Wednesday, 25 July 2018

सम्यक आहार, आहार कैसा हो? मनुष्य क्या खाए और क्या न खाए? भोजन कैसे करें?

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सम्यक आहार

मनुष्य एक अकेली प्रजाति है जिसका आहार अनिश्चित है। अन्य सभी जानवरों का आहार निश्चित है। उनकी बुनियादी शारीरिक जरूरतें और उनका स्वभाव फैसला करता है के वे क्या खाते हैं और क्या नहीं; कब वे खाते हैं और कब उन्हें नहीं खाना होता है। किन्तु मनुष्य का व्यवहार बिलकुल अप्रत्याशित है, वह बिल्कुल अनिश्चितता में जीता है। न ही तो उसकी प्रकृति उसे बताती है कि उसे कब खाना चाहिए, न उसकी जागरूकता बताती है कि कितना खाना चाहिए, और न ही उसकी समझ फैसला कर पाती है कि उसे कब खाना बंद करना है|

अब जब इनमे से कोई भी गुण निश्चित नहीं है तो मनुष्य का जीवन बड़ी अनिश्चित दिशा में चला गया है। लेकिन अगर मनुष्य थोड़ी सी भी समझदारी दिखाए, अगर थोड़ी सी बुद्धि से जीने लगे, थोड़ी सी विचारशीलता के साथ, थोड़ी सी अपनी आँखें खोल ले, तो सही आहार का निर्णय लेना बिलकुल कठिन नहीं होगा. यह बहुत आसन है; इससे आसन कुछ हो भी नहीं सकता। सही आहार को समझने के लिए हम इसे दो हिस्सों में बाँट सकते हैं।

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पहली बात: मनुष्य क्या खाए और क्या न खाए?

मनुष्य का शरीर रासायनिक तत्वों से बना है, शरीर की पूरी प्रक्रिया रासायनिक है। अगर मनुष्य के शरीर में शराब डाल दी जाये, तो उसका शरीर पूरी तरह उस रसायन के प्रभाव में आ जायेगा; यह नशे के प्रभाव में आ कर बेहोश हो जायेगा। कितना भी स्वस्थ, कितना भी शांत मनुष्य क्यों न हो, नशे का रसायन उसके शरीर को प्रभावित करेगा। कोई मनुष्य कितना भी पुण्यात्मा क्यों न हो, अगर उसे जहर दिया जाये तो वह मारा जायेगा।

कोई भी भोजन जो मनुष्य को किसी तरह की बेहोशी, उत्तेजना, चरम अवस्था, या किसी भी तरह की अशांति में ले जाए, हानिकारक है। और सबसे गहरी, परम हानि तब होती है जब ये चीजें नाभि तक पहुंचने लगती हैं।

शायद तुम नहीं जानते की पूरी दुनिया की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में शरीर को स्वस्थ करने के लिए गीली मिट्टी, शाकाहारी भोजन, हलके भोजन, गीली पट्टीयों और बड़े टब में स्नान का प्रयोग किया जाता है। लेकिन अब तक कोई प्राकृतिक चिकित्सक यह नहीं समझ पाया है कि गीली पट्टीयों, गीली मिट्टी, टब में स्नान का जो इतना लाभ मिलता है, वह इनके विशेष गुणों के कारण नहीं बल्कि नाभि केंद्र पर इनके प्रभाव के कारण है। नाभि केंद्र पुरे शरीर पर प्रभाव डालता है। ये सारी चीजें जैसे मिट्टी, पानी, टब स्नान नाभि केंद्र की निष्क्रिय ऊर्जा पर प्रभाव डालती हैं, और जब ये उर्जा सक्रिय होनी शुरु होती है तो मनुष्य स्वस्थ होने लगता है।

लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा अभी यह बात नहीं जान पाई है। प्राकृतिक चिकित्सक सोचते हैं कि शायद ये स्वास्थ्य लाभ गीली मिट्टी, टब में स्नान, या गीली पट्टीयों को पेट पर रखने के कारण हैं। इन सब से भी लाभ होता है, परन्तु वास्तविक लाभ नाभि केंद्र कि निष्क्रिय ऊर्जा के सक्रिय होने से होता है।

अगर नाभि के साथ गलत व्यवहार किया जाये, अगर गलत आहार, गलत भोजन किया जाये, तो धीरे धीरे नाभि केंद्र निष्क्रिय पड़ जाता है और इसकी उर्जा घटने लगती है। धीरे-धीरे नाभि केंद्र सुस्त पड़ने लगता है, आखिर में यह लगभग सो जाता है। तब हम इसे एक केंद्र की तरह देखना भी बंद कर देते हैं।

तब हमें सिर्फ दो केंद्र दिखाई पड़ते हैं: एक मस्तिष्क जहां निरंतर विचार चलते रहते हैं, और थोडा बहुत हृदय जहां भावों का प्रवाह रहता है। इससे गहराई में हमारा किसी चीज से संपर्क नहीं बन पाता। तो जितना हल्का खाना होगा, उतना वह शरीर में कम भारीपन बनाएगा, और अंतर यात्रा शुरू करने के लिए वह ज्यादा मूल्यवान और महत्वपूर्ण बन जायेगा।

सही आहार के बारे में ये याद रखना चाहिए की ये उत्तेजना न पैदा करे, ये नशीला न हो, और भारी न लगे। सही आहार लेने के बाद आपको भारीपन और तंद्रा महसूस नहीं होनी चाहिए। लेकिन शायद हम सभी भोजन के बाद भारीपन और तंद्रा महसूस करते हैं, तब हमें जानना चाहिए कि हम सही भोजन नहीं कर रहे हैं।

कुछ लोग इसलिए बीमार पड़ते हैं कि उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता और कुछ ज्यादा खाने के कारण रोगग्रस्त रहते हैं। कुछ लोग भूख से मरते हैं तो कुछ जरुरत से ज्यादा खाने से। और जरुरत से ज्यादा खाने के कारण मरने वालों की संख्या हमेशा भूख से मरने वालों से ज्यादा रही है। भूख से बड़े कम लोग मरते हैं। अगर एक आदमी भूखा भी रहना चाहे तो 3 महीने से पहले उसके भूख से मरने की कोई सम्भावना नहीं है। कोई भी व्यक्ति 3 महीने तक भूखा रह सकता है। लेकिन अगर कोई 3 महीने तक जरुरत से ज्यादा खाना खाता रहे तो उसके बचने की कोई संभावना नहीं है।

भोजन के प्रति गलत नजरिये हमारे लिए खतरनाक बनते जा रहे हैं। ये बहुत महंगे साबित हो रहे हैं। ये हमें ऐसी स्थिति में ले जा चुके हैं जहां हम बस किसी तरह जीवित हैं। हमारा भोजन शरीर को स्वास्थ्य देने की बजाय बीमारियां देता जान पड़ता है। यह ऐसा हुआ जैसे सुबह उगता सूरज अन्धकार पैदा करे। यह भी उतनी ही आश्चर्यजनक और अजीब बात होगी। परन्तु दुनिया के सभी चिकित्सकों की यह आम राय है कि मनुष्य की ज्यादातर बीमारियां गलत खानपान के कारण हैं।

तो पहली बात यह कि हर मनुष्य अपने भोजन के प्रति जागरूक और सचेत हो।  एक मनुष्य के लिए यह बहुत आवश्यक है कि वह अनपे भोजन के प्रति जागरूक रहे, कि वह क्या खा रहा है, कितना खा रहा है, और इसका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अगर कोई व्यक्ति जागरूकता से कुछ महीने प्रयोग करे, तो वह निश्चित रूप से पता लगा लेगा कि कौन सा भोजन उसे स्थिरता, शांति और स्वास्थ्य प्रदान करता है। इसमें कोई मुश्किल नहीं है, परन्तु यदि हम अपने भोजन के प्रति जागरूक नहीं हैं, तो हम कभी अपने लिए सही भोजन नहीं तलाश पाएंगे|




भोजन कैसे करें
दूसरी बात, भोजन के संबंध में, जो हम खाते हैं, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे किस भाव-दशा में खाते हैं। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। आप क्या खाते हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना यह महत्वपूर्ण है कि आप किस भाव-दशा में खाते हैं। आप आनंदित खाते हैं, या दुखी, उदास और चिंता से भरे हुए खाते हैं। अगर आप चिंता से खा रहे हैं, तो श्रेष्ठतम भोजन के परिणाम भी पाय़जनस होंगे, जहरीले होंगे। और अगर आप आनंद से खा रहे हैं, तो कई बार संभावना भी है कि जहर भी आप पर पूरे परिणाम न ला पाए। इसकी बहुत संभावना है। आप कैसे खाते हैं, किस चित्त-दशा में?

