकल विदेशी नस्ल की गायों को पालने का चलन भी उनकी उत्पादकता के चलते भारत में भी बढ़ रहा है लेकिन धार्मिक रुप से देशी गाय को ही पूजनीय माना जाता है। गुणवत्ता के मामले में भी देशी गाय का दूध ही बेहतर बताया जाता है।

गौ माँ की जितनी महिमा बताई जाये उतनी कम है | आप किसी भी मंदिर में चले जाये आपको गिनती के देवी देवताओ की मूर्तियाँ दिखाई देगी पर इस संसार में गाय माँ ऐसी प्राणी है जिसमे मुख्य सभी देवी देवताओ का निवास है | अब आप ही बताये की इससे अधिक पवित्र और सनातनी प्राणी ओर कौन हो सकता है |

गाय की महिमा को बताने वाली 10 मुख्य बाते
विज्ञान के अनुसार चमत्कार : वैज्ञानिको के अनुसार गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है आक्सीजन ही लेती है और आक्सीजन ही छोड़ती है |

गौ है पवित्र : एकमात्र ऐसी प्राणी है जिसका दूध , मूत्र और गोबर तक पवित्र बताया गया है |

जीवाणु नाशक : यदि गौ माँ के गोबर के कंडे बनाकर जलाया जाये , तो इसके धुएं से वातारण के कीटाणु जीवाणु मर जाते है |

गोबर में विटामिन B : गाय माता के गोबर में विटामिन B प्रचुर होता है जो की आस पास की रेडियोधर्मिता को सोख लेता है |
गाय के पैर की धुल : यदि घर में आप गौ माँ के पैरो की धुल को छिड़केंगे तो नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाएगी |

गौ है माँ : गाय का दूध नवजात के लिए माँ के दूध के समान पौष्टिक बताया गया है | जिन माँ के दूध नही आता वो अपने छोटे बच्चे को गाय का दूध ही पिलाती है | इसलिए ही गौ माँ को विश्व की माँ की भी संज्ञा दी गयी है |

लक्ष्मी समान गौ : गौ माँ को लक्ष्मी का रूप बताया गया है | जिस घर से हर दिन गाय माता को रोटी दी जाती है उस घर में सदैव माँ अन्नपूर्णा प्रसन्न रहती है |

धार्मिक कार्य में गौ मल है पवित्र : यदि हवन पूजा और ज्योत देखने वाले सभी कार्यो में गाय के गोबर के बने कंडे काम में लिए जाते है | जगह को पवित्र करने के लिए गौमूत्र को छिड़का जाता है |

गौ दान है महान : प्राचीनकाल से ही माना गया है जो व्यक्ति गाय का दान करता है वो दान महादान में आता है | माना जाता है की जो गाय का दान करते है उन्हें सूर्य देवता के लोक की प्राप्ति होती है |

गौमूत्र से बीमारी दूर : मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए और कई बीमारियों के उपचार की क्षमता रखते है | यह ह्रदय और केंसर  से जुड़े रोगों के लिए फायदेमंद है | इसमे गंगा का वास बताया गया है |

गौमाता की चिकित्सा


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