Thursday, 30 August 2018

बवासीर के उपचार के लिए निरंजन फल है अमृत समान

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किसी को यदि खूनी, बादी या मस्सेदार बवासीर होने पर उसके उपचार के लिए कुछ निरंजन फल बाजार से खरीदकर प्रतिदिन शाम को 1 फल पानी में भिगोकर रखें. प्रातः इस भीगे हुए फल का छिलका उतारकर उसे चबा चबाकर खाएं और जिस पानी में फल को भीगकर कर रखा था उस पानी को पी लें. इसके साथ प्रतिदिन दोपहर को 1 गिलास छाछ में ½ चम्मच अजवाइन का चूर्ण मिलकर पियें. इस उपचार को कुछ दिनों तक करने से सभी प्रकार के बवासीर में लाभ मिलता है
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Wednesday, 29 August 2018

लक्ष्मणा बूटी :- संतान प्राप्ति का सपना साकार करने वाली चमत्कारी जड़ी बूटी

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लक्ष्मणा बूटी: गांवों में इसे गूमा कहते हैं। ऐसा कहा जाता है (सुना है हमने) संतानहीन स्त्री, स्वस्थ एवं निरोगी हैं, तो वह श्वेत लक्ष्मण बूटी की 21 गोली बना लें, इसे गाय के दूध के साथ लगातार प्रात: एक गोली 21 दिन तक खाए, तो संतान लाभ मिलता हैं। हमारे ऋषि-महर्षि तथा आयुर्वेदाचार्यों ने दिव्य चमत्कारी जड़ी-बूटी लक्ष्मणा को पुत्र देने वाली कहा है। लक्ष्मणा के अर्क को अगर बांझ भी सेवन करती है तो संतान होती है।


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Wednesday, 22 August 2018

स्वास्थय समस्याएं आपकी… आयुर्वेदिक समाधान हमारे (https://indianjadibooti.com)


              


  शारीरिक कमजोरी :-

  यदि आप शारीरिक कमजोरी महसूस करते है, कमजोरी के कारण आलस्य का अनुभव होता है, अपने कार्यो को अपना शत प्रतिशत केवल शारीरिक थकान के कारण नहीं दे पाते, थकान और शारीरिक कमजोरी के कारण जीवन बोझिल हो गया है और आप नकारात्मकता से घिर गए हैं तो ऐसे में आपको विभिन्न जड़ी बूटियों के आयुर्वेदिक योग का कुछ दिन सेवन करना चाहिए जिससे की आप दोबारा से अपने को सुफुर्ति और जोश और जूनून से भरा पाएंगे , जीवन जीने की नयी आशा जागृत होगी और आप खुद को सकारात्मक व् तरो ताजा महसूस करेंगे , आयुर्वेदिक योग इस प्रकार हैं :- अश्वगंधा , सफ़ेद मूसली, शतावरी पिली , उटंगन , कौंच के बीज , गोखरू बड़ा, तालमखाना, बहमन लाल, बहमन सफ़ेद, सकाकुल मिश्री, गौजबां, सालम पंजा व् सालम मिश्री इत्यादि


पेट की गर्मी :- 

 पेट की गर्मी होने पर मुँह में छाले निकल आते हैं, मुँह बार बार सूखता है, पेट की गर्मी की मुख्य वजह कब्ज़ भी हो सकती है, अगर आप पेट की गर्मी से पीड़ित हैं तो आपको गोंद कतीरा को रात को पानी में भिगो कर सुबह उसका मिश्री के साथ सेवन करना चाहिए , पेट की गर्मी में बलंगा भी बहुत हितकर है, बलंगा वही जो फलूदे में भी प्रयोग किया जाता है, पेट की गर्मी को कम करने में अनार का जूस भी बहुत अच्छी औषधि का काम करता है

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. बवासीर :- 

अगर कोई बवासीर से पीड़ित है तो उससे गोंद कतीरा, निरंजन फल इत्यादि का सेवन करना चाहिए, लाभ होगा

4. कब्ज़ :  

कब्ज़ से पीड़ित रोगियों को छोटी हरड़ , बड़ी हरड़, त्रिफला पाउडर, इसबगोल की भूसी, अंजीर  आदि का सेवन करना चाहिए अवश्य लाभ होगा, कब्ज़ अगर ज्यादा है तो विकट परिस्थितियों में किसी अच्छे आयुर्वेदाचार्य के निर्देश अनुसार थोड़ी मात्रा में सनाय पाउडर या जमालघोटा का प्रयोग किया जाना उचित होगा

5. पथरी :- 

पथरी से पीड़ित व्यक्ति समस्या अनुसार कुल्थी दाल, पथरचट्टा,  का सेवन कर रोग से मुक्ति पा सकते हैं

6. संतानोत्पत्ति -  

जिस किसी स्त्री को गर्भ ठहर रहा हो या बार बार गर्भपात हो जाता हो उनके लिए लक्मण बूटी, जिया पोता बीज, शिवलिंगी बीज, का नियम अनुसार सेवन करना चाहिए और शक्ति के लिए सलाम पंजा और मिश्री और सफ़ेद मूसली का सेवन करना चाहिए लाभ होगा