हम तो चिंता में ही चौबीस घंटे जीते हैं। तो हम जो भोजन करते होंगे, वह कैसे पच जाता है यह मिरेकल है, यह बिलकुल चमत्कार है। यह भगवान कैसे करता है, हमारे बावजूद करता है यह। हमारी कोई इच्छा उसके पचने की नहीं है। यह कैसे पच जाता है, यह बिलकुल आश्चर्य है! और हम कैसे जिंदा रह लेते हैं, यह भी एक आश्चर्य है! भाव-दशा--आनंदपूर्ण, प्रसादपूर्ण निश्चित ही होनी चाहिए।

लेकिन हमारे घरों में हमारे भोजन की जो टेबल है या हमारा चौका जो है, वह सबसे ज्यादा विषादपूर्ण अवस्था में है। पत्नी दिन भर प्रतीक्षा करती है कि पति कब घर खाने आ जाए। चौबीस घंटे का जो भी रोग और बीमारी इकट्ठी हो गई है, वह पति की थाली पर ही उसकी निकलती है। और उसे पता नहीं कि वह दुश्मन का काम कर रही है। उसे पता नहीं, वह जहर डाल रही है थाली में।

और पति भी घबड़ाया हुआ, दिन भर की चिंता से भरा हुआ थाली पर किसी तरह भोजन को पेट में डाल कर हट जाता है! उसे पता नहीं है कि एक अत्यंत प्रार्थनापूर्ण कृत्य था, जो उसने इतनी जल्दी में किया है और भाग खड़ा हुआ है। यह कोई ऐसा कृत्य नहीं था कि जल्दी में किया जाए। यह उसी तरह किए जाने योग्य था, जैसे कोई मंदिर में प्रवेश करता है, जैसे कोई प्रार्थना करने बैठता है, जैसे कोई वीणा बजाने बैठता है। जैसे कोई किसी को प्रेम करता है और उसे एक गीत सुनाता है।

यह उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था। वह शरीर के लिए भोजन पहुंचा रहा था। यह अत्यंत आनंद की भाव-दशा में ही पहुंचाया जाना चाहिए। यह एक प्रेमपूर्ण और प्रार्थनापूर्ण कृत्य होना चाहिए।

जितने आनंद की, जितने निश्चिंत और जितने उल्लास से भरी भाव-दशा में कोई भोजन ले सकता है, उतना ही उसका भोजन सम्यक होता चला जाता है।

हिंसक भोजन यही नहीं है कि कोई आदमी मांसाहार करता हो। हिंसक भोजन यह भी है कि कोई आदमी क्रोध से आहार करता हो। ये दोनों ही वायलेंट हैं, ये दोनों ही हिंसक हैं। क्रोध से भोजन करते वक्त, दुख में, चिंता में भोजन करते वक्त भी आदमी हिंसक आहार ही कर रहा है। क्योंकि उसे इस बात का पता ही नहीं है कि वह जब किसी और का मांस लाकर खा लेता है, तब तो हिंसक होता ही है, लेकिन जब क्रोध और चिंता में उसका अपना मांस भीतर जलता हो, तब वह जो भोजन कर रहा है, वह भी अहिंसक नहीं हो सकता है। वहां भी हिंसा मौजूद है।

सम्यक आहार का दूसरा हिस्सा है कि आप अत्यंत शांत, अत्यंत आनंदपूर्ण अवस्था में भोजन करें। और अगर ऐसी अवस्था न मिल पाए, तो उचित है कि थोड़ी देर भूखे रह जाएं, उस अवस्था की प्रतीक्षा करें। जब मन पूरा तैयार हो, तभी भोजन पर उपस्थित होना जरूरी है। कितनी देर मन तैयार नहीं होगा? मन के तैयार होने का अगर खयाल हो, तो एक दिन मन भूखा रहेगा, कितनी देर भूखा रहेगा? मन को तैयार होना पड़ेगा। मन तैयार हो जाता है, लेकिन हमने कभी उसकी फिकर नहीं की है।

हमने भोजन डाल लेने को बिलकुल मैकेनिकल, एक यांत्रिक क्रिया बना रखी है कि शरीर में भोजन डाल देना है और उठ जाना है। वह कोई साइकोलॉजिकल प्रोसेस, वह कोई मानसिक प्रक्रिया नहीं रही है। यह घातक बात है।

शरीर के तल पर सम्यक आहार स्वास्थ्यपूर्ण हो, अनुत्तेजनापूर्ण हो, अहिंसक हो और चित्त के आधार पर आनंदपूर्ण चित्त की दशा हो, प्रसादपूर्ण मन हो, प्रसन्न हो, और आत्मा के तल पर कृतज्ञता का बोध हो, धन्यवाद का भाव हो। ये तीन बातें भोजन को सम्यक बनाती हैं।

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मुझे भोजन उपलब्ध हुआ है, यह बहुत बड़ी धन्यता है। मुझे एक दिन और जीने को मिला है, यह बहुत बड़ा ग्रेटिट्यूड है। आज सुबह मैं फिर जीवित उठ आया हूं। आज फिर सूरज ने रोशनी की है। आज फिर चांद मुझे देखने को मिलेगा। आज मैं फिर जीवित हूं। जरूरी नहीं था कि मैं आज जीवित होता। आज मैं कब्र में भी हो सकता था, लेकिन आज मुझे फिर जीवन मिला है। और मेरे द्वारा कुछ भी कमाई नहीं की गई है, जीवन पाने को। जीवन मुझे मुफ्त में मिला है। इसके लिए कम से कम धन्यवाद का, मन में अनुग्रह का, ग्रेटिट्यूड का कोई भाव होना चाहिए।

भोजन हम कर रहे हैं, पानी हम पी रहे हैं, श्वास हम ले रहे हैं, इस सबके प्रति अनुग्रह का बोध होना चाहिए। समस्त जीवन के प्रति, समस्त जगत के प्रति, समस्त सृष्टि के प्रति, समस्त प्रकृति के प्रति, परमात्मा के प्रति एक अनुग्रह का बोध होना चाहिए कि मुझे एक दिन और जीवन का मिला है। मुझे एक दिन और भोजन मिला है। मैंने एक दिन और सूरज देखा। मैंने आज और फूल खिले देखे। आज मैं और जीवित था।

यह जो भाव है, यह जो कृतज्ञता का भाव है, वह समस्त जीवन के साथ संयुक्त होना चाहिए। आहार के साथ तो बहुत विशेष रूप से। तो ही आहार सम्यक हो पाता है।

हिंदुओं ने अन्न को ब्रह्म कहा है। जिन्होंने अन्न को ब्रह्म कहा है उन्होंने जरूर स्वाद लिया होगा। उन्होंने तुम जैसे ही भोजन न किया होगा। वे बड़े होशियार लोग रहे होंगे, बड़े कुशल रहे होंगे। कोई गहरी कला उन्हें आती थी कि रोटी में उन्होंने ब्रह्म को देख लिया। दुनिया में किसी ने भी नहीं कहा है अन्नं ब्रह्म। कैसे लोग थे! रोटी में ब्रह्म! जरूर उन्होंने रोटी कुछ और ढंग से खाई होगी। उन्होंने भोजन को ध्यान बना लिया होगा। वे भागे-भागे नहीं थे। वे जब भोजन कर रहे थे तो भोजन ही कर रहे थे। उनकी पूरी प्राण-ऊर्जा भोजन में लीन थी। और तब जरूर रूखी रोटी में भी वह रस है जिसको ब्रह्म कहा है। तुम्हें भोजन करना आना चाहिए।

