Saturday, 23 February 2019

गोरखमुंडी परिचय एवं प्रयोग

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GORAKHMUNDI 


आयुर्वेद मे गोरखमुंडी को रसायन कहा गया है...... आयुर्वेद के अनुसार रसायन का अर्थ है वह औषधि जो शरीर को जवान बनाए रखे........ गोरखमुण्डी भारत के प्रायः सभी प्रान्तों में पाई जाती है....... संस्कृत में इसे श्रावणी महामुण्डी अरुणा,तपस्विनी तथा नीलकदम्बिका आदि कई नामो से जानी जाती है.....यह एक अत्यन्त लाभकारी औषधि है..।
भारतीय वनौषधियों में गोरखमुंडी का विशेष महत्‍व है..... सर्दी के मौसम में इसमें फूल और फल लगते हैं...... इस पौधे की जड़, फूल और पत्‍ते कई रोगों के लिए फायदेमंद होते हैं.....।
गोरखमुंडी के चार ताजे फल तोड़कर भली प्रकार चबायें और दो घूंट पानी के साथ इसे पेट में उतार लें तो एक वर्ष तक न तो आंख आएगी और न ही आंखों की रोशनी कमजोर होगी.....गोरखमुंडी की गंध बहुत तीखी होती है......आंखों की रोशनी , नारू रोग (इसे बाला रोग भी कहते हैं, यह रोग गंदा पानी पीने से होता है),वात रोग (आम वात की पीड़ा) , कुष्‍ठ रोग , धातु रोग , योनि में दर्द हो, फोड़े-फुन्सी या खुजली और पीलिया इन सभी रोगों में इसका उपयोग अत्यंत लाभकारी है.....गर्भाशय, योनि सम्बन्धी अन्य बीमारियों पथरी-पित्त सिर की आधाशीशी आदि में भी यह अत्यन्त लाभकारी औषधि है ....।

गोरखमुंडी,बारसावड़ी,बोड़ थरा,श्रावणी, मुंडी या गुड़रिया (East Indian glob thistle या Sphaeranthus Indicus ) भूमि की उर्वरता का परिचायक बिशिष्ट गंध वाला क्षुप है क्योंकि माना जाता है जहाँ यह पनपा वह भूमि उर्वर है । बचपन में इसके गोलाकार पुष्प मुंडक को तोड़कर खेला करते थे ।
गोरखमुंडी यूरिक एसिड की सर्वोत्तम आयुर्वेद औषधि है और कई दवा कंपनियां इसके पावडर और कैप्सूल महंगे दामों पर बेचते हैं ।
गंडई सालेवाड़ा के आदिवासी चेहरे की झुर्रियां हटाने इसकीं पत्तियों का लेप लगाते है,हालांकि कुछ लोगों को इससे स्किन एलर्जी हो सकती है ।छग में इसे Eosinophilia के उपचार में कारगर माना जाता है ।
सिफलिस में पौधे का पावडर तथा खुजली एवं अन्य त्वचा रोगों में पत्त्तों का लेप पानी के साथ लगाते हैं ।इसे सिरके के साथ पीसकर दांतों पर मलने से मुख दुर्गंध दूर होती है और achromatopsia में इसका जूस पीना लाभदायक होता है ।केश विकारों में काले भांगरे या भृंगराज के चूर्ण के साथ शहद में मिलाकर इसका चूर्ण लेते है ।जड़ों का आधा चम्मच रस प्रतिदिन लेने से पेट के कृमि बाहर आ जाते हैं ।1 गिलास दूध में 1 चम्मच जड़ का चूर्ण का प्रतिदिन दो बार सेवन piles और heavy mensyrual bleeding में लाभ पहुंचाता है । rheumatism में अदरक के साथ जड़ को समभाग पीसकर कुनकुने पानी में 2 बूँद रोज पीने से लाभ पहुंचता है ।
मुंडी के चूर्ण का सेवन testosterone का स्त्राव बढ़ाकर कामेच्छा को बढ़ाता है और इसकीं ताजी जड़ को तिल के तेल में उबालकर उसकी मालिश erectile disfunction को ठीक करती है । इसके बीजों को पीसकर शक्कर के साथ सेवन यौवन वर्धक माना जाता है ।बीज का चूर्ण gastrointestinal disorder को भी दूर करता है ।

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Thursday, 14 February 2019

लिसोड़ा : परिचय और औषधीय गुण

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#लिसोड़ा     #लसोड़ा       #गुन्दी 

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अभी गुंदी पर फूलो की बहार हैं...गुंदी के पेड़ अब कम ही दिखते हैं...इसके पेड़ मध्यभारत के वनों में अधिकांश देखे जा सकते है, यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, बचपन में अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते थे....इसकी लकड़ी इमारती उपयोग होता है...इसके बड़े पेड़ के तने अधिकांश खोखले दिखाई पड़ते हैं,जिनका मुख्य कारण इसके गोंद के कारण पनपने वाले कीट होते हैं...।
इसे रेठु,लसोड़ा,गोंदी,निसोरा, गोधरी, भेनकर, शेलवेट आदि कहते हैं, हालांकि इसका वानस्पतिक नाम #कार्डिया_डाईकोटोमा है.......।
इसके कच्चे फलों की सब्जी और अचार भी बनाया जाता है...इसके फूलों (मोड़) की स्वादिष्ट सब्जी बनती है...इसके पके फल बड़े मीठे और बहुत चिकने लगते है...इसके फल से गोंद जैसा चिकनाहट निकलती है शायद इसी कारण इसे गुन्दा कहा जाता है...।

#औषधीय_गुण     https://indianjadibooti.com/Jadistore/Lisodha
गुन्दी की छाल को पानी में घिसकर प्राप्त रस को अतिसार से पीड़ित व्यक्ति को पिलाया जाए तो आराम मिलता है....इसी रस को अधिक मात्रा में लेकर इसे उबाला जाए और काढ़ा बनाकर पिया जाए तो गले की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती है.... इसके बीजों को पीसकर दाद-खाज और खुजली वाले अंगों पर लगाया जाए आराम मिलता है।
इसकी छाल की लगभग 200 ग्राम मात्रा लेकर इतने ही मात्रा पानी के साथ उबाला जाए और जब यह एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन, दांतो का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है।



पंजाब मे इस की मुख्य रूप से दो प्रजातिया मिलती है । इन्हे लासोडा ओर लासोडी कहा जाता है। लासोडा का वृक्ष बडे आकार मे होता है इस के फलो का आकार बडा होता है । जबकि लासोडी का वृक्ष ओर फल दोनो ही छोटे होते है । लासोडा का आचार डाला जाता है । इन के पके फल पेट के सभी रोगो के लिए रामबाण माने जाते है । इन का उपयोग अनेक युन्नानी ओषधियो के बनाने मे होता है । अब इन के वृक्ष कम नजर आते है ।
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