7. मधुमेह :- 

आजकल लगभग 30 % जनसँख्या मधुमेह रोग से पीड़ित हैं , मधुमेह रोग में पनीर डोडी, चिरायता, गुड़मार, कोशिया लकड़ी, शुगर बादाम, इन्दरजो कड़वा, जामुन की गुठली, कालमेघ आदि का सेवन करके मधुमेह की रोकधाम की जा सकती है

8. बालो सेजुडी समस्या :- 

बालो से जुडी सभी समस्याओ में जटामांसी, आंवला , रीठा , शिकाकाई, ब्राह्मी, भृंगराज, कपूर कचरी , मेथी दाना  से उपचार संभव है

9. गले सेसम्बंधित रोगो में मुलेठी, गुलबनफ्शा, छोटी इलायची, सौंफ और अजवाइन और काकड़ासिंगी फायदेमंद हैं

10. कमर को शेप मेंलाने और कसने के लिए 

गोंद चुनिए जिसे कमरकस के नाम से भी जाना जाता हैं को प्रयोग में लेना लाभप्रद है

11. आलू बुखारा

आलू बुखारा के सेवन से मितली और अरुचि की समस्या दूर हो जाती है 

12 घुटनों की ग्रीस 

घुटनों की ग्रीस सम्बन्धी रोग में अखरोट गिरी, अलसी, खस खस, हरसिंगार के फूल और पत्ते  या बबूल की फली का चूर्ण का सेवन करने से लाभ मिलता है

अपनी किसी भी स्वास्थय समस्या, स्वस्थ जीवन शैली, आयुर्वेदिक उपचार के विषय में और अधिक जानने के लिए आप हमारे फेसबुक पेज से जुड़ सकते हैं या हमारे ब्लॉग में सम्बंधित लेख पढ़ सकते हैं 

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समस्याएं जीवन का भाग होती हैं उनसे बचा तो नहीं जा सकता लेकिन स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर और दृण संकल्प से और प्रबल इच्छा शक्ति से उनपर विजय पायी जा सकती है इसलिए सकारात्मक रहे, खुश रहे, सुबह की शुरुवात उगते सूर्य के दर्शन के साथ करें, सुबह स्वच्छ हवा में कुछ देर जरूर टहलेI


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Sunday, 19 August 2018

(Constipation) कब्ज़ सौ रोगों की एक जड़ , जानिये कब्ज़ के कारण और निदान

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 कब्ज़ (कारण एक - रोग अनेक)



 कब्ज़ एक ऐसी विकट स्वास्थय  समस्या है जिससे जनसँख्या का एक बड़ा वर्ग प्रभावित रहता है.

2017 के आंकड़ों के अनुसार लगभग 40%  जनसँख्या इस रोग से त्रस्त पाई जाती है.

महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों में इसका अधिक प्रकोप पाया जाता है. महिलाओं में कब्ज़ रोग बिना किसी विशेष कारण के भी हो सकता है, जबकि पुरुषों, बच्चों और बुजुर्गों में इसके पीछे के कारक ढूंढे जा सकते हैं.

कब्ज़ के लक्षण

इस रोग में आँतों की गतिशीलता सामान्य से बहुत कम हो जाती है जिस कारण मल निकास प्रक्रिया में अवरोध पैदा हो जाता है. पेट नियमित साफ़ नहीं होता, पेट साफ़ करने में अधिक समय लगता है, मल कठोर भी हो जाता है. कई बार मलक्षेत्र में पीड़ा भी हो जाया करती है और मल के साथ खून भी आ जाता है. पेट में दर्द भी बना रहने लगता है और एसिडिटी, गैस इत्यादि की समस्यायें होने लगती हैं. गुदा मलाशय में बवासीर (Piles), भगन्दर (Anal fistula) या मस्से (Hemorrhoids) इत्यादि हो सकते हैं.

रोग अधिक पुराना हो जाये तो आँतों की सूजन जैसे रोग भी पनप जाते हैं.

(Constipation) कब्ज़ के कारण

1 पेट के बैक्टीरिया का असंतुलन
हमारी आँतों में बैक्टीरिया की बहुत सारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं.

एंटीबायोटिक दवाओं और दर्द निवारक दवाओं के उपयोग से इनके गणमान और विविधता में असंतुलन पैदा हो जाता है.

यही असंतुलन कब्ज़ का कारण बन जाता है.

2 आहारीय फाइबर की कमी
आहारीय फाइबर दो काम करता है.

यह पेट के बैक्टीरिया का आहार होता है, साथ ही यह आँतों को गतिशीलता प्रदान कर भोजन को आगे धकेलने का काम भी करता है.

जब हमारे भोजन में फाइबर की कमी रहती है (जैसे कि जंक फूड्स इत्यादि में) तो आँतों की गतिशीलता भी कम हो जाती है और कब्ज़ की शिकायत हो जाती है.

3 कब्ज़ निवारक दवाओं की अति
कब्ज़ की शिकायत होने पर कई लोग कब्ज़ निवारक दवाओं का नियमित सेवन करना आरम्भ कर देते हैं.

जब आप ऐसी आदत डाल लेते हैं तो एक तो इन दवाओं का प्रभाव भी धीरे धीरे कम होते जाता है.

और दूसरी समस्या यह होती है कि आंतो को भी क्रिशीलता पाने के लिए इन दवाओं की आदत पड़ जाती है.

फिर जब भी आप इनका उपयोग कम करें या नहीं करें  तो आंते काम ही करना छोड़ देती हैं.