उपनिषद कहते हैं–“अन्नं ब्रह्म।’ और ब्रह्म के साथ कम से कम इतना तो सम्मान करो कि होशपूर्वक उसे अपने भीतर जाने दो।

इसलिए सारे धर्म कहते हैं, भोजन के पहले प्रार्थना करो, प्रभु को स्मरण करो। स्नान करो, ध्यान करो, फिर भोजन में जाओ, ताकि तुम जागे हुए रहो। जागे रहे तो जरूरत से ज्यादा खा न सकोगे। जागे रहे, तो जो खाओगे वह तृप्त करेगा। जागे रहे, तो जो खाओगे वह चबाया जाएगा, पचेगा, रक्त-मांस-मज्जा बनेगा, शरीर की जरूरत पूरी होगी। और भोजन शरीर की जरूरत है, मन की जरूरत नहीं।

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जागे हुए भोजन करोगे तो तुम एक क्रांति घटते देखोगे कि धीरे-धीरे स्वाद से आकांक्षा उखड़ने लगी। स्वाद की जगह स्वास्थ्य पर आकांक्षा जमने लगी। स्वाद से ज्यादा मूल्यवान भोजन के प्राणदायी तत्व हो गये। तब तुम वही खाओगे, जो शरीर की निसर्गता में आवश्यक है, शरीर के स्वभाव की मांग है। तब तुम कृत्रिम से बचोगे, निसर्ग की तरफ मुड़ोगे।

ओशो

Saturday, 21 July 2018

रुद्रवंती फल है क्षय रोग के उपचार में सहयोगी

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रुद्रवन्ती को रुदंती भी कहा जाता है। यह आयुर्वेद में क्षयकृमिनाशक माना जाता है। इस का प्रयोग क्षय रोग, कास, श्वास (asthma) और अन्य श्वसन प्रणाली की बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। यह आंतरिक शक्ति और शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है।

INDIANJADIBOOTI RUDRAVANTI PHAL



खांसी में यह तब प्रयोग करना चाहिए जब छाती में कफ जमा हो या छाती में से घरघराहट या सीटी बजने जैसी आवाज आये। यह दमा रोग में सीने में होने वाली जकड़न में भी प्रभावी है और सांस की तकलीफ को दूर करती है।

यदि रोगी को गले में खुजली या खरखराहट के बाद खांसी हो रही हो तो इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह रुक्ष होती है और गले की खरखराहट और बड़ा सकती है। ऐसी अवस्था में वासापत्र का प्रयोग मुलेठी (Mulethi), प्रवाल पिष्टी आदि के साथ करने से ज्यादा लाभ मिलता है। यदि कभी इस का प्रयोग करना भी पड़े तो इसको दूध के साथ देना चाहीहे या अन्य औषधियों के साथ मिलकर देना चाहिए।

Capparis Moonii के फल ही बाजार में उपलब्ध होते है और रुदंती या रुद्रवंती के नाम से बेचे जाते है। इन्हीं का प्रयोग अधिक होता है।

Cressa Cretica एक बहुत ही दुर्लभ हर्ब है जो हिमालयी क्षेत्र में मिलती है। यह कदाचित ही प्रापत होती है। इसके गुणों और Capparis Moonii के गुणों में ज्यादा समानता है।

Capparis Moonii: फल
Cressa Cretica: पंचांग विशेषतः पत्ते और शाखाएं

औषधीय लाभ एवं प्रयोग 

रुद्रवन्ती (रुदन्ती) का मुख्य प्रयोग टी.बी. की चिकित्सा में किया जाता है। इसका जीवाणुनाशक गुण टी.बी. के जीवाणु की वृद्धि रोक देता है और इस का नाश करता है। यह श्वसन प्रणाली के अन्य संक्रमणों में भी उत्तम लाभ करता है। कास और श्वास के यह एक बहुत ही फायदेमंद औषिधि है।

सर्दी, जुकाम और बुखार
रुद्रवंती का चूर्ण सर्दी, जुकाम और बुखार में लाभदायक है। यह सर्दी जुकाम के लक्षणों को कम करता है और बुखार उतारता है। यह बुखार में होने वाले बदन दर्द और सिर दर्द को चिरायता की तरह ही कम कर देता है। यह बार बार होने वाली छींके, नजला और नाक के बंद होने में आराम करता है।

सर्दी, जुकाम और बुखार में रुदंती का चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लिया जा सकता है।  या फिर इस का क्वाथ बना कर प्रयोग किया जा सकता है। काढ़ा बनाने के लिए 10 ग्राम फल चूर्ण या पंचांग को 240 मिलीलीटर पानी में डाल कर उबाले और जब यह कम हो कर 60 मिलीलीटर करीब रह जाये तो छान कर सुबह और शाम को लें। यह भोजन के 1 घंटे बाद लिया जा सकता है।

बलगम वाली खाँसी
रुद्रवंती बलगम वाली खाँसी में बहुत लाभकर है। यह श्वास नलियों की सूजन को कम करता है। बलगम बनना कम करता है और बनी हुई बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है। अच्छे परिणाम के लिए इसका प्रयोग हरीतकी, तुलसी और कंटकारी या बिभीतकी या त्रिकटु चूर्ण के साथ किया जा सकता है।

अगर बलगम कुछ चिकनी सी और पीले भूरे या हरे रंग की हो या बलगम में रक्त हो, तो रुद्रवंती का अकेले प्रयोग न करना ही उचित है। या फिर ऐसी अवस्था में इसको कम मात्रा में मुलेठी, प्रवाल पिष्टी, वासापत्र, और बनफ्शा के साथ करने से उचित लाभ मिलता है।

दमा या साँस संबंधित समस्याएँ
रुद्रवन्ती दमा रोगी के लिए भी लाभदायी है। यदि  छाती में घरघराहट जा सिटी बजने के सामान आवाज आए और फेफड़ों या श्वास नलियों में बलगम जमा हुआ हो तो यह अधिक लाभ करती है। यह बलगम उत्पादन कम कर देती है और श्वास नलियों को खोल देती है जिस से साँस लेने में आसानी होती है। ऐसे केस में इसको शहद या गरम पानी के साथ लिया जा सकता है।

यदि मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो और बलगम का स्राव और उत्पादन सामान्य हो, तो इसे गर्म दूध के साथ लिया जाना चाहिए।

क्षयरोग
क्षयरोग में रुद्रवन्ती क्षय के जीवाणुओ की वृद्धि को रोकता है और उनका नाश करता है। रक्त की विषाक्तता को दूर करता है। यह फेफड़ों के घावों को भी कम करने में सहायक है। रुदंती के फल का लगातार ६ माह प्रयोग करने से फेफड़ों के घाव पूरी तरह ठीक हो जाते है और एक्स-रे के द्वारा जांच करने पर घाव दिखाई नहीं पड़ते।

क्षयरोग में रुद्रवन्ती चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इससे वजन बढ़ता है, भूख लगती है और शारीरिक कमजोरी दूर हो कर शरीर को ताकत मिलती है। यह बदन दर्द और थकान को भी कम करता है।



औषधीय मात्रा
बच्चे 500 मिलीग्राम से 1.5 ग्राम
वयस्क 1 से 3 ग्राम (कभी कभी 6 ग्राम तक भी दिया जा सकता है।)

सेवन विधि

दवा लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और शाम

दिन में कितनी बार लें? 2 या 3 बार

अनुपान (किस के साथ लें?) रोग अनुसार अनुपान – शहद (मधु), गुनगुने पानी या दूध के साथ

उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) कम से कम 6 से 12 महीने

Thursday, 19 July 2018

क्या आप आम से सम्बंधित इस महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में जानते हें ?


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आम का सीजन चल रहा है| 


आम के शौकीन लोग इसका भरपूर लुत्फ़ उठा रहे हैं पर क्या आप जानते हें की -
केवल फल जैसे केला, आम और कुछ किस्म के आड़ू आदि में शर्करा (Sugar) की मात्रा काफी होती है। इन्हें खाने और इसके बाद प्रोटीन नहीं लेने से खून में इंसुलिन (Insulin) का स्तर तेजी से बढ़ जाता है। पाचन के बाद तेजी से कम भी हो जाता है| इंसुलिन में यह उतार-चढ़ाव थकान तो पैदा करता है, साथ ही वजन भी बढ़ा सकता है। यही नहीं एसे लोगों में ह्रदय रोग का खतरा भी बढ़ जाता है|


तो क्या करें?


