Tuesday 8 September 2020

पिपरी , Pipal , Piper Retrofractum , पिप्पली

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पिपरी को Pipal , Piper Retrofractum , पिप्पली वैदेही, कृष्णा, मागधी, चपला आदि पवित्र नामों से जाना जाता है ...आयुर्वेद में इसकी चार प्रजातियों का वर्णन आता है परन्तु व्यवहार में छोटी और बड़ी दो प्रकार की पिप्पली ही अधिक उपयोगी है....।
बड़ी पिप्पली मलेशिया,इंडोनेशिया और सिंगापुर से आयात की जाती है वही छोटी पिप्पली भारतवर्ष में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है ,इसकी खेती बिहार असम,बंगाल,तमिलनाडु और आंध्र के पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है….।

पिपरी के फूल वर्षा ऋतू में आते है तथा शरद ऋतू में इसकी बेल फलों से लद जाती है ....बाजारों में इसकी जड़ को पीपला_मूल के नाम से मिलती है .....गाँवो में आज भी प्रसूता महिलाओ को पीपला मूल पिलाया जाता है....।

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जिस प्रकार हरड़-बहेड़ा-आंवला को #त्रिफला कहा जाता है, वैसे ही सोंठ-पीपर-काली मिर्च को  त्रिकटु  कहा जाता है.....यह योग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी सहायक होता हैं...।

 औषधीय गुणों से भरपूर पिपरी
पिप्पली को शहद के साथ लेने से अनेक रोगों में लाभ मिलता है.........पिप्पली को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है .......पिप्पली के १-२ ग्राम चूर्ण में सेंधानमक,हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांत पर लगाने से दांत का दर्द ठीक होता है ......पिप्पली,पीपल मूल,काली मिर्च और सौंठ के समभाग चूर्ण को २ ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से जुकाम में लाभ होता है .....पिप्पली चूर्ण में शहद मिलाकर प्रातः सेवन करने से,कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियमित होती है तथा हृदय रोगों में लाभ होता है .....खांसी में पिप्पली को सेक कर शहद के साथ लेने से काफी आराम मिलता हैं..।
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