Saturday 3 August 2019

निर्मली

आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों में इसका वर्णन प्राप्त होता है. अति प्राचीन काल से जल शोधन के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. जल से भरे हुए पात्र में इसे थोड़ा घीसकर डालने से जल की समस्त गन्दगी नीचे बैठ जाती है. जिससे जल निर्मल या स्वच्छ हो जाता है. इसलिए इसे निर्मली कहते हैं. मुख्यतः भारत तथा श्रीलंका में पाया जाता है. भारत में यह पश्‍चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत के पर्णपाती वनों में 1200 मीटर की उंचाई तक, मध्य भारत, कोंकण एवं महाराष्ट्र में पाया जाता है. 

NIRMALI

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
  • नेत्र रोग- सिर्फ सेंधानमक के साथ अथवा सेंधानमक तथा मधु के साथ निर्मली का अज्जन बनाकर आंखों में लगाने से नेत्रगत अर्नुनरोग (र्डीललेपर्क्षीपलींर्ळींरश्र हरशोीीहरसश) में लाभ होता है.
  • निर्मली फल को मधु के साथ पीसकर, थोड़ा-सा कर्पूर मिलाकर नियमित अंजन करने से नेत्र निर्मल एवं दृष्टि प्रखर होती है.
  • लालचंदन, पिप्पली, हल्दी तथा निर्मली बीज को जल में पीसकर वर्ती बनाकर, इस वर्ती को घिसकर अंजन करने से सभी प्रकार के नेत्ररोगों में लाभ होता है.https://indianjadibooti.com/Jadistore/Nirmali-Batan
  • निर्मली के बीजों को पीसकर उसमें थोड़ा-सा कपूर मिलाकर नेत्र के बाहर चारों ओर लगाने से नेत्रशूल में लाभ होता है.
  • निर्मली-बीज को पानी में पीसकर उसमें थोड़ा सा सेंधानमक मिलाकर आंखों के बाहर लगाने से नेत्रशूल तथा नेत्रदाह (आंखों की जलन) का शमन होता है.
  • खांसी- एक निर्मली के फल का गूदा निकालकर उसमें शहद मिलाकर चटाने से सूखी खांसी मिटती है.
  • निर्मली त्वक् का चूर्ण बनाकर उसमें नींबू स्वरस मिलाकर, एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से हैजा में लाभ होता है.
  • निर्मली के बीजों को पानी में पीसकर नाभि के आस-पास लेप करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं.
  • निर्मली के एक बीज को पीसकर, तक्र में मिलाकर 5 दिनों तक पिलाने से बहुत पुराने अतिसार, जो किसी भी औषधि के प्रयोग करने से ठीक न हो, तो उनमें लाभ होता है.
  • निर्मली के बीज को पीसकर शहद में मिलाकर खिलाने से प्रमेह में लाभ होता है.
  • मूत्र विकार- निर्मली के दो बीजों को पानी में पीसकर, दही मिलाकर, चीनी मिट्टी के बर्तन में रखकर रात भर प़उ रहने दें, प्रातः इसे निकालकर सेवन कर लें. इस प्रकार सात दिनों तक इसका सेवन करने से तथा पथ्य में दही चावल खाने से पेशाब की जलन तथा पेशाब के साथ खून आना बन्द हो जाता है.
  • संधिशूल- निर्मली मूल को तेल में डालकर पकाकर, फिर छानकर मालिश करने से जोड़ों की वेदना का शमन होता है.
  • निर्मली पत्रों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव का शोधन होता है तथा घाव जल्दी भर जाता है.
  • निर्मली मूल को पीसकर लगाने से कुष्ठ आदि त्वचा रोगों में लाभ होता है.
  • निर्मली फल सत्त से नस्य, अंजन तथा कर्णपूरण करने से अपस्मार में लाभ होता है.
  • निर्मली फल को घिस कर वृश्‍चिक दंशस्थान पर लेप करने से दंशजन्य वेदना, शोथ आदि प्रभावों का शमन होता है

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