इसलिए जब भी केवल फल खाएं तो उसके बीस मिनट बाद प्रोटीन युक्त चीजें जैसे मुट्ठी भर मेवे, मुगफली, या चीज, पनीर, आदि का एक टुकड़ा  जरुर खाएं। इससे रक्त शर्करा तेजी से कम नहीं होगी और ह्रदय रोग के खतरों से बचा जा सकेगा|



Tuesday, 17 July 2018

Tips to avoid coughs and colds

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Tips to avoid coughs and colds

Everyone still seems to be coming down with a cough, cold or even the flu. But you can avoid the snuffles, by putting our Top 10 tips into action
1.Think green.

Dark green leafy vegetables, like kale, greens and spinach, Vitamin C and E all help your body fight infections and boost your immune system.
2. Don't be a sinner.

Smoking and drinking may be enjoyable for many of us, but they won't help you fight off an infection. Smoking means you're more likely to get a sore throat, while wine and beer will attack your liver and it will take longer for any germs to leave the body.

3. Chill out.

Stress is a huge factor in staying healthy, so if you can cut out the things that get you all knotted up, then you're less likely to catch a cold.
4. Go for a curry.

Turmeric and ginger are both common ingredients in curries and research has shown that they can help to boost your immune system and protect against infections.5. Make a fruit cocktail.

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If eating lots of fruit sounds like hard work, why not rustle up a fruit juice. Oranges, limes, strawberries, blackberries and apples are all packed with immune-boosting nutrients and can really help fight off sniffles.

6. Have a wash.

We're not saying you smell! Washing your hands is one of the best and easiest ways of stopping viruses getting to you.
7. Get up and out.

We're not suggesting that you start training for the London Marathon, but getting regular exercise, even if it's a 20-minute walk to the shops, will help. Working your body increases its natural defences and reduces the chances of getting ill.

8. Think like the French.

Garlic can be a real turn-off to some people, but it is one of the most powerful anti-bacterial and anti-viral nutrients around. If you find the taste too strong, you can always take it in tablet form.

9. Get some sleep.

While you're under the duvet and your brain is having a rest, your body is using the time to recharge and fight off any infections.

10. Watch a funny movie.

It has been proved that laughter raises the levels of immune-boosting hormones in the blood, that help to fight infections. Laughter really is the best medicine.




Monday, 16 July 2018

नाइटफॉल की समस्या से बचने का क्या उपाय है?

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A- एसा होना कोई विशेष रोग या खराबी नहीं है। यह एक सामान्य बात है, जो अधिकांश अविवाहित नवयुवको मेँ पाई जाती है। उत्तेजक वातावरण/पत्रिकाए/ फिल्मे/ पोर्न साइट्स/ कामुक कल्पनाये, एवं अधिक मिर्च मसाले युक्त चाट-पकोड़ी खाने से अधिक होती हे, इनकी अधिकता से बचें। अधिक होने पर चिकित्सक से संपर्क करें।
इसको विस्तार से निम्नानुसार समझें-    वीर्य या सीमेन हमेशा बनता ही रहता है। इसमें से 99 फीसदी तरल या सीमेन की मात्रा सेमिनल वैसिकल और प्रोस्टेट ग्रंथि में बनती है। कुल वीर्य में से एक प्रतिशत से भी कम मात्रा शुक्राणुओं की होती है। ये हम बिना माइक्रोस्कोप के नहीं देख सकते। अधिक वीर्य (सीमेन) सामान्य तरीके से बाहर नहीं निकलता तो खुद निकल जाया करता है। जैसे पानी से लबालब भरे ग्लास में और पानी भरने की कोशिश करेंगे तो पानी छलक जाएगा। इसी तरह प्राणियों का सीमेन, स्वप्नमैथुन या नाइटफॉल के जरिए बाहर आ जाता है। अनिश्चित समय के लिए सीमेन रोककर नहीं रखा जा सकता। जिस तरह मल-मूत्र, आदि को हमेशा रोके रखना मुमकिन नहीं होता, उसी तरह वीर्य को भी अनिश्चित समय के लिए रोककर रखना नामुमकिन है।
    हमारे पास बहुत-से ऐसे मरीज आते हैं, जो कहते हें की नाइटफॉल के बाद कमजोरी महसूस होती है। कारण है, कि मन में कई भ्रामक धारणाएं बैठा दी गई हैं। जैसे एक बूंद वीर्य सौ बूंद खून एक समान है आदि आदि। 
  •      वास्तव में यह है कि दिखाई देने वाला वीर्य भी एक प्रकार का पसीना,लार, आदि की तरह का तरल पदार्थ है,  जो स्पर्म को जीवित रहने ओर तैरकर डिंब तक ले जाने के लिये ही होता है। यह तरल जितना शरीर से बाहर आता है, उतना ही भीतर बनता भी रहता है। जैसे एक आदमी अगर अपनी लार थूक दे, तो उसके मुंह में थूक कम नहीं हो जाएगा। कुछ देर में वह फिर बन जाएगा। नाइटफॉल में कम-ज्यादा कुछ नहीं होता। यह हरेक की मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। अगर किसी को रात में ज्यादा उत्तेजक कामुक विचार या सपने आते हैं, तो उसे नाइटफॉल होने की संभावना भी ज्यादा होगी। 


   जिन्हे इस प्रकार के कारणो से अधिक होता हो वे इससे बचने के लिए -

  • रात को हाथ-मुंह और दोनों पांव ठंडे पानी से धोकर सोएं। 
  • आयुर्वेद ग्रंथो के अनुसार यदि कोई अधिक वीर्य की उत्पत्ति चाहता हो तो वह डिस्चार्ज के बाद प्रात: एक चम्मच गाय का घी और मिश्री गुनगुने दूध में मिलाकर ले।  परिश्रम शील युवकों के लिए गाय के घी का वैसे भी नियमित सेवन करना बेहतर रहता है।


असीमित, अध्भुत और अकल्पनीय काम शक्ति का स्त्रोत -सालम मिश्री, सालम पंजा ओर उसके चमत्कार

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 असीमित शक्ति का स्त्रोत सालम मिश्री   

       अक्सर कुछ आदिवासी कबीले के स्त्री पुरुषों को सड़क पर मजमा लगाए, थेले टांग कर जड़ी बूटी बेचते हुए अकसर सभी ने देखा होगा। ये सालम मिश्री ले लो जेसी आवाज भी लगते देखे जाते हें। जिज्ञासा वश जब कोई उनसे पूछे तो वे मर्दांनगी की दवा बताते हें। कई लोग ले भी लेते हें विशेषकर ग्रामीण,  उसके उपयोग के बाद लाभ होने पर उनके अन्य साथी भी आकर्षित होते हें। अधिकांश लोग यह नहीं जानते की ये क्या हे?

Pure Irani Salab Mishri (Best Quality)


शक्ति का स्त्रोत सालम मिश्री या सालम पंजा
  यह एक क्षुप्रजाती की जड़ी होती हे।इस वनस्पति के कन्द को सलाम मिश्री कहा जाता हे। यह अफगानिस्तान, ईरान,में पेदा होती हे। https://indianjadibooti.com/Jadistore/Salab-Punja

संस्क्रत में सुरपेय,ईरान में संग मिश्री ,लेटीन में आर्चिस लेटीफोलिया [Orchis Latifoli] हिन्दी में सालम मिश्री के नाम से जानी जाने वाली इस वनस्पति के चार पाँच जातियाँ जो अलग अलग क्षेत्र में पेदा होने से होती हें, ओर कन्द के अलग अलग आकार प्रकार के कारण होती हें। हमारे हाथ के पंजे के समान आकार वाले कन्द को सालम पंजा , लहसन जेसा कन्द के कारण सालम लहसनीय, सालम बादशाही [वसरा] ओर सालम  लाहोरी क्षेत्रों के नामो से जाने जाते हें। नीलगिरी के पहाड़ों पर भी सालम मद्रासी जिसका कन्द अधिक छोटा होता हे इसे उटकमंड में बिकते पाया जाता हे। पंजे के आकार के [एक देड़ इंच वाले] पंजा सालब सर्वोत्क्रष्ट {सबसे अच्छा} होता हे । इसके कम मिलने के कारण आटे या मेदा से भी नकली बनाकर बेचा जाता हे।असली सालम बहुत चीठा ओर सक्त होते हे इसे आते या मेदा से बने नकली सालम की तुलना में कूटने पीसने में अधिक महनत करनी होती हे। सूखे असली सालम में गंध या या स्वाद नहीं होता। मद्रासी ओर लहसनीय निम्न स्तर के कम गुण वाले होते हें।

