Tuesday 23 July 2019

हरड़

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हरड़ का पेड़ भारत के अधिकांश प्रान्तों में पाया जाता है... आमतौर पर इसका पेड़ 18 से 24 मीटर तक ऊंचा होता है.... इसका तना मजबूत, लंबा, सीधा और छाल मटमैली होती है....इसके पत्ते 3 से 8 इंच लंबे और लगभग 2 इंच चौड़े होते है ... मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, बिहार और दक्षिण भारत में हरड़ बहुत होता है वही असम में सबसे अधिक हरड़ के पेड़ है.... आयुर्वेद में हरड़ को हरीतकी तथा अभया नामों से जाना जाता हैं ...... रोगों को दूर करने के कारण हरड़ को हरीतकी कहा गया है..... हरड़ का एक नाम प्रमथा भी है.... इसका अर्थ है रोगों को मथकर उन्हें जड़-मूल से नष्ट करने वाली....।


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आयुर्वेद के अनुसार हरड़ में लवण रस को छोड़कर शेष सभी रस होते हैं....हरड़ के संहिता में सात प्रकार बताये है.... पर आजकल बाजार में सिर्फ 3 प्रकार की हरड़ ही उपलब्ध हैं- 1. बाल हरड़-इसे जवाहरड़ भी कहते हैं। 2. पीली हरड़, 3. बड़ी हरड़। (इसे काबुली हरड़ भी कहते हैं।) तीनों प्रकार की हरड़ों के गुण लगभग समान ही हैं.... हरड़ का कच्चा और छोटा फल जब पेड़ से गिर जाता है, तब उसे छोटी हरड़ कहा जाता है(जिसका चित्र कमेंट बॉक्स में देखे).....दवाई के लिए प्राय: हरड़ के फल का छिलका ही उपयोग में लाया जाता है..... हरड़ में मीठा, खट्टा, कडवा (चरपरा), तीखा और कसैला ये 5 रस होते हैं...।


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हरड़ के सेवन से वात, पित्त और कफ असंतुलन से पैदा हुए रोग-विकार ठीक होते है..... हरड़ आँखों के लिए भी बहुत गुणकारी होती है.... सूजन, पेट के रोग, अर्श, सांस के रोग व खांसी में बहुत लाभप्रद होती है....हरड़ के सेवन से उच्च रक्तचाप में बहुत लाभ होता है.... हरड़, बहेड़ा और आंवला को कूट-पीसकर बनाए गए चूर्ण को “त्रिफला चूर्ण’ कहते है जिसका काफी औषधीय उपयोग है...।



हरड़, वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ...शरद ऋतु में शकर के साथ...हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ.....शिशिर ऋतु में पीपल के साथ...वसंत ऋतु में शहद के साथ लेना बहुत ही लाभकारी होता हैं...।


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