इसलिये, पेट साफ़ करने की औषधियों का उपयोग कभी भी 2 सप्ताह से अधिक न करें.

साथ ही कब्ज़ के लिए सौम्य वनौषधियों के योग लें जैसे कि छोटी काली हरड या हरड और घृतकुमारी इत्यादि.


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बाज़ार में उपलब्ध बहुत सी दवाओं में तीव्र विरेचक होते हैं जो लम्बी अवधि में फायदे की जगह नुक्सान पहुंचाते हैं.

4 दवाओं, सप्लीमेंट्स का सेवन
तेज़ दर्द निवारक दवाएं, और एल्युमीनियम कैल्शियम के एनटेसिड कब्ज़ पैदा करते हैं.

कुछेक सप्लीमेंट्स भी कब्ज़ के कारक होते हैं जिनमें आयरन और कैल्शियम के सप्लीमेंट्स मुख्य हैं.

लेकिन इनसे होने वाली कब्ज़ अस्थाई होती है, जैसे ही इनका उपयोग पूरा हो जाता है या ये बंद कर दिए जाते हैं, तो कब्ज़ का भी निदान हो जाता है.

5 दूध के उत्पाद
कुछेक को दूध के उत्पाद जैसे कि बर्फी, मिल्ककेक, रबड़ी इत्यादि कब्ज़ पैदा करते हैं, उन्हें इनका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए, वैसे दूध के खमीरीकृत रूप जैसे कि पनीर, रसगुल्ला; और दूध का नियंत्रित सेवन कईयों के कब्ज़ को ठीक भी करते हैं.

6  रोग जो कब्जियत पैदा करते हैं
थायरॉयड की कमजोरी और पार्किन्सन रोग में कब्ज़ का प्रकोप बढ़ जाता है.

7 तनाव और Depression
निराशा, अवसाद और तनाव होने पर आँतों की गतिशीलता कम हो जाती है, जिस कारण कब्ज़ रोग पनप जाता है.

8 अत्यधिक चाय कॉफ़ी का सेवन
कब्ज़ का एक बड़ा कारण चाय काफी का अधिक सेवन भी होता है, लेकिन यदि चाय या कॉफ़ी कम मात्रा में लिए जाएँ तो यह कब्ज़ निवारक भी होते हैं.



9 कम पानी पीना
पानी पीने का कब्ज़ से सीधा सम्बन्ध है, पानी कम पीने के और भी कई नुकसान होते हैं, जो लोग पानी कम पीते हैं उन्हें यह समस्या बनी ही रहती है.

कब्ज़ से उत्पन्न होने वाले रोग
कब्ज़ को कई रोगों की जननी माना जाता है

IBS संग्रहणी, यह एक ऐसा रोग है जिसके मूल में कब्ज़ का योगदान है.

2 एसिडिटी समूह के रोग
इस रोग समूह में पित्त सम्बन्धी विकार होते हैं जिन्हें एसिडिटी और गैसट्राईटिस (Gastritis) कहा जाता है.

कब्ज़ के कारण जब पित्त बढ़ा रहने लगता है तो एसिडिटी, गैस, अफारा जैसे विकार भी पनपने लगते हैं.

जब ये विकार लम्बे समय तक चलते रहें तो आगे चलकर पेट के अलसर, नाभि का खिसकाना, GERD और Hiatus Hernia जैसे अगली श्रेणी के रोग भी हो जाते हैं.

3 गुदा रोग
कब्ज़ के कारण मल का रुकाव गुदाक्षेत्र में रहने लगता है, पहले तो गुदा क्षेत्र में कब्ज़ के कारण ज़ख्म होते हैं जो रुकाव के कारण बवासीर (hemorrhoids ), भगन्दर (anal fistula) या मस्से (anal fissure) इत्यादि में तब्दील  हो जाया करते हैं. गुदा क्षेत्र के इन्हीं में से कुछ विकार पेट की सूजन के कारण भी बन जाते हैं.



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कब्ज़ के उपाय और इलाज
इस रोग के बहुत सारे उपाय और इलाज विकल्प उपलब्ध हैं, जिन्हें रोग की गंभीरता के अनुसार अपनाना चाहिए, सामान्य कब्ज़ का निपटारा कुछ घरेलू उपायों  उपचारों से किया जा सकता है.

कब्ज निवारण के कारगर उपाय, कब्ज़ के उपाय बड़े ही सहज हैं, यह उपाय मौसमी फलों, सब्जियों और पेय आहारों के हैं जो आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.

कब्ज़ में लाभकारी फल
1 अमरूद और पपीता ये दोनो फ़ल कब्ज रोगी के लिये अमॄत समान है, ये फ़ल दिन मे किसी भी समय खाये जा सकते हैं, इन फ़लों में पर्याप्त रेशा होता है और ये आंतों को शक्ति भी देते हैं, इन्हें लेने से मल आसानी से विसर्जित हो जाता है।

2 अंजीर एक कब्ज हरण फ़ल है, 4 अंजीर फ़ल रात भर पानी में गलावें, सुबह खाएं, यह आंतों को गतिमान कर कब्ज का निवारण करता है।

3 अंगूर मे भी कब्ज निवारण के गुण होते हैं।

सूखे अंगूर ( किश्मिश) पानी में 3 घन्टे गलाकर खाने से आंतों को ताकत मिलती है , जब तक बाजार मे अंगूर मिलें नियमित रूप से उपयोग करते रहें।