(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-
https://www.facebook.com/indianjadibuti/posts/372724186524932 )


  आयुर्वेद में इसे अग्निदीपक (पाचन बड़ाने) वाली, शुक्र जनक, अति वीर्य वर्धक, बल कारक, कामोद्धीपक [काम वासना की व्रद्धि] , रसायन या आयु बडाने वाली, अति पोष्टिक ओषधियों में इसकी गणना की जाती रही हें। कम मिलने से ओर इन्ही पोरुष वर्धक गुणो के कारण यह मूल्यवान होते हे।  रास्ते चलते विक्रेता नकली दे सकते हें। च्यवन प्राश की  आवश्यक ओषधि में यह एक हें।
सालम में एक प्रकार का गोंद  48% होता हे।  इसके अतिरिक्त स्टार्च,थोड़ा सा सूक्रोज़ ,प्रोटीन ओर एक उड़न-शील [वोलेटायल] तेल जलाने पर राख या एश 2% बचती हे जिसमें फोस्फ़ेट्स,केल्सियम, आदि पाये जाते हें।

कामोद्धिपक चूर्ण अति पोरुष क्षमता प्राप्ति के लिए इसका प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है - बनाने की विधि


Pure Irani Salam Punja (Best Quality)

1-सालम मिश्री[पंजा]  सफ़ेद तोदरी, शुद्ध कोंच बीज का मगज [ कोंच के बीज को दूध में गला कर छिलका ओर बीच के अंकुर को निकाल कर सूखा लेने से शुद्ध होते हे] , इमली के बीज का मगज [ कोंच की तरह शुद्ध करे] ,तालमखाना, सरवाली के बीज, सफ़ेद मूसली, काली मूसली। सेमर मूसली, सफ़ेद वहमन,लाल वहमन, शतावर, बबुल का गोंद, बाबुल की कच्ची या सुखी फली, ढ़ाक की नरम कली, --- इन सब ओषधियों को बारीक पीस लें फिर इसके वजन के समान मिश्री  मिलकर बाटल में रख लें। इसकी 10- 10 ग्राम मात्रा गाय के दूध के साथ प्रात: साय कम से कम 40 दिन तक लेने से काम शक्ति बड्ती हे। शरीर कांतिमान हो जाता हे। इसके साथ ही सिरदर्द, तनाव, प्रमेह ,शीघ्र पतन, आदि रोग दूर हो जाते हें।

सालम पाक बनाने की विधि

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सालम पंजा 100 ग्राम+सफ़ेद मूसली +विदारी कन्द+चोवचीनी+गोखरू+ शुद्ध कोंच बीज मगज [ कोंच के बीज को दूध में गला कर छिलका ओर बीच के अंकुर को निकाल कर सूखा लेने से शुद्ध होते हे] , ताल मखाना, शतावरी, खरेटी बीज, गंगेरन जड़ की छाल, सेमर मूसली, आंवला, सभी 50-50 ग्राम लेकर पीस कर महीन चूर्ण बना लें फिर 5 किलो गो दुग्ध में मिला कर मावा बना लें इस मावे को आवश्यकता के अनुसार घी डाल कर अच्छी तरह भून लें [ताकि अधिक दिन तक खराब न हो] अब इसमें वंशलोचन,इलायची, छोटी पीपल, पीपरा मूल, जायफल, जावित्री, अकरकरा, गिलोय सत्व, प्रवाल पिष्टि, प्रत्येक 20-20 ग्राम+ अभ्रक भस्म 5 ग्राम, कांतिसार लोह भस्म 5 ग्राम, वंग भस्म 3 ग्राम, मिलाकर रख लें । अब एक किलो गेहु का आटा लेकर अच्छी तरह घी के साथ सेक लें,   बबूल का गोंद 100 ग्राम लेकर बारीक पीस लें ओर घी में सेक लें इससे गोंद फूल की तरह खिल जाएगी [ ध्यान रहे अंदर कच्ची न रहे] अब सभी मावा आटा ओषधि भस्मादी मिला कर चार किलो शक्कर बूरे ओर 10 ग्राम पिसी केसर मिला कर में मिला कर 50 - 50 ग्राम के लड्डू बना लें।

(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-https://www.facebook.com/indianjadibuti/posts/372724186524932 )



  प्रति वर्ष जाड़े के दिनो में सुवह श्याम 40 दिन तक एक एक लड्डू खाकर दूध पीने से काम शक्ति, मेघा शक्ति,  जीवनी शक्ति, रोग निवारण शक्ति [ईमूयनिटी पावर] पूरे एक वर्ष तक सूरक्षित हो जाता हे। यह रसायन परिश्रम करने वालों के लिए श्रेष्ठ हें।
   इसका कोई भी योग स्वयं बनाकर या बनवा कर खाएं ओर लाभ उठाएँ।
  कदाचित स्वयं या परिवार का सदस्य न बना सके तो मिठाई बनाने वाले से महनताना देकर ओर विधि दिखाकर भी बनवाया जा सकता हे।
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बहुत से लोग जो शीघ्रपतन से ग्रस्त हैं और इस कारण स्त्री के सामने उन्हैं लज्जित होने की स्थिति बन जाती है यह सालम मिश्री या सालम पंजा एसे लोगों को वडा़ ही लाभकारी औषधि द्रव्य है।
इसके अलावा यह केवल पुरुष रोगों में ही नही यह स्त्रियों के प्रदर रोग व इनके कारण उत्पन्न दुर्वलता आदि दूर करने के लिए भी यह उत्तम औषधि रत्न है।



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नोट-

अविवाहितों को कोई भी कामोद्धिपक या उत्तेजक ओषधि नहीं खाना चाहिये। इससे नाइटफॉल आदि समस्या बढ़ सकती हे।

उपरोक्त ओषधीय पाक बड़े श्रेष्ठ हें यदि किसी कारण से पाना संभव न हो तो केवल= पंजासालब, खरेंटी, शकाकुल छोटी, शकाकुल बड़ी, लम्बासालब, काली मुसली, सफ़ेद मुसली, और सफेद बहमन प्रत्येक 50 ग्राम का बारीक चूर्ण बना कर बरावर मिश्री ओर साथ दूध के साथ प्रति दिन खाने से भी लाभ होगा।
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Friday, 13 July 2018

गौमाता ( गौमाता का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व)

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कहते हैं कि जो गौमाता के खुर से उड़ी हुई धूलि को सिर पर धारण करता है, वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है । पशुओं में बकरी, भेड़, ऊंटनी, भैंस का दूध भी काफी महत्व रखता है। किंतु केवल दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के कारण भैंस प्रजाति को ही प्रोत्साहन मिला है, क्योंकि यह दूध अधिक देती है व वसा की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे घी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है।
गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होने के बावजूद कम मात्रा में प्राप्त होता है। दूध अधिक मिले इसके लिए कुछ लोग गाय और भैंस का दूध क्रूर और अमानवीय तरीके से निकालते हैं। गाय का दूध निकालने से पहले यदि बछड़ा/बछिया हो तो पहले उसे पिलाया जाना चाहिए। वर्तमान में लोग बछड़े/बछिया का हक कम करते है। साथ ही इंजेक्शन देकर दूध बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं, जो की उचित नहीं है।



 प्राचीन ग्रंथों में सुरभि (इंद्र के पास), कामधेनु (समुद्र मंथन के 14 रत्नों में एक), पदमा, कपिला आदि गायों  महत्व बताया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देवजी ने असि, मसि व कृषि गौ वंश को साथ लेकर मनुष्य को सिखाए। हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्र से काल सर्प योग निवारण हो जाता है।

