रतिवल्लभ चूर्ण अनुचित ढंग से आहार-विहार और कामुक चिंतन करने, अप्राकृतिक ढंग से यौन क्रीड़ा करने और सहवास में अति करने का दुष्परिणाम यह होता है कि युवक ठीक से जवान होने से पहले ही बूढ़ों जैसी निर्बलता और असमर्थता का अनुभव करने लगते हैं। ऐसे पीड़ित पुरुषों के लिए एक अति उपयोगी और लाभकारी योग 'रति वल्लभ चूर्ण' का परिचय प्रस्तुत है।
Indianjadibooti |
घटक द्रव्य- सकाकुल मिश्री 80 ग्राम, बहमन सफेद, बहमन लाल, सालम पंजा, सफेद मूसली, काली मूसली और गोखरू- ये 6 द्रव्य 40-40 ग्राम, छोटी इलायची के दाने, गिलोय सत्व, दालचीनी और गावजवां के फूल- चारों द्रवय 20-20 ग्राम।
निर्माण विधि- सब द्रव्यों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके मिला लें और तीन बार छानकर बर्नी में भर लें।
मात्रा और सेवन विधि- एक चम्मच चूर्ण और एक चम्मच पिसी मिश्री मिलाकर, मिश्री मिले दूध के साथ सुबह खाली पेट व रात को सोते समय कम से कम दो मास तक लें।
(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-
उपयोग- यह एक सरल और अपेक्षाकृत सस्ता नुस्खा होते हुए भी बहुत यौन शक्तिवर्द्धक, उत्तेजक और बल पुष्टिदायक योग है। इसके नियमित 2-3 मास तक सुबह शाम सेवन करने से वीर्य गाढ़ा और पुष्ट होता है, जिससे शीघ्रपतन और नपुंसकता की शिकायत दूर होती है। शरीर व चेहरा पुष्ट व तेजस्वी होता है।
यह उष्ण प्रकृति का और अत्यन्त कामोत्तेजक योग है, इसलिए गर्म प्रकृति वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। जो युवक गलत ढंग से यौन क्रीड़ा द्वारा वीर्यनाश करके नपुंसकता के शिकार हो चुके हों उन्हें इस नुस्खे का सेवन 2-3 मास तक अवश्य करना चाहिए।
No comments:
Post a Comment