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#लिसोड़ा #लसोड़ा #गुन्दी
https://indianjadibooti.com/Jadistore/Lisodha
अभी गुंदी पर फूलो की बहार हैं...गुंदी के पेड़ अब कम ही दिखते हैं...इसके पेड़ मध्यभारत के वनों में अधिकांश देखे जा सकते है, यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, बचपन में अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते थे....इसकी लकड़ी इमारती उपयोग होता है...इसके बड़े पेड़ के तने अधिकांश खोखले दिखाई पड़ते हैं,जिनका मुख्य कारण इसके गोंद के कारण पनपने वाले कीट होते हैं...।
इसे रेठु,लसोड़ा,गोंदी,निसोरा, गोधरी, भेनकर, शेलवेट आदि कहते हैं, हालांकि इसका वानस्पतिक नाम #कार्डिया_डाईकोटोमा है.......।
इसके कच्चे फलों की सब्जी और अचार भी बनाया जाता है...इसके फूलों (मोड़) की स्वादिष्ट सब्जी बनती है...इसके पके फल बड़े मीठे और बहुत चिकने लगते है...इसके फल से गोंद जैसा चिकनाहट निकलती है शायद इसी कारण इसे गुन्दा कहा जाता है...।
#औषधीय_गुण https://indianjadibooti.com/Jadistore/Lisodha
गुन्दी की छाल को पानी में घिसकर प्राप्त रस को अतिसार से पीड़ित व्यक्ति को पिलाया जाए तो आराम मिलता है....इसी रस को अधिक मात्रा में लेकर इसे उबाला जाए और काढ़ा बनाकर पिया जाए तो गले की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती है.... इसके बीजों को पीसकर दाद-खाज और खुजली वाले अंगों पर लगाया जाए आराम मिलता है।
इसकी छाल की लगभग 200 ग्राम मात्रा लेकर इतने ही मात्रा पानी के साथ उबाला जाए और जब यह एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन, दांतो का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है।
पंजाब मे इस की मुख्य रूप से दो प्रजातिया मिलती है । इन्हे लासोडा ओर लासोडी कहा जाता है। लासोडा का वृक्ष बडे आकार मे होता है इस के फलो का आकार बडा होता है । जबकि लासोडी का वृक्ष ओर फल दोनो ही छोटे होते है । लासोडा का आचार डाला जाता है । इन के पके फल पेट के सभी रोगो के लिए रामबाण माने जाते है । इन का उपयोग अनेक युन्नानी ओषधियो के बनाने मे होता है । अब इन के वृक्ष कम नजर आते है ।
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अभी गुंदी पर फूलो की बहार हैं...गुंदी के पेड़ अब कम ही दिखते हैं...इसके पेड़ मध्यभारत के वनों में अधिकांश देखे जा सकते है, यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, बचपन में अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते थे....इसकी लकड़ी इमारती उपयोग होता है...इसके बड़े पेड़ के तने अधिकांश खोखले दिखाई पड़ते हैं,जिनका मुख्य कारण इसके गोंद के कारण पनपने वाले कीट होते हैं...।
इसे रेठु,लसोड़ा,गोंदी,निसोरा, गोधरी, भेनकर, शेलवेट आदि कहते हैं, हालांकि इसका वानस्पतिक नाम #कार्डिया_डाईकोटोमा है.......।
इसके कच्चे फलों की सब्जी और अचार भी बनाया जाता है...इसके फूलों (मोड़) की स्वादिष्ट सब्जी बनती है...इसके पके फल बड़े मीठे और बहुत चिकने लगते है...इसके फल से गोंद जैसा चिकनाहट निकलती है शायद इसी कारण इसे गुन्दा कहा जाता है...।
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गुन्दी की छाल को पानी में घिसकर प्राप्त रस को अतिसार से पीड़ित व्यक्ति को पिलाया जाए तो आराम मिलता है....इसी रस को अधिक मात्रा में लेकर इसे उबाला जाए और काढ़ा बनाकर पिया जाए तो गले की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती है.... इसके बीजों को पीसकर दाद-खाज और खुजली वाले अंगों पर लगाया जाए आराम मिलता है।
इसकी छाल की लगभग 200 ग्राम मात्रा लेकर इतने ही मात्रा पानी के साथ उबाला जाए और जब यह एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन, दांतो का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है।
पंजाब मे इस की मुख्य रूप से दो प्रजातिया मिलती है । इन्हे लासोडा ओर लासोडी कहा जाता है। लासोडा का वृक्ष बडे आकार मे होता है इस के फलो का आकार बडा होता है । जबकि लासोडी का वृक्ष ओर फल दोनो ही छोटे होते है । लासोडा का आचार डाला जाता है । इन के पके फल पेट के सभी रोगो के लिए रामबाण माने जाते है । इन का उपयोग अनेक युन्नानी ओषधियो के बनाने मे होता है । अब इन के वृक्ष कम नजर आते है ।
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