गाय के पीछे के पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि गाय के पैरों चार धाम है। जिस प्रकार पीपल का वृक्ष एवं तुलसी का पौधा आक्सीजन छोड़ते है। एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन बनती है। इसलिए हमारे यहां यज्ञ हवन अग्नि -होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता है। प्रदूषण को दूर करने का इससे अच्छा और कोई साधन नहीं है।

धार्मिक ग्रंथों में लिखा है "गावो विश्वस्य मातर:" अर्थात गाय विश्व की माता है। गौ माता की रीढ़ की हड्डी में सूर्य नाड़ी एवं केतुनाड़ी साथ हुआ करती है, गौमाता जब धुप में निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्धारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है जिसे स्वर्णक्षार कहते हैं। यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है। इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला नजर आता है। इसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अत्यंत अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हों और सामने गाय माता के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम निकले हैं वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा।

गौ माता का जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का समय (गोधूलि वेला) अत्यंत शुभ एवं पवित्र है। गाय का मूत्र गो औषधि है। मां शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है। मानव समाज में भी मां शब्द कहना गाय से सीखा है। जब गौ वत्स रंभाता है तो मां शब्द गुंजायमान होता है। गौ-शाला में बैठकर किए गए यज्ञ हवन ,जप-तप का फल कई गुना मिलता है। बच्चों को नजर लग जाने पर, गौ माता की पूंछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उत्तर जाती है, इसका उदाहरण ग्रंथों में भी पढ़ने को मिलता है,  जब पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को नजर लग जाने पर गाय की पूंछ से नजर उतारी गई।

गौ के गोबर से लीपने पर स्थान पवित्र होता है। गौ-मूत्र का पवन ग्रंथों में अथर्ववेद, चरकसहिंता, राजतिपटु, बाण भट्ट, अमृत सागर, भाव सागर, सश्रुतु संहिता में सुंदर वर्णन किया गया है। काली गाय का दूध त्रिदोष नाशक सर्वोत्तम है। रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय का दूध में रेडियो विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है। गाय का दूध एक ऐसा भोजन है, जिसमें प्रोटीन कार्बोहाइड्रेड, दुग्ध, शर्करा, खनिज लवण वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते है। गाय का दूध रसायन का करता है।

आज भी कई घरों में गाय की रोटी राखी जाती है। कई स्थानों पर संस्थाएं गौशाला बनाकर पुनीत कार्य कर रही है, जो कि प्रशंसनीय कार्य है। साथ ही यांत्रिक कत्लखानों को बंद करने का आंदोलन, मांस निर्यात नीति का पुरजोर विरोध एवं गौ रक्षा पालन संवर्धन हेतु सामाजिक धार्मिक संस्थाएं एवं सेवा भावी लोग लगातार संघर्षरत है।

दुःख इस बात का भी होता है कि लोग गाय को आवारा भटकने के लिए बाजारों में छोड़ देते है। उन्हें इनके भूख प्यास की कोई चिंता ही नहीं होती। लोगों को चाहिए की यदि गाय पालने का शौक है तो उनकी देखभाल भी आवश्यक है, क्योंकि गाय हमारी माता है एवं गौ रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।

(संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि' की कलम से)

गौ माता - क्यों हिंदू मानते हैं गाय को माता
गाय हिंदू समुदाय में माता का दर्जा दिया जाता है, उसकी पूजा की जाती है। ग्रामीण इलाकों में तो आज भी हर रोज खाना बनाते समय पहली रोटी गाय के नाम की बनती है। प्राचीन समय से ही अन्य पालतु पशुओं की तुलना में गाय को अधिक महत्व दिया जाता है। हालांकि वर्तमान में परिदृश्य बदला है और गौ धन को पालने का चलन कम हो गया है, लेकिन गाय के धार्मिक महत्व में किसी तरह की कोई कमी नहीं आयी है बल्कि पिछले कुछ समय से तो गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने तक मांग उठने लगी है। गौहत्या को धार्मिक दृष्टि से ब्रह्म हत्या के समान माना जाता है हाल ही में हरियाणा में तो गौहत्या पर सख्त कानून भी बनाया गया है। आइये जानते हैं गाय को क्यों माता का दर्जा देते हैं हिंदू लोग और क्यों माना जाता है इसे श्रेष्ठ?



गाय का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व


गाय को माता मानने के पिछे यह आस्था है कि गाय में समस्त देवता निवास करते हैं व प्रकृति की कृपा भी गाय की सेवा करने से ही मिलती है। भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल), भगवान इंद्र के पास समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली गाय कामधेनू, भगवान श्री कृष्ण का गोपाल होना एवं अन्य देवियों के मातृवत गुणों को गाय में देखना भी गाय को पूज्य बनाते हैं।

भविष्य पुराण के अनुसार गोमाता के पृष्ठदेश यानि पीठ में ब्रह्मा निवास करते हैं तो गले में भगवान विष्णु विराजते हैं। भगवान शिव मुख में रहते हैं तो मध्य भाग में सभी देवताओं का वास है। गऊ माता का रोम रोम महर्षियों का ठिकाना है तो पूंछ का स्थान अनंत नाग का है, खूरों में सारे पर्वत समाये हैं तो गौमूत्र में गंगादि पवित्र नदिया, गौमय जहां लक्ष्मी का निवास तो माता के नेत्रों में सूर्य और चंद्र का वास है। कुल मिलाकर गाय को पृथ्वी, ब्राह्मण और देव का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन समय में गोदान सबसे बड़ा दान माना जाता था और गौ हत्या को महापाप। यही कारण रहे हैं कि वैदिक काल से ही हिंदू धर्म के मानने वाले गाय की पूजा करते आ रहे हैं। गाय की पूजा के लिये गोपाष्टमी का त्यौहार भी भारत भर में मनाया जाता है।



गाय का आर्थिक महत्व


प्राचीन काल में तो व्यक्ति की समृद्धि, संपन्नता गोधन से ही आंकी जाती थी यानि जिसके पास जितनी ज्यादा गाय वह उतना ही धनवान, तमाम कर्मकांडो, संस्कारों में गो दान को ही अहमियत दी जाती थी, परिवार का भरण पोषण गाय पर ही निर्भर करता था, खेतों को जोतने के लिये बैल गाय से ही मिलते थे, दूध, दही, घी की आपूर्ति तो होती ही थी, गौ मूत्र और गोबर तक उपयोगी माने जाते हैं। कुल मिलाकर मनुष्य के जीवन स्तर को समृद्ध बनाने में गाय अहम भूमिका निभाती थी, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं अब गाय का आर्थिक महत्व कम होने लगा है और धार्मिक महत्ता अभी बची हुई है।



वैज्ञानिक महत्व



ऐसा नहीं है कि गाय केवल धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण होती है। बल्कि कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी हैं जो गाय के महत्व को दर्शाते हैं। भले ही दूध, दही, घी के मामले में आज भैंस से मात्रात्मक दृष्टि से उत्पादन ज्यादा मिलता हो लेकिन गुणवत्ता के मामले में गाय के दूध, व गाय के दूध से बने उत्पादों का कोई मुकाबला नहीं हैं। एक और गाय का दूध ज्यादा शक्तिशाली होता है तो वहीं उसमें वसा की मात्रा भैंस के दूध के मुकाबले बहुत कम मात्रा में पायी जाती है। गाय के दूध से बने अन्य उत्पाद भी काफी पौष्टिक होते हैं।

माना जाता है कि गाय ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। गौमूत्र में ऐसे तत्व होते हैं जो हृद्य रोगों के लिये लाभकारी हैं। जैसे कि गौमूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड और दूध देते समय हुए गौमूत्र में लेक्टोज आदि की मात्रा का आधिक्य होता है। जिसे चिकित्सीय दृष्टि से लाभकारी माना जाता है।

गाय का गोबर खाद के रुप में इस्तेमाल करने पर जमीन की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है। इस तरह कई कारण हैं जो गाय के वैज्ञानिक महत्व को भी बतलाते हैं।