4 बेल का फ़ल कब्ज के लिये श्रेष्ठ औषधि है, इसे पानी में उबालें, फ़िर मसलकर रस निकालकर नित्य 7 दिन तक पियें। कब्ज़ मिट जायेगी।

5 नींबू भी कब्ज में गुण्कारी होता है, मामुली गरम जल में एक नींबू निचोडकर दिन में 2-3 बार पियें।

शाक सब्जियां अधिक खायें
6 सब्जियों में भिन्डी, तोरी, गाजर, मटर, लौकी, सब प्रकार के पत्तों के साग,  प्रतिदिन खाने से कब्ज में लाभ होता है।

7 पालक का रस या पालक कच्चा खाने से कब्ज नाश होता है।

एक गिलास पालक का रस रोज पीना उत्तम है।

पुरानी कब्ज भी इस सरल उपचार से मिट जाती है।

8. सब प्रकार के पत्तों के सूप भी कब्ज़ में लाभकारी होते हैं.

दूध का सेवन
9 सोते समय ठंडा या कुनकुना दूध पियें.

ठंडा या कुनकुना दूध कब्ज़ निवारक होता है, जबकि अधिक गरम दूध कब्ज़ कारक.

10. रात को सोते समय एक गिलास कुनकुना गरम दूध में 2 -3 चम्मच अरंडी का तेल मिलाकर पियें, मल आंतों में चिपक रहा हो तो यह नुस्खा परम लाभकारी है।

11 एक गिलास दूध में 1-2 चम्मच घी मिलाकर रात को सोते समय पीने से भी इस रोग का समाधान होता है।

12 एक कप कुनकुने गरम दूध मे 1 चम्म्च शहद मिलाकर पीने से कब्ज मिटती है।

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13 कब्ज का मूल कारण शरीर मे तरल की कमी होना है इसलिए भरपूर पानी पियें, पानी की कमी से आंतों में मल शुष्क हो जाता है और मल निष्कासन में जोर लगाना पडता है, अत: इससे परेशान रोगी को 24 घंटे मे, मौसम के अनुसार, 3 से 5 लिटर पानी पीने की आदत डालनी चाहिये, इससे रोग निवारण मे बहुत मदद मिलती है।

14. जल्दी सुबह उठकर एक लिटर गरम पानी पीकर 2-3 किलोमीटर घूमने जाएं। बहुत बढिया उपाय है।

15 भोजन में रेशे यानि फाइबर की मात्रा अधिक रखने से कब्ज का निवारण होता है।

हरी पत्तेदार सब्जियों और फ़लों में प्रचुर रेशा पाया जाता है।

भोजन मे करीब 200 से 400 ग्राम तक हरी शाक या फ़ल या दोनो चीजे शामिल करें।

16 इसबगोल की भूसी कब्ज में परम हितकारी है।

दूध या पानी के साथ 2-3 चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते वक्त लेना फ़ायदे मंद है।

यह एक कुदरती रेशा है और आंतों की सक्रियता बढाता है।

17 एक और बढिया तरीका है।

अलसी के बीज  भी आहारीय फाइबर से भरपूर होते हैं.

अलसी का मिक्सर में पावडर बना लें।

एक गिलास पानी में इस  पावडर के करीब 20 ग्राम डालें और 3-4घन्टे तक गलने के बाद छानकर यह पानी पी जाएं।

बेहद हितकारी ईलाज है।

(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-


18 भोजन में तेल और घी की मात्रा का उचित स्तर बनाये रखें।

चिकनाई युक्त पदार्थ पेट को साफ़ रखने में लाभकारी होते हैं.


लेकिन पुरानी और हठी कब्ज़ के उपाय एक समग्र सिलसिलेवार तरीके से करने की ज़रूरत होती है.

इन उपायों में सौम्य योगों से पेट की तरलता, आँतों की गतिशीलता और चिकनाहट बढ़ाने पर बल दिया जाता है.

मल को मुलायम करने के उपायों को भी प्राथमिकता दी जाती है.

आँतों की गतिशीलता बढाईये
अमरुद, आम, चीकू, अंजीर, पपीता जैसे Fiber Rich Food और कम FODMAP वाले फल और सब्जियां जैसे कि पालक, बथुआ, भिन्डी, मूली, गाजर इत्यादि का भरपूर उपयोग कीजिये.

ये सब आंतो को गतिशीलता देते हैं और मल को धकेलने का काम भी करते हैं.

सप्ताह के एक या दो दिन केवल फल या शाकसब्जियां ही उपयोग करें, लाभ मिलेगा,

चिकनाई युक्त उपाय कीजिये
घी तेल का प्रचुर उपयोग करना कब्ज़ का एक कारगर उपाय है.

रात को सोते समय कुनकुने दूध में दो बड़े चम्मच देशी घी या कैस्टर आयल  मिला कर पी लीजिये.

लाभ मिलेगा.

फाइबर के सप्लीमेंट्स
तरलता बढ़ाने के लिए हमें पानी के साथ साथ घुलनशील फाइबर का उपयोग भी करना चाहिए.

फाइबर तीन काम करता है.

एक तो यह आँतों को गतिशीलता देता है.

साथ ही यह पेट लाभकारी बैक्टीरिया के लिए भी उपयोगी होता है.

फाइबर में पानी को रोक रखने की अद्भुत क्षमता भी होती है.