क्या सभी गाय पूजने योग्य हैं



चूंकि हिंदू धर्म के मानने वाले मुख्यत: भारत में हैं भारत में गाय की 28 नस्लें पाई जाती हैं। रेड सिंधी, साहिवाल, गिर, देवनी, थारपारकर आदि तो दुधारु गायों की नस्लें हैं। गाय दूसरे देशों में भी मिलती हैं जिनकी दूध के उत्पादन की क्षमता भी भारतीय गायों से ज्यादा होती है। आजकल विदेशी नस्ल की गायों को पालने का चलन भी उनकी उत्पादकता के चलते भारत में भी बढ़ रहा है लेकिन धार्मिक रुप से देशी गाय को ही पूजनीय माना जाता है। गुणवत्ता के मामले में भी देशी गाय का दूध ही बेहतर बताया जाता है।

गौ माँ की जितनी महिमा बताई जाये उतनी कम है | आप किसी भी मंदिर में चले जाये आपको गिनती के देवी देवताओ की मूर्तियाँ दिखाई देगी पर इस संसार में गाय माँ ऐसी प्राणी है जिसमे मुख्य सभी देवी देवताओ का निवास है | अब आप ही बताये की इससे अधिक पवित्र और सनातनी प्राणी ओर कौन हो सकता है |

गाय की महिमा को बताने वाली 10 मुख्य बाते
विज्ञान के अनुसार चमत्कार : वैज्ञानिको के अनुसार गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है आक्सीजन ही लेती है और आक्सीजन ही छोड़ती है |

गौ है पवित्र : एकमात्र ऐसी प्राणी है जिसका दूध , मूत्र और गोबर तक पवित्र बताया गया है |

जीवाणु नाशक : यदि गौ माँ के गोबर के कंडे बनाकर जलाया जाये , तो इसके धुएं से वातारण के कीटाणु जीवाणु मर जाते है |

गोबर में विटामिन B : गाय माता के गोबर में विटामिन B प्रचुर होता है जो की आस पास की रेडियोधर्मिता को सोख लेता है |
गाय के पैर की धुल : यदि घर में आप गौ माँ के पैरो की धुल को छिड़केंगे तो नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाएगी |

गौ है माँ : गाय का दूध नवजात के लिए माँ के दूध के समान पौष्टिक बताया गया है | जिन माँ के दूध नही आता वो अपने छोटे बच्चे को गाय का दूध ही पिलाती है | इसलिए ही गौ माँ को विश्व की माँ की भी संज्ञा दी गयी है |

लक्ष्मी समान गौ : गौ माँ को लक्ष्मी का रूप बताया गया है | जिस घर से हर दिन गाय माता को रोटी दी जाती है उस घर में सदैव माँ अन्नपूर्णा प्रसन्न रहती है |

धार्मिक कार्य में गौ मल है पवित्र : यदि हवन पूजा और ज्योत देखने वाले सभी कार्यो में गाय के गोबर के बने कंडे काम में लिए जाते है | जगह को पवित्र करने के लिए गौमूत्र को छिड़का जाता है |

गौ दान है महान : प्राचीनकाल से ही माना गया है जो व्यक्ति गाय का दान करता है वो दान महादान में आता है | माना जाता है की जो गाय का दान करते है उन्हें सूर्य देवता के लोक की प्राप्ति होती है |

गौमूत्र से बीमारी दूर : मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए और कई बीमारियों के उपचार की क्षमता रखते है | यह ह्रदय और केंसर  से जुड़े रोगों के लिए फायदेमंद है | इसमे गंगा का वास बताया गया है |

गौमाता की चिकित्सा


Thursday, 12 July 2018

तुलसी के असंख्य औषधीय गुण व् तुलसी से जुड़े सम्पूर्ण तथ्यों की जानकारी

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हिंदू धर्मग्रंथों और शास्त्रों के और आयुर्वेद में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। ये न केवल धार्मिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण पौधा है, बल्कि आब-ओ-हवा के साथ ही यह सेहत के लिए भी लाभकारी है। पंडित अशोक शर्मा बताते हैं कि जिस घर में इस पौधे की स्थापना की जाती है, उस घर में आध्यात्मिक उन्नति के साथ ही सुख, शांति और समृद्धि आती है। ये घर मौसमी बीमारियों, प्रदूषण से बचा रहता है। तुलसी के पौधे का ये महत्व तो आप जानते ही होंगे। 

* आयुर्वेद के अनुसार, तुलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के विचार में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर नियंत्रण होने लगता है। आलस्य दूर हो जाता है।
* शरीर में दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है। 
* इसके बारे में यहां तक कहा गया है कि औषधीय गुणों की दृष्टि से यह संजीवनी बूटी के समान है।
* तुलसी को संस्कृत में हरिप्रिया कहा गया है अर्थात जो हरि यानी भगवान विष्णु को प्रिय है।

(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-


* कहते हैं, औषधि के रूप में तुलसी की उत्पत्ति से भगवान विष्णु का संताप दूर हुआ था। इसलिए तुलसी को यह नाम दिया गया है।
* धार्मिक मान्यता है कि तुलसी की पूजा-आराधना से व्यक्ति स्वस्थ और सुखी रहता है।
* पौराणिक कथाओं के अनुसार देवों और दानवों द्वारा किए गए समुद्र-मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी। 
* यही कारण है कि इस पौधे के हर हिस्से में अमृत समान गुण हैं। 
* हिन्दू धर्म में मान्यता है कि तुलसी के पौधे की 'जड़' में सभी तीर्थ, 'मध्य भाग (तना)' में सभी देवी-देवता और 'ऊपरी शाखाओं' में सभी वेद यानी चारों वेद स्थित हैं।
* इसलिए इस मान्यता के अनुसार, तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है और इसके पूजन को मोक्षदायक कहा गया है। 
* पद्म पुराण में उल्लिखित है कि जहां तुलसी का एक भी पौधा होता है, वहां त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) निवास करते हैं. इस ग्रंथ में वर्णित है कि तुलसी की सेवा करने से महापातक से महापातक व्यक्ति के सम्पूर्ण पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

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* कहते हैं कि जिस पूजा और यज्ञ के प्रसाद में तुलसी-दल नहीं होता है, उस भोग को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं।
* भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों और स्वरूपों की पूजा में तुलसी का नैवेद्य नहीं होने पर पूजा अधूरी मानी जाती है।
* विष्णु पूजा के लिए तो यहां तक कहा गया है कि कोई भी नैवेद्य न हो, कोई भी विधान न किया गया हो, और केवल तुलसी का एक पत्ता भी अर्पित कर दिया जाए तो पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है।
* कहते हैं, जब हनुमान लंका भ्रमण कर रहे थे, तो लंका में विभीषण के घर तुलसी का पौधा देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए थे।


* रामचरितमानस में वर्णन है कि 'नामायुध अंकित गृह शोभा वरिन न जाई. नव तुलसी के वृन्द तहंदेखि हरषि कपिराई'
यही कारण है कि हनुमानजी ने विभीषण के महल को छोड़कर पूरी लंका को जला दिया था।
* मान्यता है कि जिस मृत शरीर का दहन तुलसी की लकड़ी की अग्नि से किया जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं और फिर उनका पुनर्जन्म नहीं होता है अर्थात जन्म-मरण के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।

* प्रचलित परंपरा के अनुसार, मृत शैया पर पड़े व्यक्ति को तुलसी दलयुक्त जल सेवन कराया जाता है, क्योंकि हिन्दू विधान में तुलसी की शुद्धता सर्वोपरि है। * ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।
* तुलसी का एक नाम वृंदा है। प्राचीन भारत में मथुरा के आसपास कई योजन में फैला इसका एक विशाल वन था, जिसे वृन्दावन कहते थे। 

तुलसी एक दिव्या पौधा है जो भारत के हर घर में मिलजाता है | भारतीय संस्कृति में तुलसी का बहुत महत्वपूरण स्थान है | आयुर्वेद में भी तलसी को अमृतदायी माना गया है क्यों की यह सर्व्रोग्नशिनी पौधा है | जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वंहा निर्धनता और रोग दोनों ही नहीं बसते |

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ये गुणकारी फायदे जानकर आप भी रोजाना करेंगे तुलसी की पत्तियों का सेवन

तुलसी की कई प्रजातीय होती है लेकिन औषधीय रूप में हम सर्व शुलभ पवित्र तुलसी ( ocimum sanctum ) का प्रयोग करते है जो दो प्रकार की होती है – श्वेत तुलसी ( हरी पतियों वाली और श्वेताभ शाखाओ वाली ) और दूसरी श्यामा तुलसी ( बैंगनी पतियों वाली और गहरे रंग की शाखाओ वाली ) |

तुलसी के गुण – धर्म एवं इसके प्रकार
गुण धर्म में समान होते हुए भी काली तुलसी को अच्छा माना गया है | श्यामा तुलसी में कफ निस्सारक एवं ज्वरनाgशक गुण श्वेत तुलसी से अधिक होते है | फिर भी दोनो ही तलसी समान गुण धर्म वाली होती है | माना जाता है की जिस घर में तुलसी होती है उस घर पर कभी बिजली नहीं गिरती क्यों की तुलसी में एक प्रबल विद्युत शक्ति होती है जो उसके चारो और दो सौ गज तक प्रवाहित होती रहती है जिसके कारण आकाशीय बिजली नहीं गिरती | जिस घर में तुलसी होगी उस घर में मच्छर और विषाणु नहीं फैलेगे | इसी लिए तुलसी को भारतीय संस्कृति में इतना ऊँचा स्थान प्राप्त है और लगभग सभी घरो में इसकी पूजा की जाती है |

लगभग हर रोग में तुलसी का प्रयोग किया जाता है और हर रोग में आशातीत लाभ भी मिलता है | लेकिन फिर भी तुलसी का प्रयोग करने से पहले रोगी की आयु – रोग की अवस्था – रोगी की प्रकृति और मौसम को ध्यान में रखते हुए तुलसी की पतियों की मात्रा का निर्धारण कर लेना चाहिए – जैसे तुलसी की प्रकृति गरम होति है इसलिए गरमियों में कम और सर्दियों में अधिक मात्रा का सेवन करना चाहिए |

विभिन्न रोगों में तुलसी के फायदे / लाभ
सर्दी जुकाम में तुलसी के फायदे
सर्दी जुकाम में तुलसी चमत्कारिक लाभ देती है | खांसी – जुकाम की ज्यादातर कफ सिरप में तलसी का प्रयोग किया जाता है | अगर जुकाम से परेशान है तो तुलसी की साफ की हुई 10-12 पतियों को दूध या चाय में उबाल कर पिए लाभ होगा |

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फीवर ( बुखार ) में तुलसी का प्रयोग
बुखार में 10-15 तुलसी की साफ़ पतियों को एक  कप पानी में उबाल ले साथ में एज चम्मच इलाइची पाउडर डाल कर काढ़ा आना ले और सुबह – शाम इसका सेवन करे | बुखार होने पर आप तुलसी अर्क जो बाजार में मिलजाता है उसका भी सेवन कर सकते है |

लीवर की समस्या में – लीवर के लिए भी तुलसी बहुत फायदेमंद होती है | रोज तुलसी की 10 पतिया खाए खाए लीवर की समस्या में आशातीत लाभ मिलेगा |

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पाचन सम्बंधित रोगों में तुलसी के फायदे  – पाचन सम्बंधित समस्या में तुलसी के 10-12 साफ पतों और एक चुटकी सेंधा नमक दोनों को एक कप पानी में उबल कर काढ़ा बना ले और इसका सेवन करे |

श्वास रोग में तुलसी के लाभ  – श्वास रोगों में तुलसी का बहुत उपयोग है श्वास रोगी को तुलसी – अदरक और शहद से बनाया हुआ काढ़ा उपयोग में लेना चाहिये | अवश्य लाभ होता है |

गुर्दे की पत्थरी – गुर्दे के लिए भी तुलसी बहुत उपयोगी होती है | अगर किसी की गुर्दे की पत्थरी है तो उसे शहद के साथ तुलसी अर्क का उपयोग करना चाहिये |

हृदय रोग – तुलसी खून में स्थित कोलेस्ट्रोल को घटती है इसलिए हृदय रोगियों को तुलसी का सेवन करना चाहिए |

मानसिक तनाव – तुलसी की खुसबू में तनावरोधी गुण होते है इसलिए रोज सुबह तुलसी के सेवन से मनुष्य मानसिक तनाव से बच सकता है |

कैंसर में तुलसी के फायदे
7 से 21 तुलसी की पतियों को साफ़ पत्थर पर पिस कर चटनी की तरह लुग्धि बना ले | अब 50  से 125 ग्राम दही ( जो बिलकुल खट्टा न हो ) के साथ 2 से 3 महीने तक लगातार सेवन करे | इस चटनी की पहली मात्रा नित्य क्रम से निपट कर नास्ते से आधा घंटा पहले ले | यह मात्रा दिन में दो से तीन बार ले सकते है |

हाई ब्लड प्रेसर – उच्च रक्त चाप के रोगियों को तुलसी का सेवन करना चाहिए | क्योकि यह कोलेस्ट्रोल को घटा कर रक्तचाप को सामान्य करटी है |

मुंह की दुर्गन्ध – जिनको श्वास में दुर्गन्ध आती हो उनको तुलसी के सूखे पतों के चूर्ण में सरसों का तेल मिला कर मंजन करनी चाहिए | समस्या से निजत मिलेगी |


वात रोग – तुलसी के साथ कालीमिर्च का सेवन करना से वात व्याधि ठीक होती है |

सिरदर्द – तुलसी के काढ़े के सेवन से सिरदर्द से बचा जा सकता है |

तुलसी का पौधा कर देता है मुसीबत की भवि‍ष्यवाणी

आपके घर, परिवार या आप पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो उसका असर सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी के पौधे पर होता है. तुलसी का पौधा ऐसा है जो आपको पहले ही बता देगा कि आप पर या आपके घर परिवार को किसी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है.
पुराणों में तुलसी के पौधे का महत्व
पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माना जाए तो ऐसा इसलिए होता है कि जिस घर पर मुसीबत आने वाली होती है उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी चली जाती है. दरिद्रता, अशांति और क्लेश के बीच लक्ष्मी जी का निवास नहीं होता. ज्योतिष में इसकी वजह बुध माना जाता है. 

घर में तुलसी का पौधा है तो अवश्य बरतें ये सावधानियां

मान्यता ऐसी है कि अगर आप अपने घर की साज-सज्जा वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार करते हैं तो यह आपके जीवन को सकारात्मक रूप प्रदान करता है, घर में खुशहाली का आगमन होता है। घर में पौधे लगाना इन्हीं में ही शामिल है। सामान्यतौर पर घर की सुंदरता बढ़ाने के लिए हम पौध लगाते हैं, हिन्दू परिवारों में तुलसी का पौधा घर में विराजित करने का भी विधान है।

तुलसी को धर्म के साथ भी जोड़ा गया है इसलिए इसके स्थापित करते समय खास सावधानियां बरतने की सलाह दी गई है। तुलसी का पौधा घर में खुशहाली और समृद्धि लाता है, यह स्वयं मां लक्ष्मी का प्रतीक है, इसे घर में स्थापित करने से घर में धन की कमी नहीं होती। साथ ही साथ यह घर से सकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश का द्वार खोलता है।

तुलसी का पौधा घर में लगाते समय ये अवश्य ध्यान रखें कि उस पौधे में कोई और पौधा ना उग रहा हो। तुलसी को हमेशा उत्तर और पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के दक्षिण भाग को छोड़कर तुलसी कहीं भी स्थापित की जा सकती है, क्योंकि दक्षिण में तुलसी लगाने से फायदा नहीं नुकसान होने लगेगा|
                                        
                                             (गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-
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प्राचीन परंपरा के अनुसार गृहस्थ जीवन में तुलसी पूजन अवश्य किया जाना चाहिए, जिनकी संतान नहीं होती उनके द्वारा तुलसी विवाह करवाए जाने का भी विधान है। शालीग्राम की पूजा भी तुलसी के पत्ते के बगैर नहीं होती। जब व्यक्ति के प्राण उसका साथ छोड़ रहे होते हैं उनके मुंह में भी तुलसी का पत्ता रखा जाता है।