जिससे मल को भार मिलता है और मल आसानी से विसर्जित हो जाता है.

(बचपन की गलतियों से पछताने वाले लोगो की समस्या दूर करने वाला अचूक और बेजोड़ नुस्खा :- रतिवल्लभ चूर्ण https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=10285103552731910#editor/target=post;postID=5475006027743494839;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=2;src=postname)


सौम्य कब्ज़ निवारक योग
कब्ज़ से बचे रहने के लिए कभी भी तेज़ किस्म की औषधियों से हमेशा बचना चाहिए.

इन्हें लम्बे समय तक उपयोग करने से आँतों में शिथिलता आ जाती है और कब्ज़ रोग बढ़ता ही जाता है.

छोटी काली हरड, सौंफ, एलोवेरा जैसे योगों वाली औषधियां ही लेनी चाहिए जो कब्ज़ का निवारण तो करती ही हैं साथ ही स्वास्थ्य कारी भी होती हैं.

कब्ज़ को कभी भी हल्का रोग नहीं समझना चाहिए.

क्योकि इस रोग से ही अन्य कई रोग पनपते हैं, पेट को नियमित रखिये; खानपान से और उचित उपायों से.


Tuesday, 14 August 2018

श्वेत प्रदर या ल्यूकोरिया (Leukorrhea)



नारी रोगों में आमतौर से होने वाले रोग हैं श्वेत प्रदर यानी ल्यूकोरिया और मासिक ऋतु स्राव का अनियमित होना। दोनों ही व्याधियां ऐसी हैं जो स्त्री के रूप, यौवन और स्वास्थ्य का नाश करती हैं।
श्वेत प्रदर में योनि की दीवारों से या गर्भाशय ग्रीवा से श्लेष्मा का स्राव होता है, जिसकी मात्रा, स्थिति और समयावधि अलग-अलग स्त्रियों में अलग-अलग होती है। यदि स्राव ज्यादा मात्रा में, पीला, हरा, नीला हो, खुजली पैदा करने वाला हो तो स्थिति असामान्य मानी जाएगी। इससे शरीर कमजोर होता है और कमजोरी से श्वेत प्रदर बढ़ता है।



इसके प्रभाव से हाथ-पैरों में दर्द, कमर में दर्द, पिंडलियों में खिंचाव, शरीर भारी रहना, चिड़चिड़ापन रहता है। इस रोग में स्त्री के योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा, गाढ़ा, बदबूदार स्राव होता है, इसे वेजाइनल डिस्चार्ज कहते हैं। इस रोग के कारणों की जांच स्त्री रोग विशेषज्ञ, लेडी डॉक्टर से करा लेना चाहिए, ताकि उस कारण को दूर किया जा सके।

कारण : श्वेत प्रदर रोग होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे मद्यपान करना, खाया हुआ भोजन पचने से पहले ही फिर भोजन करना, गर्भपात होना, पुरुष के साथ अत्यधिक सहवास करना, ज्यादा घुड़सवारी करना, तेज रफ्तार वाली सवारी पर बैठना, अधिक चिंता या शोक करना, ज्यादा उपवास से शरीर कमजोर करना, शरीर दुबला व कमजोर होना, ज्यादा मसालेदार, चटपटे, ज्यादा खट्टे पदाथोर्ं का अति सेवन, योनि प्रदेश का गंदा रहना या किसी कारण से सूजन रहना आदि। 
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चिकित्सा
(1) अशोक की छाल, कपास की जड़, दारूहल्दी, आंवले की कलियां और नागकेसर, सब 50-50 ग्राम मोटा-मोटा कूटकर मिला लें। एक गिलास पानी में दो चम्मच मिश्रण डालकर उबालें। जब एक चौथाई पानी बचे तब उतार कर एक चम्मच पिसी मिश्री मिला लें। ठंडा हो जाए तब छानकर सुबह खाली पेट पिएं।

महुआ के फूल, त्रिफला, नागरमोथा की जड़ और लोध्र, सब 50-50 ग्राम लेकर कूट-पीसकर बरीक चूर्ण करके मिला लें। शुद्ध स्फटिका 10 ग्राम पीसकर इसमें मिलाकर, तीन-तीन बार पूरे मिश्रण को छानकर एक जान कर लें इस मिश्रण को 1-1 चम्मच मात्रा में आधा-आधा चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटना चाहिए।
(3) सिका हुआ सफेद जीरा और पिसी मिश्री दोनों 1-1 चम्मच मिलाकर ताजे पानी के साथ सुबह-शाम-दोपहर फांक लिया करें। यदि स्राव पीला हो और गर्म निकलता हो तो मुलहठी का महीन पिसा चूर्ण और पिसी मिश्री दोनों 1-1 चम्मच मिलाकर इसी विधि से दिन में तीन बार लें। एक गिलास ठंडे दूध में एक पका केला मसलकर डाल दें, आधा चम्मच शुद्ध घी और दो चम्मच शहद डालकर 2-3 बार फेंट लें, इसे सुबह खाली पेट सेवन करें।
(4) श्वेत प्रदर से ग्रस्त स्त्री को केले व दूध की खीर रोज खाना चाहिए। धावड़ी का गोंद घी में तलकर फुला लें और शकर की चासनी में डालकर रखें। सुबह खाली पेट दो चम्मच भरकर खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। मखाने और बताशे घी में तलकर सुबह खाने से भी लाभ होता है। स्नान करते समय प्रतिदिन योनि मार्ग को अंदर तक, खूब अच्छी तरह डेटॉल के पानी से धोना चाहिए। स्वमूत्र से भी धो सकती हैं। इसके लिए डूश पाइप का प्रयोग करना अच्छा रहता है।
(5) प्रदरान्तक लौह विशेष, संगजराहत भस्म, गोदन्ती भस्म, तीनों 10-10 ग्राम और पुष्यानुग चूर्ण 50 ग्राम, सब को मिलाकर 30 पुड़िया बना लें। एक-एक पुड़िया सुबह-शाम शहद में मिलाकर चाट लिया करें। अशोक टेबलेट 2 गोली और दिव्य रसायनवटी एक गोली, ऊपर लिखी दवा लेने के एक घंटे बाद एक कप दूध के साथ लें। भोजन के बाद दोनों वक्त सुंदरी संजीवनी 2-2 चम्मच आधे कप पानी में डालकर पिएं।
(6) गुलहड़ (गूलर नहीं) का एक फूल सुबह व एक फूल शाम को एक चम्मच शकर के साथ खाएं। फूल न मिले तो गुलहड़ की कली तोड़कर रख लें कुछ समय बाद वह खिल जाएगी, उसका उपयोग करें।

(7) गूलर (गुलरे) के फल सुखाकर चूर्ण बना लें, उसमें समान मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें। एक चम्मच चूर्ण थोड़ा सा शहद मिलाकर चाट लें।
(8) कतीरा गोंद, धनिया समान मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें, दोनों के वजन के बराबर मिश्री मिला लें, प्रातः व शाम 9 बजे मीठे व कुनकुने दूध के साथ सेवन करें या कतीरा गोंद का चूर्ण एक चम्मच रात को सोते समय मीठे दूध के साथ सेवन करें।


(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-



(9) सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से, गोंद को शुद्ध घी में तलकर शकर की चाशनी में डालकर खाने से, पके टमाटर का सूप पीने से व आंवले का मुरब्बा खाने से भी इस बीमारी में आराम मिलता है।
(10) दो सिंघाड़े शाम को पानी के मटके में डाल दें। सुबह मटके से निकालकर कूट-पीस लें। इसमें बराबर मात्रा में पिसी मिश्री मिलाकर सुबह खाली पेट खाकर ऊपर से मीठा गर्म दूध पी लें।

(11) बबूल की बारीक फलियां, बिना बीज वाली छाया में सुखाकर कूट-पीस लें। दोनों को समान मात्रा में लेकर मिला लें। यह चूर्ण एक चम्मच थोड़े से शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाट लिया करें। सोते समय एक छोटा चम्मच त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ फांक लिया करें, यह प्रयोग 40 दिन तक करें। एक गिलास दूध में एक केला मसलकर, एक चम्मच शुद्ध घी व तीन चम्मच शहद डालकर सुबह व सोते समय सेवन करें।
(12) सलम पंजा, शतावरी, सफेद मूसली और असगन्ध सबका 50-50 ग्राम चूर्ण लेकर मिला लें। इस चूर्ण को एक-एक चम्मच सुबह व रात को कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से पुराना श्वेतप्रदर और इसके कारण होने वाला कमर दर्द दूर होकर शरीर पुष्ट और निरोगी होता है।

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बचपन की गलतियों से पछताने वाले लोगो की समस्या दूर करने वाला अचूक और बेजोड़ नुस्खा :- रतिवल्लभ चूर्ण


रतिवल्लभ चूर्ण अनुचित ढंग से आहार-विहार और कामुक चिंतन करने, अप्राकृतिक ढंग से यौन क्रीड़ा करने और सहवास में अति करने का दुष्परिणाम यह होता है कि युवक ठीक से जवान होने से पहले ही बूढ़ों जैसी निर्बलता और असमर्थता का अनुभव करने लगते हैं। ऐसे पीड़ित पुरुषों के लिए एक अति उपयोगी और लाभकारी योग 'रति वल्लभ चूर्ण' का परिचय प्रस्तुत है।

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घटक द्रव्य- सकाकुल मिश्री 80 ग्राम, बहमन सफेद, बहमन लाल, सालम पंजा, सफेद मूसली, काली मूसली और गोखरू- ये 6 द्रव्य 40-40 ग्राम, छोटी इलायची के दाने, गिलोय सत्व, दालचीनी और गावजवां के फूल- चारों द्रवय 20-20 ग्राम।
निर्माण विधि- सब द्रव्यों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके मिला लें और तीन बार छानकर बर्नी में भर लें।

मात्रा और सेवन विधि- एक चम्मच चूर्ण और एक चम्मच पिसी मिश्री मिलाकर, मिश्री मिले दूध के साथ सुबह खाली पेट व रात को सोते समय कम से कम दो मास तक लें।



(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-


उपयोग- यह एक सरल और अपेक्षाकृत सस्ता नुस्खा होते हुए भी बहुत यौन शक्तिवर्द्धक, उत्तेजक और बल पुष्टिदायक योग है। इसके नियमित 2-3 मास तक सुबह शाम सेवन करने से वीर्य गाढ़ा और पुष्ट होता है, जिससे शीघ्रपतन और नपुंसकता की शिकायत दूर होती है। शरीर व चेहरा पुष्ट व तेजस्वी होता है।
यह उष्ण प्रकृति का और अत्यन्त कामोत्तेजक योग है, इसलिए गर्म प्रकृति वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। जो युवक गलत ढंग से यौन क्रीड़ा द्वारा वीर्यनाश करके नपुंसकता के शिकार हो चुके हों उन्हें इस नुस्खे का सेवन 2-3 मास तक अवश्य करना चाहिए।



रतिवल्लभ पाक, शारीरिक कमजोरी दूर करने वाला आयुर्वेद का एक गुणकारी योग



आयुर्वेद में वैसे तो एक से बढ़ कर एक उत्तम गुणकारी योग मौजूद हैं, जिनका सेवन शीतकाल के दिनों में करके शरीर को पुष्ट, सबल और चुस्त-दुरुस्त रखा जा सकता है, लेकिन उनमे से भी एक श्रेश्ठतम पौष्टिक योग है 'रतिवल्लभ पाक'।


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मात्रा और सेवन विधि : अपनी पाचन शक्ति के अनुसार 20 ग्राम से 30 ग्राम वजन में, सुबह खाली पेट खूब चबा-चबाकर खाएं और ऊपर से मीठा कुनकुना दूध पिएं।


आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में रसायन और वाजीकरण योगों का यथासमय सेवन करना उपयोगी बताया गया है। इनको स्वस्थ और व्याधिरहित सामान्य अवस्था में भी सेवन किया जा सकता है, क्योंकि रसायन गुण वाले पदार्थ, योग आदि शक्ति देने वाले, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाले और वृद्धावस्था के लक्षणों को दूर रखने वाले होते हैं। रसायन योग शरीर के बल की क्षतिपूर्ति करने वाले होते हैं और वाजीकरण योग यौन शक्ति और क्षमता बढ़ाने वाले तथा नपुंसकता दूर करने वाले होते हैं।

यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि आयुर्वेदिक योग बहुगुण (अनेक गुण और प्रभाव करने वाले) तथा बहुकल्प (काढ़ा, चूर्ण, वटी या आसव आदि अनेक रूप वाले) होते हैं, इसलिए ये मूल व्याधि को दूर करने के साथ ही अन्य रोगों को दूर करने और शरीर में बल की वृद्धि करने वाले होते हैं। यहाँ एक उत्तम गुणकारी, रसायन और वाजीकारक योग 'रतिवल्लभ पाक' का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है जो स्त्री-पुरुष दोनों के ही लिए सेवन योग्य और समान रूप से उपयोगी है।

यह बहुउद्देशीय पाक कई प्रकार के लाभ करता है। विवाहित पुरुषों के लिए यह बलवीर्यवर्द्धक, यौनशक्ति दायक, स्तम्भनशक्ति बढ़ाकर शीघ्रपतन की स्थिति समाप्त करने वाला और पुष्टिकारक योग है। मधुमेह को छोड़कर अन्य प्रमेहों और वातजन्य विकारों को नष्ट करने वाला है।

उत्तम यही होगा की आप इसे घर पर ही तैयार करें

घटक द्रव्य : बबूल का गोंद 500 ग्राम, सौंठ 100 ग्राम, पीपल और पीपलामूल 50-50 ग्राम, लौंग, जायफल, जावित्री, मोचरस, शुद्ध शिलाजीत पाँचों 25-25 ग्राम, काली मिर्च, दालचीनी, तेजपान, नागकेसर, इलायची, प्रवाल भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, वंग भस्म सब 10-10 ग्राम। केशर 5 ग्राम, घी 250 ग्राम शक्कर 2 किलो और मेवा आवश्यक मात्रा में।

निर्माण विधि : गोंद को साफ करके खूब बारीक कूट-पीस लें और छानकर कढा़ई में घी गर्म कर तलकर निकाल लें। सौंठ, पीपल व पीपलामूल को बारीक पीस छानकर रख लें। केसर व भस्मों को अलग रखकर शेष लौंग आदि द्रव्यों को एक साथ कूट-पीसकर बारीक करके छान लें और अलग रख दें। बादाम, पिस्ता, किशमिश, खोपरे का बूरा सब बारीक कटे हुए तैयार कर लें। केशर को पत्थर के साफ खरल में गुलाब जल के साथ अच्छा घोट लें। चारों भस्मों को साफ की हुई खरल में डालकर घुटाई करके मिला लें।


(गुणों की खान हैं अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, कौंच के बीज आदि:-



इनकी तैयारी करके शकर की एक तार की चाशनी बनाकर, तले हुए गोंद और सोंठ आदि तीनों का चूर्ण मिलाकर चाशनी में डाल दें और आंच मन्दी कर दें। अब भस्में डालकर हिलाते चलाते रहें। चाशनी थोड़ी गाढ़ी और जमने लायक हो जाए, तब नीचे उतार कर थोड़ी ठण्डी करके लौंग आदि सब द्रव्यों का चूर्ण डालकर हिलाते चलाते रहें और केशर डालकर अच्छी तरह मिलाएं। अब थाली में घी का हाथ लगाकर इसे फैलाकर डाल दें और कटे हुए मेवे फैलाकर डाल दें। जब पाक जम जाए, तब बर्फी काटकर कांच की बर्नी में भर लें।

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लाभ : यह बहुउद्देशीय पाक कई प्रकार के लाभ करता है। विवाहित पुरुषों के लिए यह बलवीर्यवर्द्धक, यौनशक्ति दायक, स्तम्भनशक्ति बढ़ाकर शीघ्रपतन की स्थिति समाप्त करने वाला और पुष्टिकारक योग है। मधुमेह को छोड़कर अन्य प्रमेहों और वातजन्य विकारों को नष्ट करने वाला है। महिलाओं के प्रदर रोग, प्रसूति रोग (सुआ रोग) और शरीर की दुर्बलता को दूर करने वाला है।

प्रसूता स्त्री के लिए तो यह अमृत समान है, क्योंकि यह प्रसव होने के बाद आई कमजोरी को दूर कर स्त्री के शरीर को सबल बनाकर उसके स्वास्थ और सौन्दर्य की खूब वृद्धि करता है। यह बना बनाया बाजार में नहीं मिलता, इसलिए घर पर ही बनाकर तैयार करना होगा। पूरे शीतकाल में सेवन करें और इसके गुणों का लाभ उठा कर मौज करें।

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Monday, 13 August 2018

सालमपंजा

'सालमपंजा' एक बहुत ही गुणकारी, बलवीर्यवर्द्धक और यौन शक्ति को बढ़ाकर नपुंसकता नष्ट करने वाली वनौषधि है। 

यह बल बढ़ाने वाला, शीतवीर्य, भारी, स्निग्ध, तृप्तिदायक और मांस की वृद्धि करने वाला होता है। यह वात-पित्त का शमन करने वाला, रस में मधुर होता है।

Salab Punja


 भारत में इसकी आवक ज्यादातर ईरान और अफगानिस्तान से होती है। सालमपंजा का उपयोग शारीरिक, बलवीर्य की वृद्धि के लिए, वाजीकारक नुस्खों में दीर्घकाल से होता आ रहा है।

यौन दौर्बल्य : सालमपंजा 100 ग्राम, बादाम की मिंगी 200 ग्राम, दोनों को खूब बारीक पीसकर मिला लें। इसका 10 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन कुनकुने मीठे दूध के साथ प्रातः खाली पेट और रात को सोने से पहले सेवन करने से शरीर की कमजोरी और दुबलापन दूर होता है, यौनशक्ति में खूब वृद्धि होती है और धातु पुष्ट एवं गाढ़ी होती है। यह प्रयोग महिलाओं के लिए भी पुरुषों के समान ही लाभदायक, पौष्टिक और शक्तिप्रद है, अतः महिलाओं के लिए भी सेवन योग्य है।

शुक्रमेह : सालम पंजा, सफेद मूसली एवं काली मूसली तीनों 100-100 ग्राम लेकर कूट-पीसकर खूब बारीक चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें। प्रतिदिन आधा-आधा चम्मच सुबह और रात को सोने से पहले कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से शुक्रमेह, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, कामोत्तजना की कमी आदि दूर होकर यौनशक्ति की वृद्धि होती है।

जीर्ण अतिसार : सालमपंजा का खूब महीन चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह, दोपहर और शाम को छाछ के साथ सेवन करने से पुराना अतिसार रोग ठीक होता है। एक माह तक भोजन में सिर्फ दही-चावल का ही सेवन करना चाहिए। इस प्रयोग को लाभ होने तक जारी रखने से आमवात, पुरानी पेचिश और संग्रहणी रोग में भी लाभ होता है।

प्रदर रोग : सलमपंजा, शतावरी, सफेद मूसली और असगन्ध सबका 50-50 ग्राम चूर्ण लेकर मिला लें। इस चूर्ण को एक-एक चम्मच सुबह व रात को कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से पुराना श्वेतप्रदर और इसके कारण होने वाला कमर दर्द दूर होकर शरीर पुष्ट और निरोगी होता है।

वात प्रकोप : सालमपंजा और पीपल (पिप्पली) दोनों का महीन चूर्ण मिलाकर आधा-आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम बकरी के कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से कफ व श्वास का प्रकोप शांत होता है। सांस फूलना, शरीर की कमजोरी, हाथ-पैर का दर्द, गैस और वात प्रकोप आदि ठीक होते हैं।

विदार्यादि चूर्ण : विन्दारीकन्द, सालमपंजा, असगन्ध, सफेद मूसली, बड़ा गोखरू, अकरकरा सब 50-50 ग्राम खूब महीन चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें। इस चूर्ण को 1-1 चम्मच सुबह व रात को कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से यौन शक्ति और स्तंभनशक्ति बढ़ती है।

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(गुणों की खान हैं अश्वगंधासफेद मूसलीशतावरीगोखरूकौंच के बीज आदि:-


रतिवल्लभ चूर्ण : सालमपंजा, बहमन सफेद, बहमन लाल, सफेद मूसली, काली मूसली, बड़ा गोखरू सब 50-50 ग्राम। छोटी इलायची के दाने, गिलोय सत्व, दालचीनी और गावजवां के फूल-सब 25-25 ग्राम। मिश्री 125 ग्राम। सबको अलग-अलग खूब कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें।
इस चूर्ण को 1-1 चम्मच सुबह व रात को कुनकुने मीठे दूध के साथ दो माह तक सेवन करने से यौन दौर्बल्य और यौनांग की शिथिलता एवं नपुंसकता दूर होती है। शरीर पुष्ट और बलवान बनता है।